अथर्वशीर्ष क्या है?
अथर्वशीर्ष का अर्थ होता है, अथर्ववेद का शिरोभाग। वेद के चार भाग है, १) संहिता, २) ब्राह्मण, ३) आरण्यक तथा ४) उपनिषद्। जिन्हें श्रुति कहा जाता है। अधिकांश उपनिषद् प्रायः आरण्यक भाग के अंश हैं ‘अथर्वशीर्ष’ उपनिषद् ही हैं और अथर्ववेद के अन्त में आते हैं। ये सर्व विद्याओं की सर्वभूता ‘ब्रह्मविद्या’ के प्रतिपादक हैं, इसीलिये ‘अथर्वशीर्ष’ कहलाते हैं।
पाँच अथर्वशीर्ष हैं─ गणपत्यथर्वशीर्षम्, शिवाथर्वशीर्षम्, देव्यथर्वशीर्षम्, नारायण अथर्वशीर्ष एवं सूर्याथर्वशीर्षम्।
हिन्दू धर्म में पंचदेव उपासना की परम्परा है, जो क्रमशः गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु एवं सूर्य हैं। गणपति के उपासक गाणपत्य, शिव के उपासक शिव, शक्ति के उपासक शाक्त, विष्णु के उपासक वैष्णव तथा सूर्य के उपासक सौर कहे जाते हैं। शास्त्रों में इन पंचदेवों की मान्यता पूर्ण ब्रह्म के रूप में है, इसीलिये इन पंचदेवों में से किसी एक को अपना इष्ट बनाकर उपासना करने की पद्धति है।
इन पंचदेवों में समस्त देवी-देवता अन्तर्भूत होने से किसी भी स्वरूप का उपासक अपने इष्टदेव को सर्वोत्कृष्टता का गूढ़ रहस्य सम्बन्धित अथर्वशीर्ष के माध्यम से जानकर उनकी कृपा का पात्र बन जाता है।
प्रत्येक अथर्वशीर्ष में अपने देव को ही सर्वोत्कृष्ट, सर्वनियन्ता और परब्रह्म बताया गया है। जो पाठक पहली बार पाँचों अथर्वशीर्ष पढ़ेंगे, वे भ्रमित भी हो सकते हैं कि यह कैसे हो सकता है? परन्तु यह गूढ़ बात है।
वास्तव में परब्रह्म परमेश्वर ही पंचदेवों के रूपों में व्यक्त हैं तथा सम्पूर्ण चराचर में भी वे ही व्याप्त हैं ‘एको देवः सर्वभूतेषु गूढः…।।’ (श्वेताश्वतर० ६।११) साधक अपनी-अपनी प्रकृति, रुचि और श्रद्धा के अनुसार ही इन पंचदेवों में किसी एक देव को अपना इष्ट मानकर उनकी आराधना करके बड़ी सहजता से भगवत् प्राप्ति कर पाता है, उसके लिये वही स्वरूप सर्वश्रेष्ठ है। इसमें अन्य के हीन होने की बात नहीं है; क्योंकि तत्त्व रूप से एक ही परमात्मा सवर्त्र विद्यमान है, चाहे वह गणेश का रूप हो, शिव का हो, देवी का हो, विष्णु का हो, सूर्य का हो या अन्य किसी देवी देवता का।
इसलिये यह तो सोचना ही ग़लत है कि कौन-सा अथर्वशीर्ष सर्वश्रेष्ठ है? छोटा हो चाहे बड़ा, हर अथर्वशीर्ष का अपना महत्त्व है। प्रत्येक अथर्वशीर्ष का पाठ करने का विलक्षण प्रभाव बताया गया है, जो सभी पापों का नाश करके पवित्र करने के साथ-साथ लौकिक एवं पारलौकिक कामनाओं की सिद्धि में सहायक होता है। इसका सम्यक् विवरण प्रत्येक अथर्वशीर्ष के अन्त में फलश्रुति के रूप में देखा जा सकता है।
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पंचदेव अथर्वशीर्ष पुस्तक में पाँचों अथर्वशीर्ष हिन्दी अर्थसहित प्रकाशित हैं। https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट में पाँचों अथर्वशीर्ष का लिंक दिया गया है, जिनमें मूलपाठ के साथ लघुशब्द भी दिये गये हैं। प्रत्येक पोेस्ट के अन्त में उसका पीडीएफ़ भी उपलब्ध है, जिसे डाऊनलोड करके आसानी अभ्यास किया जा सकता है। विज्ञ पाठकगण इसका लाभ उठायें।
One of these calcium binding compounds in the gut is fat buy cialis online us
online kamagra mumbai However, some components of licorice exert unwanted side effects and therefore identifying safer licorice components would be ideal
A recent report points out that CD8 T cells deficient in the histone acetyltransferase CBP Crebbp, CREB binding protein Cd4 Cre, were unable to differentiate into either effector or memory CD8 T cells in response to infection with L tadalafil cialis
generic cialis vs cialis Of course they knew the purpose of Li Xiao and Sheppard, but it was impossible for them to hand over the Fire Heart Stone
But if Lord Augustus is here today, how much does green tea lower blood pressure my brother will be in trouble, In the future, Lord Gonzalez will still be in trouble cialis professional