अब पछिताय होत क्या चिड़िया चुग गयी खेत

अब पछिताय होत क्या चिड़िया चुग गयी खेत

आछे दिन पाछे गये, हरि से किया न हेत।
अब पछिताय होत क्या, चिड़िया चुग गयी खेत।।

यह दोहा आपने भले ही न सुना हो, लेकिन
अब पछिताय होत क्या, चिड़िया चुग गयी खेत
इस पंक्ति से अवश्य ही परिचित होंगे। इस पंक्ति को कभी न कभी हमने दोहराया ही होगा। अक्सर किसी की ग़लती पर हम इस पंक्ति को अपने-अपने ढंग से कह देते हैं कि अब पछताने से से कुछ नहीं होगा, चिड़िया खेत चुग गयी।

लेकिन कबीरजी का यह दोहा, हर मनुष्य के जीवन की सच्चाई है। हम दूसरों के लिये बोल देते हैं, लेकिन हम भी उसी क़तार में खड़े हैं।

समय पसार हो जाता है, जिसके लिये मनुष्य जन्म मिला, उस बारे में कुछ नहीं सोचा, अन्त में लगता है कि हमने सारा जीवन व्यर्थ ही गँवा दिया।
तब इस दोहे की यही पंक्ति हम पर लागू हो जाती है
अब पछिताय होत क्या, चिड़िया चुग गयी खेत

यह दोहा बड़ा ही सरल और बड़ा ही गूढ़ अर्थ रखता है। आछे दिन पाछे गये, हरि से किया न हेत अर्थात् अच्छे दिन बीत गये भगवान की भक्ति नहीं की।

मनुष्य का स्वभाव है, वो जीता तो वर्तमान में है, लेकिन सोचता है भविष्य या भूतकाल के बारे में। या तो भविष्य के बारे में सोचकर चिन्तित होगा या फिर भूतकाल की बातें सोचकर पश्चाताप या ग्लानि से भर जाता है। लेकिन वर्तमान, जिसे अच्छी तरह से जिया जाये तो भूतकाल भी अच्छा होगा और भविष्य भी। क्योंकि सबको वर्तमान से होकर ही पसार होना है। इसलिये अनुभवी लोग कहा करते हैं, सबसे अच्छा समय आज है, इसे अच्छी तरह से जियो। तो न भविष्य की चिन्ता होगी, न भूतकाल की।

कबीरजी ने अध्यात्म की दृष्टि से कहा है कि हरि से मुलाक़ात नहीं किया। मतलब यह मनुष्य जन्म ईश्वर की भक्ति करने के लिये मिला था, लेकिन इसे संसार के सुखों के पीछे निचोड़ डाला। अब पछताने से क्या होगा? अच्छे दिन मतलब जवानी बीत गयी, बुढ़ापे में क्या भक्ति करेंगे, न शरीर साथ देगा, न इन्द्रियाँ।

जो मनुष्य यह सोचता है कि फ़ॅमिली अच्छे से सेटल करके बुढ़ापे में आराम से भगवान का भजन करेंगे, उससे बड़ा बेवकूफ़ कोई नहीं। भगवान के चरणों में बासी फूल नहीं, ताज़े फूल चढ़ाये जाते हैं। जो जवानी में भगवान की भक्ति करता है, भगवान उस पर जल्दी राज़ी हो जाते हैं। इसलिये लोगों पर कटाक्ष करने के लिये मत कहो कि
अब पछिताय होत क्या, चिड़िया चुग गयी खेत।।

बल्कि
आछे दिन पाछे गये, हरि से किया न हेत।

दोहे की इस पंक्ति को याद करके ईश्वर से प्रीति कर जीवन को सही दिशा में ले जाना ही समझदारी का काम है।