कालभैरवाष्टकम् श्रीमद् शंकराचार्य द्वारा रचित स्तोत्र है। इसका प्रवाह शिवताण्डव की तरह ही है।
कालभैरव भगवान् शिव के स्वरूप माने जाते हैं। इनकी उपासना जीवन में आनेवाली कठिनाइयों, विघ्न-बाधाओं का निवारण करती है। भैरव भय मिटानेवाले भरण-पोषण करनेवाले देवता माने जाते हैं।
कालिकापुराण के अनुसार भैरव शिवजी के गण हैं। इनका वाहन कुत्ता है। किसी भी शक्तिपीठ पर इनकी पूजा और प्रसन्नता के बाद ही देवी की पूजा फलीभूत मानी जाती है।
शिवमहापुराण के अनुसार मार्गशीर्ष माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को दोपहर के समय भैरव की उत्पत्ति हुई है। इस तिथि को कालभैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में अनेक किंवदन्तियाँ मिलती हैं। कहा जाता है अन्धकासुर नामक दैत्य अपने मद में चूर होकर भगवान् शिव पर आक्रमण कर बैठा, तब शिवजी के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी।
आइये,
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में श्रीकालभैरवाष्टकम् के मूलमन्त्रों के साथ अर्थ जानते हैं।
☸ श्रीकालभैरवाष्टकम् ☸
(❑➧मूलमन्त्र ❍लघुशब्द ❑अर्थ➠)
❑➧देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगम्बरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।१।।
❍ देवराज सेव्य मान पावनाङ्घ्रि पङ्कजं
व्याल यज्ञ सूत्र मिन्दु शेखरं कृपा करम्।
नारदादि योगि वृन्द वन्दितं दिगम्बरं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।१।।
❑अर्थ➠ जिनके पवित्र चरण-कमल की सेवा देवराज इन्द्र सदा करते रहते हैं तथा जिन्होंने शिरोभूषण के रूप में चन्द्रमा और सर्प का यज्ञोपवीत धारण किया है। जो दिगम्बर-वेश में हैं एवं नारद आदि योगियों का समूह जिनकी वन्दना करता रहता है, ऐसे काशी नगरीके स्वामी कृपालु कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।१।।
❑➧भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमम्बुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।२।।
❍ भानु कोटि भास्वरं भवाब्धि तारकं परं
नील कण्ठ मीप्सि तार्थ दायकं त्रिलोचनम्।
काल काल मम्बु जाक्ष मक्ष शूल मक्षरं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।२।।
❑अर्थ➠ जो करोड़ों सूर्यों के समान दीप्तिमान्, संसार-समुद्र से तारनेवाले, श्रेष्ठ, नीले कण्ठवाले, अभीष्ट वस्तु को देनेवाले, तीन नयनोंवाले, काल के भी महाकाल, कमल के समान नेत्रवाले तथा अक्षमाला और त्रिशूल धारण करनेवाले हैं, उन काशी नगरी के स्वामी अविनाशी कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।२।।
❑➧शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम्।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।३।।
❍ शूल टङ्क पाश दण्ड पाणि मादि कारणं
श्याम कायमादि देव मक्षरं निरामयम्।
भीम विक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डव प्रियं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।३।।
❑अर्थ➠ जिनके शरीर की कान्ति श्यामवर्ण की है तथा जिन्होंने अपने हाथों में शूल, टंक, पाश और दण्ड धारण किया है। जो आदिदेव, अविनाशी और आदिकारण हैं, जो त्रिविध तापोंसे रहित हैं और जिनका पराक्रम महान् है। जो सर्वसमर्थ हैं एवं विचित्र ताण्डव जिनको प्रिय है, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।३।।
❑➧भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम्।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।४।।
❍ भुक्ति मुक्ति दायकं प्रशस्त चारुविग्रहं
भक्त वत्सलं स्थितं समस्त लोक विग्रहम्।
विनिक्वणन् मनोज्ञ हेम किङ्किणी लसत्कटिं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।४।।
❑अर्थ➠ जिनका स्वरूप सुन्दर और प्रशंसनीय है, सारा संसार ही जिनका शरीर है, जिनके कटिप्रदेश में सोने की सुन्दर करधनी रुनझुन करती हुई सुशोभित हो रही है, जो भक्तोंके प्रिय एवं स्थिर शिवस्वरूप हैं, ऐसे भुक्ति तथा मुक्ति प्रदान करनेवाले काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।४।।
❑➧धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम्।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।५।।
❍ धर्म सेतु पालकं त्वधर्म मार्ग नाशकं
कर्म पाश मोचकं सुशर्म दायकं विभुम्।
स्वर्ण वर्ण शेष पाश शोभिताङ्ग मण्डलं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।५।।
❑अर्थ➠ जो धर्म-सेतु के पालक एवं अधर्म के नाशक हैं तथा कर्मपाश से छुड़ानेवाले, प्रशस्त कल्याण प्रदान करनेवाले और व्यापक हैं; जिनका सारा अंगमंडल स्वर्ण वर्णवाले शेषनाग से सुशोभित है, उसे काशीनगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।५।।
❑➧रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरञ्जनम्।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।६।।
❍ रत्न पादुका प्रभा भिराम पाद युग्मकं
नित्य मद्वितीय मिष्ट दैवतं निरञ्जनम्।
मृत्यु दर्प नाशनं कराल दंष्ट्र मोक्षणं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।६।।
❑अर्थ➠ जिनके चरणयुगल रत्नमयी पादुका (खड़ाऊ) की कान्ति से सुशोभित हो रहे हैं, जो निर्मल (मलरहित-स्वच्छ), अविनाशी, अद्वितीय तथा सभी के इष्ट देवता हैं। मृत्यु के अभिमान को नष्ट करनेवाले हैं तथा काल के भयंकर दाँतों से मोक्ष दिलानेवाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।६।।
❑➧अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसन्ततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम्।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकन्धरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।७।।
❍ अट्टहास भिन्न पद्म जाण्ड कोश सन्ततिं
दृष्टि पात नष्ट पाप जाल मुग्र शासनम्।
अष्ट सिद्धि दायकं कपाल मालि कन्धरं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।७।।
❑अर्थ➠ जिनके अट्टहास से ब्रह्माण्डों के समूह विदीर्ण हो जाते हैं, जिनकी कृपामयी दृष्टिपात से पापों के समूह विनष्ट हो जाते हैं, जिनका शासन कठोर है, जो आठों प्रकार का सिद्धियाँ प्रदान करनेवाले तथा कपाल की माला धारण करनेवाले हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर काल भैरव की मैं आराधना करता हूँ।।७।।
❑➧भूतसङ्घनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम्।।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे।।८।।
❍ भूत सङ्घ नायकं विशाल कीर्ति दायकं
काशि वास लोक पुण्य पाप शोधकं विभुम्।।
नीति मार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिका पुराधि नाथ काल भैरवं भजे।।८।।
❑अर्थ➠ समस्त प्राणी समुदाय के नायक हैं, जो अपने भक्तों को विशाल कीर्ति प्रदान करनेवाले हैं, जो काशी में निवास करने वाले सभी लोगों के पुण्य तथा पापों का शोधन करनेवाले और व्यापक हैं, जो नीतिमार्ग के महान् वेत्ता, पुरातन-से-पुरातन हैं, संसारके स्वामी हैं, ऐसे काशी नगरी के अधीश्वर कालभैरव की मैं आराधना करता हूँ।।८।।
❑➧कालभैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम्।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
ते प्रयान्ति कालभैरवाङ्घ्रिसन्निधिं ध्रुवम्।।९।।
❍ काल भैरवाष्टकं पठन्ति ये मनोहरं
ज्ञान मुक्ति साधनं विचित्र पुण्य वर्धनम्।
शोक मोह दैन्य लोभ कोप ताप नाशनं
ते प्रयान्ति काल भैरवाङ्घ्रि सन्निधिं ध्रुवम्।।९।।
❑अर्थ➠ ज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के साधन रूप, भक्तों के विचित्र पुण्य की वृद्धि करनेवाले, शोक-मोह-दीनता-लोभ-कोप तथा ताप को नष्ट करनेवाले इस मनोहर ‘कालभैरवाष्टक’ का जो लोग पाठ करते हैं, वे निश्चित ही काल भैरव चरणों की निधि प्राप्त कर लेते हैं।।९।।
।।इति श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचितं श्री कालभैरवाष्टक स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
❑अर्थ➠ इस प्रकार श्रीमद् शंकराचार्य विरचित श्री कालभैरवाष्टक स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।
Guruji Namaskar
mera naam vipul upadhyay hai aur mai gujarat se hun
muje Durga Saptasati 13 aadhya ko bol na shikh na hai
kripa aap shri aap ke Youtub ke madhyam se Durga Saptasati ka pura 1 se 13 aadhya ko bol na shikha ne kripa kare
Dhanyvad
आदरणीय सच मे आपका ये प्रयास अद्भुत है । आपका कोटि कोटि आभार
GURU JI AAP KO CHARAN VANDAN HUMARE MAIN DR VIJAY pAWAR
NAGPUR SE GURU JI HUM COPY KAR KE PRINT NAHI LE PA RAHE HAIN KRIPA KAR KE ISKA HAAL NIKALE TAKI HUM PRINT LEKE ROZ PADH SAKE JAI MAA TA DI
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बिल्कुल
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Atyant kalyan kari pryas…!!
Dhnywad evm abhar..!!
अप्रितम ! में पार्थ पटेल , गुजरात से हुँ , आप के इस भाषांतर एवं अर्थघटन के लिए आप को सादर प्रणाम !!
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देवाधिदेव सब का कल्याण करे 🙏