आख़री शब्द कहानी

आख़री शब्द (कहानी)

दोस्ती एक विश्वास है। मौत तो एक दिन सबको आनी है, लेकिन सच्चे दोस्त की बाँहों में आये तो वह मौत भी अनमोल सुख का अहसास है।

यह कहानी दो दोस्तों की है, हैरी और बिल। दोनों बचपन के ऐसे मित्र थे, जो स्कूल, कॉलेज यहाँ तक कि फ़ौज में भी साथ ही भर्ती हुए।

एक बार युद्ध छिड़ गया और दोनों एक ही यूनिट में थे। एक रात उन पर हमला हुआ। चारों तरफ़ से गोलियाँ बरस रही थीं। ऐसे में अँधेरे से एक आवाज़ आई- “हैरी, मेरी मदद करो।”

हैरी ने अपने बचपन के मित्र बिल की आवाज़ फ़ौरन पहचान ली। उसने अपने कैप्टन से पूछा- “क्या मैं जा सकता हूँ?”
कैप्टन ने जवाब दिया- “नहीं, मैं तुम्हें जाने की इजाज़त नहीं दे सकता। मेरे पास पहले से ही आदमी कम हैं और मैं उनमें से एक और को खोना नहीं चाहना।”

बिल की आवाज़ फिर आयी- “हैरी, मेरी मदद करो हैरी। तुम कहाँ हो?”

बिल की आवाज़ ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह बचेगा नहीं। हैरी चुप बैठा रहा; क्योंकि कैप्टन ने उसे जाने की इजाज़त नहीं दी थी। लेकिन बिल की आवाज़ बार-बार आने लगी। हैरी अपने को और अधिक न रोक सका और उसने कैप्टन से कहा- “कैप्टन, वह मेरे बचपन का दोस्त है, मुझे उसकी मदद के लिये जाना ही होगा।”

कैप्टन ने बेमन से उसे जाने की इजाज़त दे दी। हैरी अँधेरे में रेंगता हुआ आगे बढ़ा और बिल को खींचकर अपने खण्ड में ले आया। उन लोगों ने पाया कि बिल मर चुका है। अब कैप्टन नाराज़ हो गया, उसने क्रुद्ध होकर हैरी से कहा- “मैंने कहा था ना, वो नहीं बचेगा। देखो, वह मर चुका है और तुम्हारे भी मारे जाने से मैं एक आदमी और खो बैठता, तुम्हारा जाना एक ग़लती थी।”

हैरी ने जवाब दिया- “नही कैप्टन, मेरा जाना एक ग़लती नही थी। मैंने जो किया, वह ठीक था। जब मैं बिल के पास पहुँचा तो वह जीवित था। उसने मेरी बाहों में दम तोड़ा। उसके आख़री शब्द थे।
“हैरी, मुझे यक़ीन था, तुम ज़रूर आओगे।”

सच में, सच्चे दोस्त की बाँहों में,
मौत भी ख़ुशी का पैग़ाम बन जाती है।