कोई व्यक्ति जब किसी स्तोत्र का माहात्म्य सुनता है तो निश्चित ही उसका पाठ करना चाहता है, किन्तु वह संस्कृत में लिखे हुए श्लोकों को देखकर घबरा जाता है। वह समझ नहीं पाता कि श्लोक में आये शब्दों की वर्ण-सन्धि का उच्चारण कैसे करूँ?
https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट के माध्यम से मेरा यह प्रयास कि हिन्दी पढ़नेवाला व्यक्ति भी गजेन्द्रमोक्ष के श्लोकों को आसानी से पढ़ सके।
वास्तविकता तो यह है कि अनुष्टुप् छन्द पर आधारित श्लोकों को हिन्दी की सही जानकारी रखनेवाला हर व्यक्ति पढ़ सकता है; क्योंकि इसमें जो लिखा होता है, वही पढ़ना होता है। शुक्ल-यजुर्वेद के मन्त्रों की तरह य को ज और ष को ख उच्चारण करने जैसी क्लिष्टता नहीं रहती।
इस पोस्ट में मूल श्लोक गीताप्रेस से प्रकाशित किताब गजेन्द्रमोक्ष (कोड-225) पर आधारित है। पाठकों की सुविधा के लिये उच्चारण के अनुसार मूल शब्दों को लघु अर्थात् छोटे रूप में दर्शाया गया है, ये केवल शब्दों के छोटे रूप हैं, सन्धि-विच्छेदन नहीं है; क्योंकि सन्धि विच्छेदन से उच्चारण में अन्तर हो जाता है, जो उचित नहीं है।
जैसे
पुनर्निर्माण का सन्धि-विच्छेदन
पुन: + निर्माण
लेकिन उच्चारण की दृष्टि से केवल शब्द अलग होंगे इस प्रकार
पुनर् + निर्माण
अभ्युत्थानमधर्मस्य का सन्धि-विच्छेदन
अभ्युत्थानम् + अधर्मस्य
लेकिन उच्चारण की दृष्टि से
अभ्युत्थान + मधर्मस्य
या
अभ्युत्थानम + धर्मस्य होगा
दिव्यमेवं का सन्धि-विच्छेदन
दिव्यम् + एवं
लेकिन उच्चारण की दृष्टि से
दिव्य + मेवं होगा
इस वीडियो में मैंने उच्चारण की दृष्टि से ही शब्दों को छोटे रूप में दर्शाया है, अर्थ या सन्धि-विच्छेद की दृष्टि से नहीं।
अतः आलोचना की दृष्टि से इसे न पढ़ें, जो संस्कृत न जानते हुए भी संस्कृत के श्लोकों का पाठ कर सकें, यह उनके लिये है।
पोस्ट के अन्त में PDF उपलब्ध है।
भगवान् श्री हरि
❀ गजेन्द्रमोक्ष ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)
श्री शुक उवाच-
❑➧एवं व्यवसितो बुद्धया समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम्।।१।।
❍ एवं व्यवसितो बुद्धया
समाधाय मनो हृदि।
जजाप परमं जाप्यं
प्राग्-जन्मन्य-नु-शिक्षितम्।।१।।
गजेन्द्र उवाच-
❑➧ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम्।
पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि।।२।।
❍ ॐ नमो भगवते तस्मै
यत एतच्-चिदात्मकम्।
पुरुषा-यादि-बीजाय
परेशायाभि-धीमहि।।२।।
❑➧यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्।।३।।
❍ यस्मिन्-निदं यतश्-चेदं
येनेदं य इदं स्वयम्।
योऽस्मात्-परस्माच्च
परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्।।३।।
❑➧यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम्।
अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोऽवतु मां परात्परः।।४।।
❍ यः स्वात्म-नीदं निज-माय-यार्पितं
क्वचिद्-विभातं क्व च तत्-तिरोहितम्।
अविद्ध-दृक् साक्ष्यु-भयं तदीक्षते
स आत्म-मूलोऽवतु मां परात्परः।।४।।
❑➧कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।
तमस्तदाऽऽसीद् गहनं गभीरं यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः।।५।।
❍ कालेन पञ्चत्व-मितेषु कृत्स्नशो
लोकेषु पालेषु च सर्व-हेतुषु।
तमस्-तदाऽऽसीद् गहनं गभीरं
यस्तस्य पारे-ऽभि-विराजते विभुः।।५।।
❑➧न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु।।६।।
❍ न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्
जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।
यथा नटस्या-कृति-भिर्वि-चेष्टतो
दुरत्यया-नुक्रमणः स मावतु।।६।।
❑➧दिदृक्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं विमुक्तसङ्गा मुनयः सुसाधवः।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतात्मभूताः सुहृदः स मे गतिः।।७।।
❍ दिदृ-क्षवो यस्य पदं सुमङ्गलं
विमुक्त-सङ्गा मुनयः सुसाधवः।
चरन्त्य-लोक-व्रतम-व्रणं वने
भूतात्म-भूताः सुहृदः स मे गतिः।।७।।
❑➧न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा न नामरूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः स्वमायया तान्यनुकालमृच्छति।।८।।
❍ न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा
न नाम-रूपे गुणदोष एव वा।
तथापि लोकाप्यय-सम्भवाय यः
स्वमायया तान्य-नुकाल-मृच्छति।।८।।
❑➧तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये।
अरूपायोरुरूपाय नमः आश्चर्य कर्मणे।।९।।
❍ तस्मै नमः परेशाय
ब्रह्मणे-ऽनन्त-शक्तये।
अरू-पायोरु-रूपाय
नम आश्चर्य कर्मणे।।९।।
❑➧नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि।।१०।।
❍ नम आत्म-प्रदीपाय
साक्षिणे परमात्मने।
नमो गिरां विदूराय
मनसश्-चेतसा-मपि।।१०।।
❑➧सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्येण विपश्चिता।
नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे।।११।।
❍ सत्त्वेन प्रति-लभ्याय
नैष्कर्म्येण विपश्चिता।
नमः कैवल्य-नाथाय
निर्वाण-सुख-संविदे।।११।।
❑➧नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च।।१२।।
❍ नमः शान्ताय घोराय
मूढाय गुण-धर्मिणे।
निर्विशेषाय साम्याय
नमो ज्ञान-घनाय च।।१२।।
❑➧क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः।।१३।।
❍ क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं
सर्वा-ध्यक्षाय साक्षिणे।
पुरुषा-यात्म-मूलाय
मूल-प्रकृतये नमः।।१३।।
❑➧सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।
असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः।।१४।।
❍ सर्वेन्द्रिय-गुण-द्रष्ट्रे
सर्व-प्रत्यय-हेतवे।
असताच्छाय-योक्ताय
सदा-भासाय ते नमः।।१४।।
❑➧नमो नमस्तेऽखिलकारणाय निष्कारणायाद्भुतकारणाय।
सर्वागमाम्नायमहार्णवाय नमोऽपवर्गाय परायणाय।।१५।।
❍ नमो नमस्ते-ऽखिल-कारणाय
निष्कारणा-याद्भुत-कारणाय।
सर्वा-गमाम्नाय-महार्णवाय
नमो-ऽपवर्गाय परायणाय।।१५।।
❑➧गुणारणिच्छन्नचिदूष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय।
नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागमस्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि।।१६।।
❍ गुणा-रणिच्छन्न-चिदूष्मपाय
तत्क्षोभ-विस्फूर्जित-मानसाय।
नैष्कर्म्य-भावेन विवर्जितागम-
स्वयं-प्रकाशाय नमस्करोमि।।१६।।
❑➧मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीतप्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते।।१७।।
❍ मादृक्-प्रपन्न-पशुपाश-विमोक्षणाय
मुक्ताय भूरि-करुणाय नमो-ऽलयाय।
स्वांशेन सर्वतनु-भृन्-मनसि प्रतीत-
प्रत्यग्-दृशे भगवते बृहते नमस्ते।।१७।।
❑➧आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसङ्गविवर्जिताय।
मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय।।१८।।
❍ आत्मात्म-जाप्त-गृह-वित्त-जनेषु सक्तैर्
दुष्प्रापणाय गुण-सङ्ग-विवर्जिताय।
मुक्तात्मभिः स्व-हृदये परि-भाविताय
ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय।।१८।।
❑➧यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम्।।१९।।
❍ यं धर्म-कामार्थ-विमुक्ति-कामा
भजन्त इष्टां गति-माप्नु-वन्ति।
किं त्वाशिषो रात्यपि देहम-व्ययं
करोतु मेऽदभ्र-दयो विमोक्षणम्।।१९।।
❑➧एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं वाञ्छन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः।
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमङ्गलं गायन्त आनन्दसमुद्रमग्नाः।।२०।।
❍ एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं
वाञ्छन्ति ये वै भगवत्-प्रपन्नाः।
अत्यद्भुतं तच्-चरितं सुमङ्गलं
गायन्त आनन्द-समुद्र-मग्नाः।।२०।।
❑➧तमक्षरं ब्रह्म परं परेशमव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम्।
अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूरमनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे।।२१।।
❍ तमक्षरं ब्रह्म परं परेश
मव्यक्त-माध्यात्मिक-योग-गम्यम्।
अतीन्द्रियं सूक्ष्म-मिवाति-दू़र
मनन्त-माद्यं परि-पूर्ण-मीडे।।२१।।
❑➧यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः।
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः।।२२।।
❍ यस्य ब्रह्मादयो देवा
वेदा लोकाश्-चराचराः।
नाम-रूप-विभेदेन
फल्ग्व्या च कलया कृताः।।२२।।
❑➧यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत् स्वरोचिषः।
तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः।।२३।।
❍ यथार्चिषो-ऽग्नेः सवितुर्-गभस्तयो
निर्यान्ति संयान्त्य-सकृत् स्वरोचिषः।
तथा यतोऽयं गुण-सम्प्रवाहो
बुद्धिर्मनः खानि शरीर-सर्गाः।।२३।।
❑➧स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ् न स्त्री न षण्ढो न पुमान् न जन्तुः।
नायं गुण कर्म न सन्न चासन् निषेधशेषो जयतादशेषः।।२४।।
❍ स वै न देवासुर-मर्त्य-तिर्यङ्
न स्त्री न षण्ढो न पुमान् न जन्तुः।
नायं गुण कर्म न सन्न चासन्
निषेध-शेषो जयताद-शेषः।।२४।।
❑➧जिजीविषे नाहमिहामुया किमन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम्।।२५।।
❍ जिजीविषे नाह-मिहा-मुया कि
मन्तर्-बहिश्चा-वृतये-भयोन्या।
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्
तस्यात्म-लोका-वरणस्य मोक्षम्।।२५।।
❑➧सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम्।
विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोऽस्मि परं पदम्।।२६।।
❍ सोऽहं विश्व-सृजं विश्व
मविश्वं विश्व-वेदसम्।
विश्वात्मा-नमजं ब्रह्म
प्रणतोऽस्मि परं पदम्।।२६।।
❑➧योगरन्धितकर्माणो हृदि योगविभाविते।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम्।।२७।।
❍ योग-रन्धित-कर्माणो
हृदि योग-विभाविते।
योगिनो यं प्रपश्यन्ति
योगेशं तं नतो-ऽस्म्यहम्।।२७।।
❑➧नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेगशक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।
प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने।।२८।।
❍ नमो नमस्तुभ्य-मसह्यवेग-
शक्ति-त्रयाया-खिल-धी-गुणाय।
प्रपन्न-पालाय दुरन्त-शक्तये
कदिन्द्रियाणा-मनवाप्य-वर्त्मने।।२८।।
❑➧नायं वेद स्वमात्मानं यच्छक्त्याहंधिया हतम्।
तम् दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम्।।२९।।
❍ नायं वेद स्वमात्मानं
यच्छक्त्या-हंधिया हतम्।
तम् दुरत्यय-माहात्म्यं
भगवन्त-मितो-ऽस्म्यहम्।।२९।।
श्रीशुक उवाच-
❑➧एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं ब्रह्मादयो विविधलिङ्गभिदाभिमानाः।
नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात् तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत्।।३०।।
❍ एवं गजेन्द्र-मुप-वर्णित-निर्विशेषं
ब्रह्मा-दयो विविध-लिङ्ग-भिदा-भिमानाः।
नैते यदोपस-सृपुर्-निखिलात्म-कत्वात्
तत्रा-खिला-मरमयो हरि-रावि-रासीत्।।३०।।
❑➧तं तद्वदार्त्ततमुपलभ्य जगन्निवास: स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भिः।
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः।।३१।।
❍ तं तद्व-दार्त्त-मुप-लभ्य जगन्-निवास:
स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तु-वद्भिः।
छन्दो-मयेन गरुडेन समुह्य-मानश्
चक्रा-युधोऽभ्य-गम-दाशु यतो गजेन्द्रः।।३१।।
❑➧सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरिं ख उपात्तचक्रम्।
उत्क्षिप्त साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छ्रान्नारायणाखिल गुरो भगवन् नमस्ते।।३२।।
❍ सोऽन्तस्-सरस्युरु-बलेन गृहीत आर्तो
दृष्ट्वा गरुत्मति हरिं ख उपात्त-चक्रम्।
उत्क्षिप्त साम्बुज-करं गिरमाह कृच्छ्रान्
नारायणाखिल गुरो भगवन् नमस्ते।।३२।।
❑➧तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार।
ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं सम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्रियाणाम्।।३३।।
❍ तं वीक्ष्य पीडित-मजः सहसा-वतीर्य
सग्राह-माशु सरसः कृपयोज्ज-हार।
ग्राहाद् विपाटित-मुखादरिणा गजेन्द्रं
सम्पश्यतां हरि-रमू-मुच-दुस्रियाणाम्।।३३।।
Respect to article author, some good entropy.
Grapes contain variety of polyphenolic compounds largely anthocyanins, flavonols catechin, epicatechin, quercetin, procyanidin polymers, stilbenes resveratrol, and phenolic acids cialis tadalafil
Intravaginal 0 buy cialis 10mg Cre activity is controlled by red light by splitting Cre and fusing
10 DESI master plate layout using eight different solvents tamoxifen and vitamins to avoid In The Absence Of Glucose, A Course plus royal cbd gummies Of Called Ketosis Happens This Is A State cbd gummies 120 mg By Which The Body Burns Fats Instead Of Carbohydrates As Its Main Gas Supply When We Don T Eat Carbs, The Liver Breaks Full Spectrum Cbd Gummies cbd gummies 120 mg Down Fats Stores To Supply Energy
Sweet blog! I found it while surfing around on Yahoo News. Do you have any tips on how to get listed in Yahoo News? I’ve been trying for a while but I never seem to get there! Cheers
Thanx for the effort, keep up the good work Great work, I am going to start a small Blog Engine course work using your site I hope you enjoy blogging with the popular BlogEngine.net.Thethoughts you express are really awesome. Hope you will right some more posts.
Can Sleepytime Tea Lower Blood Pressure buy cialis online forum
buying cialis online reviews I had IDC in right breast 4 separate small tumors ie multi focal disease I opted for a lumpectomy
I like what you guys are up also. Such intelligent work and reporting! Carry on the excellent works guys I have incorporated you guys to my blogroll. I think it’ll improve the value of my web site :).