अन्नपूर्णा स्तोत्र
माँ अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से ही समस्त संसार का भरण पोषण होता है। उनकी आराधना से रोग-शोक का निवारण होता है। माता अन्नपूर्णा से ही हर किसी की जीवन-ज्योति जाग्रत है। श्रीमत् शंकराचार्य द्वारा उनकी स्तुति अद्भुत है। इसका प्रवाह इतना सुन्दर है कि बार-बार कहने को जी करता है।
आइये सुगम ज्ञान संगम के इस पोस्ट में इसका पाठ करके अन्नपूर्णा माता पार्वती का आशीर्वाद पायें और हिन्दी में अर्थ जानें।
श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रम्
❑➧नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।१।।
❍ नित्या नन्द करी वराभय करी सौन्दर्य रत्नाकरी
निर्धूता खिल घोर पावन करी प्रत्यक्ष माहेश्वरी।
प्रालेया चल वंश पावन करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।१।।
❑➧नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।२।।
❍ नाना रत्न विचित्र भूषण करी हेमाम्ब राडम्बरी
मुक्ताहार विलम्ब मान विलसद् वक्षोज कुम्भान्तरी।
काश्मी राग रुवा सिताङ्ग रुचिरे काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।२।।
❑➧योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णश्वरी।।३।।
❍ योगा नन्द करी रिपु क्षय करी धर्मार्थ निष्ठा करी
चन्द्रार्कानल भासमान लहरी त्रैलोक्य रक्षा करी।
सर्वैश्वर्य समस्त वाञ्छित करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।३।।
❑➧कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।४।।
❍ कैलासा चल कन्दरा लय करी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थ गोचर करी ओङ्कार बीजाक्षरी।
मोक्ष द्वार कपाट पाटन करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।४।।
❑➧दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।५।।
❍ दृश्या दृश्य विभूति वाहन करी ब्रह्माण्ड भाण्डोदरी
लीला नाटक सूत्र भेदन करी विज्ञान दीपाङ्कुरी।
श्री विश्वे शमनः प्रसादन करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।५।।
❑➧उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।६।।
❍ उर्वी सर्व जनेश्वरी भगवती मातान्न पूर्णेश्वरी
वेणी नील समान कुन्त लहरी नित्यान्न दानेश्वरी।
सर्वा नन्द करी सदा शुभ करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।६।।
❑➧आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।७।।
❍ आदि क्षान्त समस्त वर्णन करी शम्भोस् त्रिभावा करी
काश्मी रात्रि जलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी।
कामा काङ्क्ष करी जनोदय करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।७।।
❑➧देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वाम स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी।
ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।८।।
❍ देवी सर्व विचित्र रत्न रचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वाम स्वादु पयोधर प्रिय करी सौभाग्य माहेश्वरी।
ताभीष्ट करी सदा शुभ करी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।८।।
❑➧चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरा चन्द्रार्कवर्णेश्वरी।
मालापुस्तकपाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।९।।
❍ चन्द्रार्कानल कोटि कोटि सदृशा चन्द्रांशु बिम्बा धरी
चन्द्रार्काग्नि समान कुन्तल धरा चन्द्रार्क वर्णेश्वरी।
माला पुस्तक पाश साङ्कुश धरी काशी पुरा धीश्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।९।।
❑➧क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरा माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी।।१०।।
❍ क्षत्र त्राण करी महा ऽभयकरा माता कृपा सागरी
साक्षान् मोक्षकरी सदा शिव करी विश्वेश्वर श्री धरी।
दक्षा क्रन्द करी निरामय करी काशी पुराधी श्वरी
भिक्षां देहि कृपा वलम्बन करी मातान्न पूर्णेश्वरी।।१०।।
❑➧अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति।।११।।
❍ अन्न पूर्णे सदा पूर्णे
शङ्कर प्राण वल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं
भिक्षां देहि च पार्वति।।११।।
❑➧माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्तश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्।।१२।।
❍ माता च पार्वती देवी
पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिव भक्तश्च
स्वदेशो भुवन त्रयम्।।१२।।
।।इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीअन्नपूर्णास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
हिन्दी अर्थ
❑अर्थ➠ आप नित्य आनन्द प्रदान करनेवाली हैं, वर तथा अभय देनेवाली हैं, सौन्दर्यरूपी रत्नों की खान हैं, भक्तों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करके उन्हें पवित्र कर देनेवाली हैं, साक्षात् माहेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, [पार्वती के रूपमें जन्म लेकर] आपने हिमालय वंश को पावन कर दिया है, आप काशीपुरी की अधीश्वरी (स्वामिनी) हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।१।।
❑अर्थ➠ आप अनेकविध रत्नों के विचित्र आभूषण धारण करनेवाली हैं, आप स्वर्ण-वस्त्रों से शोभा पानेवाली हैं, आपके वक्ष स्थल का मध्यभाग मुक्ताहार से सुशोभित हो रहा है, आपके श्री अंग केशर और अगर से सुवासित हैं, आप काशीपुर की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।२।।
❑अर्थ➠ आप [योगीजन को] योग का आनन्द प्रदान करती हैं, शत्रुओं का नाश करती हैं, धर्म और अर्थ के लिये लोगों में निष्ठा उत्पन्न करती हैं; सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि की प्रभाव-तरंगों के समान कान्तिवाली हैं, तीनों लोकों की रक्षा करती हैं। अपने भक्तों को सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करती हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण करती हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।३।।
❑अर्थ➠ आपने कैलास पर्वत की गुफा को अपना निवास स्थल बना रखा है, आप गौरी, उमा, शंकरी तथा कौमारी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, आप वेदार्थ तत्त्व का अवबोध करानेवाली हैं, आप ‘ओंकार’ बीजाक्षर स्वरूपिणी हैं, आप मोक्षमार्गक कपाट का उद्घाटन करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।४।।
आप दृश्य तथा अदृश्य रूप अनेकविध ऐश्वर्यरूपी वाहनों पर आसनस्थ होनेवाली हैं, आप अनन्त ब्रह्माण्ड को अपने उदररूपी पात्र में धारण करनेवाली हैं, माया-प्रपंच के (कारणभूत अज्ञान) सूत्र का भेदन करनेवाली हैं, आप विज्ञान (प्रत्यक्ष अनुभूति)-रूपी दीपक की शिखा हैं, आप भगवान विश्वनाथ मन को प्रसन्न रखनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा का आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता है, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे शिक्षा प्रदान करें।।५।।
❑अर्थ➠ आप पृथ्वी तल पर स्थित सभी प्राणियों की ईश्वरी (स्वामिनी) हैं, आप ऐश्वर्यशालिनी हैं, सभी जीवों में मातृभाव से विराजती हैं, अन्न से भण्डार को परिपूर्ण रखनेवाली देवी हैं, आप नील वर्ण की वेणी के समान लहराते केश-पाशवाली हैं, आप निरन्तर अन्न-दानमें लगी रहती हैं। समस्त प्राणियोंको आनन्द प्रदान करनेवाली हैं। सर्वदा भक्तजनों का मंगल करनेवाली हैं, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपना आश्रय देनेवाले हैं, आप [समस्त प्राणियों के] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।६।।
❑अर्थ➠ आप ‘अ’ से ‘क्ष’ पर्यन्त समस्त वर्णमाला व्याप्त हैं, आप भगवान शिवके तीनों भावों (सत्त्व, रज, तम)-को प्रादुर्भूत करनेवाली आप केसर के समान आभावाली हैं, आप स्वर्गीय, पातालगंगा तथा भागीरथी-इन तीन जल-राशियों स्वामिनी हैं, आप गंगा, यमुना तथा सरस्वती-इन तीनों नदियों की लहरों के रूप में विद्यमान हैं। आप विभिन्न रूपों में नित्य अभिव्यक्त होनेवाली हैं, आप रात्रिस्वरूपा हैं, आप अभिलाषी भक्त जनों की कामनाएँ पूर्ण करनेवाली हैं, लोगों का अभ्युदय करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।७।।
❑अर्थ➠ आप सभी प्रकार के अद्भुत रत्नाभूषणों से सजी हुई देवी के रूप में शोभा पाती हैं, आप दक्ष की सुन्दर पुत्री हैं, आप माता के रूप में अपने वाम तथा स्वादमय पयोधरसे [भक्त शिशुओंका] प्रिय सम्पादन करनेवाली हैं, आप सौभाग्य की माहेश्वरी हैं, आप भक्तों की अभिलाषा पूर्ण करनेवाली और सदा उनका कल्याण करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं, आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।८।।
❑अर्थ➠ आप कोटि-कोटि चन्द्र-सूर्य-अग्नि के समान जाज्वल्यमान प्रतीत होती हैं, आप चन्द्र किरणों के समान [शीतल] तथा बिम्बाफल के समान रक्त-वर्णक अधरोष्ठवाली हैं, चन्द्र-सूर्य तथा अग्नि के समान प्रकाशमान केश धारण करनेवाली हैं, आप चन्द्रमा तथा सूर्य के समान देदीप्यमान वर्णवाली ईश्वरी हैं, आपने अपने हाथों में] माला, पुस्तक, पाश तथा अंकुश धारण कर रखा है, आप काशीपुरीकी अधीश्वरी हैं, अपनी कृपाका आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियों की] माता हैं; आप भगवती अन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।९।।
❑अर्थ➠ आप घोर संकट की स्थिति में अपने भक्तों की रक्षा करती है, भक्तों को महान् अभय प्रदान करती हैं। आप मातृस्वरूपा हैं, आप कृपासमुद्र हैं, आप साक्षात् मोक्ष प्रदान करनेवाली हैं, आप सदा कल्याण करनेवाली हैं, आप भगवान् विश्वनाथका ऐश्वर्य धारण करनेवाली है यज्ञ का विध्वंस करके आप दक्ष को रुलानेवाली हैं, आप रोग से मुक्त करनेवाली हैं, आप काशीपुरी की अधीश्वरी हैं, अपनी कृपा आश्रय देनेवाली हैं, आप [समस्त प्राणियोंकी] माता हैं, आप भवगतीअन्नपूर्णा हैं; मुझे भिक्षा प्रदान करें।।१०।।
❑अर्थ➠ सारे वैभवों से सदा परिपूर्ण रहनेवाली तथा भगवान् शंकर की प्राणप्रिया हे अन्नपूर्णे! हे पार्वती!! ज्ञान तथा वैराग्यकी सिद्धिके लिये मुझे भिक्षा प्रदान करें।।११।।
❑अर्थ➠ भगवती पार्वती मेरी माता है, भगवान् महेश्वर मेरे पिता हैं। सभी शिवभक्त मेरे बन्धु-बान्धव हैं और तीनों लोक मेरा अपना ही देश है [यह भावना सदा मेरे मन में बनी रहे]।।१२।।
इस प्रकार श्रीमत् शंकराचार्यविरचित श्रीअन्नपूर्णा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।