काग़ज़ की भूमिका
इन्सान के हर काम में काग़ज़ की अहम् भूमिका है। सच भी काग़ज़ पर लिखा जाता है और झूठ भी काग़ज़ पर! शिक्षा की शुरूआत भी काग़ज़ से होती है और अन्त भी काग़ज़ के कुछ पन्नों (डिग्रियों) पर! जन्म का प्रमाणपत्र भी काग़ज़ पर बनता है और मृत्यु का प्रमाणपत्र भी काग़ज़ पर! विवाह भी काग़ज़ पर और तलाक़ भी काग़ज़ पर!
आज भले ही हर कार्य कम्प्यूटर से हो रहा है, लेकिन दिल को तसल्ली तब मिलती है, जब वह चीज़ काग़ज़ (Print out) पर उतर आये।
काग़ज़ ने ही इन्सान के ज़िन्दगी को हर पुरुषार्थ करने लिये मजबूर कर रखा है। जिसके पास काग़ज़ के नोट हैं, वही धनवान हैं, विचारों का धनवान तो भिखारी है। जिसके पास काग़ज़ की डिग्रियाँ हैं, उसी के पास कौशल है, अनुभवी व्यक्ति तो दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक (नोटबन्दी) करके यह महसूस करवा दिया था कि रुपये सिर्फ़ काग़ज़ हैं, रुपयों की क़ीमत तो सरकार है, यदि सरकार उन काग़ज़ों पर से अपना अधिकार हटा ले तो वे सिर्फ़ काग़ज़ ही हैं।
लेकिन काग़ज़ का केवल स्वरूप बदला, उसकी भूमिका नहीं! आज भी लोक-व्यवहार के लिये काग़ज़ ही अपना किरदार निभा रहा है।
आज मोबाइल द्वारा पैसे की लेन-देन हो जाती है, लेकिन कहीं पर बात अटक जाये तो काग़ज़ पर ही बात आकर रुक जाती है। काग़ज़ के रुपये या काग़ज़ के धनादेश (चेक) ही प्रमाण के तौर पर विश्वास दिलाते हैं और उस मसले का हल निकलता है।
कहीं झगड़ा-तक़रार हो जाये और उसका सही ढंग से समाधान ढूँढ़ना हो तो फिर काग़ज़ का ही सहारा लेना पड़ता है। चाहे पुलिस थाने में रपट लिखवाकर या कोर्ट कचहरी धक्के खाकर समाधान मिले, लेकिन अन्त में कुछ काग़ज़ों पर ही उस समस्या का समाधान होता है।
कैमरे में कितनी भी अच्छी तस्वीर क़ैद हो, जब क़रीब से देखने की बात आती है तो उसे काग़ज़ पर ही छापा जाता है। शायद इसलिये कि काग़ज़ के बल पर ही ज़िन्दगी को चलाया जाता है।
ज्ञान कितना भी समाज में फैला हो, लेकिन काग़ज़ पर लिखकर ही उसे समझाया जाता है। काग़ज गल जाता है, फट जाता है, फिर भी उसे सँभाला जाता है, लेमिनेशन कराया जाता है। शायद इसलिये कि काग़ज़ के बल पर ही ज़िन्दगी को चलाया जाता है।
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सुगम ज्ञान संगम के मेरी क़लम स्तम्भ में ‘काग़ज की भूमिका’ पोस्ट में ‘मज़ा ही कुछ और है…’ का आनन्द लें।
सही है। बहुत अच्छा!
धन्यवाद!
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