कोरोना वायरस से कैसे बचें?
कोरोना वायरस (Coronavirus) एक संसर्गजन्य रोग है, जिसके विषाणु (Virus) श्वासोच्छवास, स्पर्श से फैल रहे हैं। इसने हर व्यक्ति के मन में दहशत फैला दिया है और दहशत होना स्वाभाविक ही है।
कहा जा रहा है, कोरोना वायरस चीन की देन है। वहाँ के कुछ मानवताहीन वैज्ञानिकों ने इस वायरस को तैयार किया था, क्यों किया था? किसलिये किया था? यह तो उन्हें पता, लेकिन मनुष्य जब-जब प्रकृति के साथ खिलवाड़ करता है तो उसे प्रकृति का कोपभाजन बनना ही पड़ता है। चीन में हज़ारों की संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है। आज इसकी चपेट में कई देश आ चुके हैं। कई देशों में कइयों की मौत हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया है।
अतः जितना हो सके सावधानी बरतें। प्राशासनिक सूचनाओं का सावधानी से पालन करें। लेकिन ध्यान रहे, सोशल मीडिया द्वारा अफ़वाहों और बेतुकी बातों का भी प्रसार हो रहा है, जो हमारे भीतर एक ग़लत मानसिकता पैदा कर रही हैं, अतः इसे मनोरोग न बनने दें।
यह सच है कि कोरोना वायरस एक संसर्गजन्य रोग है, श्वाच्छोवास से, खाँसने से, स्पर्श से यह रोग फैल रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सारी मानव जाति का यह अन्त कर देगा। इस संसार में हर चीज़, जो उत्पन्न होती है, उसका नाश अवश्यम्भावी है। हाँ, अपनी ओर से इस वायरस से बचने का प्रयास अवश्य करें।
क्या करें?
१) प्राशासनिक नियम एवं सूचनाओं का पालन करें।
२) छींकते या खाँसते समय मुँह ढँकें।
३) यदि आपको खाँसी-बुखार है तो किसी के सम्पर्क में न आयें।
४) सार्वजनिक भीड़-भाड़वाली जगह पर न जायें।
५) बाहर से घर आने पे साबुन से हाथ धो लें।
६) अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान दें, गन्दगी से दूर रहें।
७) अस्वस्थ महसूस होने पर डॉक्टर से मिलें।
८) मद्यपान, धूम्रपान, तम्बाखू, मांसाहार का सेवन न करें।
९) घर पर बनाये गये भोजन का सेवन करें।
१०) पानी उबालकर पीयें।
११) इस कोरोना वायरस को मनोरोग न बनने दें।
घर में आरोग्य मन्त्र का जप करें। ईश्वर पर आस्था रखें। निम्नलिखित किसी भी मन्त्र का अपनी आस्था रुचि अनुसार जप या श्रवण करें।
स्वास्थ्य मन्त्र (धन्वन्तरी प्रदत्त)
❑➧ अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारणभेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।
❑अर्थ➠ हे अच्युत! हे अनन्त!! हे गोविन्द!!! इन नामों के उच्चारणरूपी औषधि से सब रोग नष्ट हो जाते हैं। मैं यह सत्य कहता हूँ। सत्य कहता हूँ।
https://youtu.be/EM73bDBt0v
बीजमन्त्रसहित महामृत्युंजय मन्त्र का जप करें
विनियोग
ॐ अस्य श्रीमहामृत्युञ्जय मन्त्रस्य, वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः श्रीमहामृत्युञ्जय रुद्र देवता, हौं बीजम्, जूँ शक्तिः, सः कीलकम् (जिसके लिये जप करें उसका नाम) आयु, आरोग्य, यशः, कीर्ति, पुष्टि, वृद्धि अर्थे जपे विनियोगः।
बीजमन्त्रसहित महामृत्युंजय मन्त्र
❑➧ ॐ हौं जूँ सः। ॐ भूर्भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।। ॐ।।
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूँ हौं ॐ।
❑अर्थ➠ तीन नेत्रोंवाले भगवान् शिव की हम आराधना करते हैं, जो अपने मधुर सुवास (अपनी हर साँस से) सबको पोषण (सुख-शान्ति, आनन्द, आरोग्य, शक्ति) देकर परिपूर्ण करते हैं। वे हमें मृत्यु के बन्धनों से मुक्त करके अमरता (मोक्ष) प्रदान करें।
(इस मन्त्र में मानव शरीर के लिये ककड़ी का रूपक दिया गया है) जिस प्रकार ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के बाद बेल के बन्धन से मुक्त हो जाती है; उसी प्रकार हम भी अन्तिम समय में संसाररूपी बेल (जन्म-मृत्यु) के बन्धन से मुक्त होकर, मोक्ष को प्राप्त हों।
https://youtu.be/gL8msbonx3o
अथर्ववेद का शान्तिपाठ
❑➧ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
❑अर्थ➠ सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। त्रिविध तापों की शान्ति हो।
हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जप करें
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
दुर्गासप्तशती के ११वें अध्याय का २९वाँ श्लोक
❑➧ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
❑अर्थ➠ देवी! तुम प्रसन्न होनेपर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।
महामारी नाश के लिये
❑➧ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
❑अर्थ➠ जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बे आपको मेरा नमस्कार है।
उपरोक्त मन्त्र का घर में हवन करें। लोहबान, कपूर, गुग्गल आदि के हविष्याग्नि से रोग के विषाणु नष्ट हो जाते हैं।
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