आदित्य हृदय स्तोत्र
वाल्मीकि रामायण के अनुसार आदित्य हृदय स्तोत्र अगस्त्य ऋषि द्वारा भगवान् श्रीराम को युद्ध में रावण पर विजय प्राप्ति हेतु दिया गया था। आदित्य हृदय स्तोत्र के नित्य पाठ से जीवन में अनेक कष्टों का निवारण होता है। इसके नियमित पाठ से मानसिक रोग, हृदय रोग, शत्रुभय-निवारण और असफलताओं पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।
इस स्तोत्र में सूर्यदेव की निष्ठापूर्वक उपासना करते हुए उनसे विजय मार्ग पर ले जाने का अनुरोध है। आदित्य हृदय स्तोत्र सभी प्रकार के पापों, कष्टों और शत्रुओं से मुक्ति करानेवाला, सर्व कल्याणकारी, आयु, आरोग्य, ऊर्जा और प्रतिष्ठा बढ़ानेवाला अति मंगलकारी विजय स्तोत्र है। परन्तु इसका लाभ हमें तभी मिलेगा जब हम इसे पढ़ सकेंगे।
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• विनियोग •
❑➧ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुप् छन्दः, आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
❍ ॐ अस्य आदित्य हृदय स्तोत्रस्या गस्त्यऋषिर नुष्टुप् छन्दः, आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ता शेष विघ्नतया ब्रह्म विद्या सिद्धौ सर्वत्र जय सिद्धौ च विनियोगः।
• गायत्री मन्त्र •
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।
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❀ आदित्य हृदय स्तोत्र ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)
❑➧ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।।१।।
❍ ततो युद्ध परि श्रान्तं
समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा
युद्धाय समुपस्थितम्।।१।।
❑➧दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।२।।
❍ दैव तैश्च समागम्य
द्रष्टु मभ्यागतो रणम्।
उपगम्या ब्रवीद् राम
मगस्त्यो भगवान् स्तदा।।२।।
❑➧राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।।३।।
❍ राम राम महाबाहो
शृणु गुह्यं सनातनम्।
येन सर्वा नरीन् वत्स
समरे विजयि ष्यसे।।३।।
❑➧आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।।४।।
❍ आदित्य हृदयं पुण्यं
सर्व शत्रु विनाशनम्।
जयावहं जपं नित्य
मक्षयं परमं शिवम्।।४।।
❑➧सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।।५।।
❍ सर्व मङ्गल माङ्गल्यं
सर्व पाप प्रणाशनम्।
चिन्ता शोक प्रशमन
मायुर् वर्धन मुत्तमम्।।५।।
❑➧रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।६।।
❍ रश्मि मन्तं समु द्यन्तं
देवासुर नमस्कृतम्।
पूजयस्व विव स्वन्तं
भास्करं भुवनेश्वरम्।।६।।
❑➧सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभि:।।७।।
❍ सर्व देवात्मको ह्येष
तेजस्वी रश्मि भावन:।
एष देवा सुरगणाँल्
लोकान् पाति गभस्तिभि:।।७।।
❑➧एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति:।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः।।८।।
❍ एष ब्रह्मा च विष्णुश्च
शिव: स्कन्द: प्रजापति:।
महेन्द्रो धनद: कालो
यम: सोमो ह्यापां पतिः।।८।।
❑➧पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु:।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर:।।९।।
❍ पितरो वसव: साध्या
अश्विनौ मरुतो मनु:।
वायुर् वह्निः प्रजाः प्राण
ऋतु कर्ता प्रभाकर:।।९।।
❑➧आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर:।।१०।।
❍ आदित्य: सविता सूर्य:
खग: पूषा गभस्तिमान्।
सुवर्ण सदृशो भानुर्
हिरण्य रेता दिवाकर:।।१०।।
❑➧हरिदश्व: सहस्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।।११।।
❍ हरिदश्व: सहस्रार्चि:
सप्त सप्तिर् मरीचिमान्।
तिमिरोन् मथन: शम्भुस्
त्वष्टा मार्तण्डकों ऽशुमान्।।११।।
❑➧हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशन:।।१२।।
❍ हिरण्य गर्भ: शिशिरस्
तपनोऽ हस्करो रवि:।
अग्नि गर्भोऽदिते: पुत्रः
शङ्खः शिशिरनाशन:।।१२।।
❑➧व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः।।१३।।
❍ व्योम नाथस् तमो भेदी
ऋग्यजु: साम पारग:।
घन वृष्टि रपां मित्रो
विन्ध्य वीथी प्लवङ्गमः।।१३।।
❑➧आतपी मण्डली मृत्यु: पिङ्गल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा रक्त: सर्वभवोद्भव:।।१४।।
❍ आतपी मण्डली मृत्यु:
पिङ्गल: सर्व तापन:।
कविर् विश्वो महा तेजा
रक्त: सर्व भवोद् भवः।।१४।।
❑➧नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।१५।।
❍ नक्षत्र ग्रह ताराणा
मधिपो विश्व भावन:।
तेज सामपि तेजस्वी
द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।।१५।।
❑➧नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम:।।१६।।
❍ नम: पूर्वाय गिरये
पश्चिमा याद्रये नम:।
ज्योतिर् गणानां पतये
दिनाधि पतये नम:।।१६।।
❑➧जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:।
नमो नम: सहस्रांशो आदित्याय नमो नम:।।१७।।
❍ जयाय जय भद्राय
हर्य श्वाय नमो नम:।
नमो नम: सहस्रांशो
आदित्याय नमो नम:।।१७।।
❑➧नमः उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नम:।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।१८।।
❍ नमः उग्राय वीराय
सारङ्गाय नमो नम:।
नम: पद्म प्रबोधाय
प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।।१८।।
❑➧ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम:।।१९।।
❍ ब्रह्मे शाना च्युतेशाय
सुरा यादित्य वर्चसे।
भास्वते सर्व भक्षाय
रौद्राय वपुषे नम:।।१९।।
❑➧तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम:।।२०।।
❍ तमोघ्नाय हिमघ्नाय
शत्रुघ्ना यामि तात्मने।
कृतघ्न घ्नाय देवाय
ज्योतिषां पतये नम:।।२०।।
❑➧तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।।२१।।
❍ तप्त चामी करा भाय
हरये विश्व कर्मणे।
नमस् तमो ऽभिनिघ्नाय
रुचये लोक साक्षिणे।।२१।।
❑➧नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि:।।२२।।
❍ नाश यत्येष वै भूतं
तमेष सृजति प्रभु:।
पायत्येष तपत्येष
वर्षत्येष गभस्तिभि:।।२२।।
❑➧एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।।२३।।
❍ एष सुप्तेषु जागर्ति
भूतेषु परि निष्ठित:।
एष चैवाग्नि होत्रं च
फलं चैवाग्नि होत्रिणाम्।।२३।।
❑➧देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभु:।।२४।।
❍ देवाश्च क्रत वश्चैव
क्रतूनां फलमेव च।
यानि कृत्यानि लोकेषु
सर्वेषु परम प्रभु:।।२४।।
❑➧एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव।।२५।।
❍ एनमा पत्सु कृच्छ्रेषु
कान्ता रेषु भयेषु च।
कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्
नावसीदति राघव।।२५।।
❑➧पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि।।२६।।
❍ पूजय स्वैन मेकाग्रो
देव देवं जगत् पतिम्।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा
युद्धेषु विजयि ष्यसि।।२६।।
❑➧अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।।२७।।
❍ अस्मिन् क्षणे महा बाहो
रावणं त्वं जहिष्यसि।
एव मुक्त्वा ततो ऽगस्त्यो
जगाम स यथागतम्।।२७।।
❑➧एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।२८।।
❍ एतच् छ्रुत्वा महा तेजा
नष्ट शोकोऽ भवत् तदा।
धारया मास सुप्रीतो
राघवः प्रयतात्मवान्।।२८।।
❑➧आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।।२९।।
❍ आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं
परं हर्ष मवाप्तवान्।
त्रिरा चम्य शूचिर् भूत्वा
धनुरादाय वीर्यवान्।।२९।।
❑➧रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।।३०।।
❍ रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा
जयार्थं समुपागमत्।
सर्व यत्नेन महता
वृतस् तस्य वधेऽ भवत्।।३०।।
❑➧अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण:।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।।३१।।
❍ अथ रविर वदन् निरीक्ष्य रामं
मुदित मना: परमं प्रहृष्य माण:।
निशिचर पति संक्षयं विदित्वा
सुरगण मध्यगतो वचस् त्वरेति।।३१।।
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