गणेश जी के २१ नाम
गणेशभक्त जानते ही होंगे कि भगवान् श्रीगणेश के सहस्रनाम का जप गणेशजी को सबसे अधिक प्रिय है और उन्हीं गणेश भगवान् के श्रीमुख से निकला उनके इक्कीस नामवाला स्तोत्र गणेशस्यैकविंशतिनामपाठः, जो सहस्रनाम के समान ही फलदायक है। श्रीगणेश पुराण के उपासना खण्ड में इस स्तोत्र का उल्लेख है। यह बहुत ही संक्षिप्त, सरल और प्रभावशाली है।
जो लोग संस्कृत के श्लोक नहीं बोल पाते है, वे यही सोचते हैं कि कोई छोटा और प्रभावशाली स्तोत्र मिल जाये, जिसे हम सरलतापूर्वक अच्छी तरह से पढ़ लें। उनके लिये यह सबसे उत्तम स्तोत्र है, जिसमें मात्र पाँच से छः श्लोक हैं। जिन श्लोकों को बड़ी आसानी से पढ़ा जा सकता है।
जो मनुष्य एक वर्ष तक इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती है। वैसे तो किसी भी शुभ दिन से इसकी शुरूआत की जा सकती है, किन्तु भाद्रपद माह की शुक्लपक्ष चतुर्थ तिथि अर्थात् गणेश चतुर्थी के दिन से इसका अनुष्ठान करना अतिउत्तम है। तो आइये, अनुष्टुप् छन्द पर आधारित इस स्तोत्र को
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में छोटे शब्दों की सहायता से बोलना सीखते हैं। मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित गणेशस्तोत्ररत्नाकर पर आधारित है। श्लोक बोलते समय विसर्ग (ः) आदि के उच्चारण पर ध्यान रखना आवश्यक है।
गणेशस्यैकविंशतिनामपाठः
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)
❑➧ॐ गणञ्जयो गणपतिर्हेरम्बो धरणीधर:।
महागणपतिर्लक्षप्रदः क्षिप्रप्रसादनः।।१।।
❍ ॐ गणञ्जयो गणपतिर्
हेरम्बो धरणीधर:।
महा गणपतिर् लक्ष
प्रदः क्षिप्रप्रसादनः।।१।।
❑➧अमोघसिद्धिरमितो मन्त्रश्चिन्तामणिर्निधि:।
सुमङ्गलो बीजमाशापूरको वरद: शिव:।।२।।
❍ अमोघ सिद्धि रमितो
मन्त्रश् चिन्तामणिर् निधि:।
सुमङ्गलो बीज माशा
पूरको वरद: शिव:।।२।।
❑➧काश्यपो नन्दनो वाचासिद्धो ढुण्ढिविनायकः।
मोदकैरेभिरत्रैकविंशत्या नामभिः पुमान्।।३।।
❍ काश्यपो नन्दनो वाचा
सिद्धो ढुण्ढि विनायकः।
मोदकै रेभि रत्रैक
विंशत्या नामभिः पुमान्।।३।।
❑➧(उपायनं ददेद्भक्त्या मत्प्रसादं चिकीर्षति।
वत्सरं विघ्नराजस्य तथ्यमिष्टार्थसिद्धये।।)
❍ (उपायनं ददेद् भक्त्या
मत् प्रसादं चिकीर्षति।
वत्सरं विघ्न राजस्य
तथ्य मिष्टार्थ सिद्धये।।)
❑➧य: स्तौति मद्गतमना मदाराधनतत्परः।
स्तुतो नाम्नां सहस्रेण तेनाहं नात्र संशयः।।४।।
❍ य: स्तौति मद् गतमना
मदाराधन तत्परः।
स्तुतो नाम्नां सहस्रेण
तेनाहं नात्र संशयः।।४।।
❑➧नमो नमः सुरवरपूजिताङ्घ्रये नमो नमो निरुपममङ्गलात्मने।
नमो नमो विपुलपदैकसिद्धये नमो नम: करिकलभाननाय ते।।५।।
❍ नमो नमः सुरवर पूजिताङ्घ्रये
नमो नमो निरुपम मङ्गलात्मने।
नमो नमो विपुल पदैक सिद्धये
नमो नम: करिकल भाननाय ते।।५।।
❑अर्थ➠ (१) गणंजय (२) गणपति (३) हेरम्ब (४) धरणीधर (५) महागणपति (६) लक्षप्रद (७) क्षिप्रप्रसादन (८) अमोघसिद्धि (९) अमित (१०) मन्त्र (११) चिन्तामणि (१२) निधि (१३) सुमंगल (१४) बीज, (१५) आशापूरक (१६) वरद (१७) शिव (१८) काश्यप (१९) नन्दन (२०) वाचासिद्ध तथा (२१) ढुण्ढिविनायक ⼀ये इक्कीस नाम-मोदक हैं। जो पुरुष इन मोदक स्वरूप इक्कीस नामों द्वारा (मुझे भक्ति पूर्वक उपहार अर्पित करता है; मेरा प्रसाद चाहता है और अभीष्ट-सिद्धि के लिये एक वर्ष तक मुझ विघ्नराज के इस यथार्थ स्तोत्र का पाठ करता है;) मुझमें मन लगाकर, मेरी आराधना में तत्पर रहकर मेरा स्तवन करता है, उसके द्वारा सहस्रनाम स्तोत्र से मेरी स्तुति हो जाती है, इसमें संशय नहीं है।।१-४।।
श्रेष्ठ देवताओं द्वारा पूजित चरणवाले गणेश को नमस्कार है, नमस्कार है। अनुपम मंगलस्वरूप गणपति को बारम्बार नमस्कार है। एकमात्र जिनसे विपुलपद परमधाम की सिद्धि होती है, उन गणाधीश को बार बार नमस्कार है। हे प्रभो! गजशावक के समान मुखवाले आपको बारम्बार नमस्कार है।।५।।
इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे महागणपतिप्रोक्त गणेशस्यैकविंशतिनामपाठः सम्पूर्ण:।।
इस प्रकार श्रीगणेश पुराण के अन्तर्गत उपासना खण्ड में महागणपति प्रोक्त गणेशजी के इक्कीस नामों का पाठ सम्पूर्ण हुआ।