कैलेंडर की शुरुआत कैसे हुई?

कैलेंडर की शुरुआत कैसे हुई?

सभ्यता के आरम्भ में मनुष्य ने जब सूर्य को उदय अस्त होते देखा तो उसे दिन और रात का ज्ञान हुआ। चन्द्रमा के घटने और बढ़ने से उसने महीने की धारणा बनाई और शायद मौसमों के बदलने से उसे वर्ष का ज्ञान हुआ। जैसे-जैसे विज्ञान का विकास हुआ वैसे ही वैसे मनुष्य को कुछ सही-सही बातों का ज्ञान प्राप्त होता गया।

सूर्य के चारों ओर पृथ्वी को एक परिक्रमा करने में जितना समय लगता है, उसने उसे वर्ष कहना शुरू किया। चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करने में जितने दिन लेता है, वह एक महीना कहलाया और पृथ्वी अपने अक्ष (Axis) पर एक चक्कर पूरा करने में जितना समय लेती है, उसे दिन कहा गया। मिस्र (Egypt) के प्रारम्भिक कैलेंडरों में एक वर्ष 12 महीने का होता था और महीना 30 दिन का हुआ करता था। यद्यपि बाद में अतिरिक्त 5 दिन वर्ष के अंत में जोड़ दिए जाते थे, ताकि एक वर्ष ठीक 365.25 दिनों का हो जाये।

यूनान के लोग चंद्र कैलेंडर (Lunar Calendar) का प्रयोग किया करते थे, जिसमें अतिरिक्त 3 माह हर आठ वर्ष बाद जोड़ दिए जाते थे। यद्यपि 432 ई. पू. के ज्योतिषी मेटन ने ज्ञात किया कि 235 चंद्रमास 19 वर्षों में सही ढंग से व्यवस्थित हो जाते हैं। यही कैलेंडर उस समय के यहूदियों कैलेंडरों का आधार बना।

कैलेंडर के विकास की दिशा में सबसे पहला सही क़दम 46 ई. पू. में रोम के शासक ‘जूलियस सीजर’ (Julius Caesar) ने उठाया। उसने इस कार्य में अपने ज्योतिषशास्त्री ‘सौसीजन (Sosigenes) की सहायता ली। यह कैलेंडर पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमण में लिए गए समय पर आधारित था। इसका नाम सौर कैलेंडर (Solar Calendar) था।

पृथ्वी 365.25 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा करती है, इसलिए इस समय को एक वर्ष माना गया। सीजर के ज्योतिषियों ने वर्ष को 365 दिन का तथा हर चौथे वर्ष को 366 दिन माना ताकि हर वर्ष का चौथाई दिन चार वर्षों में पूरा हो जाए। इस चौथे वर्ष को लीप ईयर (Leap Year) कहा गया। जिस वर्ष के अंक 4 से विभाजित हो जाते थे, उस साल को लीप ईयर मान लिया जाता था।

365 दिनों को 12 महीनों में विभाजित किया गया। इनमें से जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, अक्तूबर और दिसम्बर 31 दिनों के महीने थे और अप्रैल, जून, सितम्बर और नवम्बर 30 दिन के थे। फ़रवरी 28 दिन की होती है। यह कैलेंडर लगभग 1600 वर्षों तक चलता रहा।

बाद में इसमें 10 दिन की गड़बड़ी पायी गयी। 1582 में इटली के ‘पोप ग्रेगरी’ ने इस कैलेंडर में सुधार किये; क्योंकि इसमें एक कमी रह गई थी। चूँकि पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा में वास्तव में 365.2422 दिन लगते हैं, अत: एक हजार साल की अवधि में 7-8 दिन का अंतर पड़ जाना स्वाभाविक था। इस अन्तर को दूर करने के लिए ग्रेगरी (Gregory) महोदय ने 1582 में यह सुधार किया कि जिन शताब्दियों की संख्या 400 से विभाजित नहीं हो पाती, उन शताब्दियों में फ़रवरी 28 दिन की होगी, जैसे सन् 1700 1800 1900 में फरवरी 28 दिन की थी, लेकिन सन् 2000 में यह 29 दिन की होगी। इसी कैलेंडर को ग्रेगोरियन कैलेंडर कहते हैं। इसका प्रयोग आज विश्व में हर जगह होता है।

दूसरा कैलेंडर चंद्रमा की गति पर आधारित है। इसे चन्द्र कैलेंडर या (Lunar Calendar) कहते हैं। चूँकि चन्द्रमा 29.5 दिन में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, अतः चंद्रमा की 12 परिक्रमाओं में 29.5 × 12=354 दिन हुए। इस प्रकार चंद्र वर्ष 354 दिन का बैठता है, जो सौर वर्ष से लगभग 11 दिन कम है। इस प्रकार तीन वर्षों में लगभग 33 दिन का अंतर आ जाता है। इस कमी को तीन वर्षों में 13 महीने का वर्ष मानकर पूरा कर लिया जाता है, इसी अतिरिक्त एक महीने को ‘मलमास’ कहते हैं। यह ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार बहुत ही वैज्ञानिक है, किन्तु आज के समय में हर माह में शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष ध्यान रखना लोगों को मुश्किल लगता है। इसलिये ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार महीने की तारीख़ लोग ध्यान रखते हैं। ख़ैर, भारत सरकार ने 22 मार्च, 1957 से चंद्र कैलेंडर के आधार पर शक संवत् को राष्ट्रीय कैलेंडर के रूप में स्वीकार किया। शक संवत् ईस्वी संवत् से 78 वर्ष पीछे पड़ता है।

इन दोनों कैलेंडरों के अतिरिक्त संसार के कुछ देशों में दूसरे अन्य कैलेंडर भी प्रचलित हैं, जो वहाँ के धार्मिक कार्यों में प्रयुक्त होते हैं।

जानिये, महीनों के नाम कैसे पड़े? 

 

5 Comments

  1. tofdupefe January 25, 2023
  2. tofdupefe February 2, 2023
  3. tofdupefe February 3, 2023
  4. tofdupefe February 4, 2023
  5. Boasexy February 24, 2023

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