ग्रहण क्या है?

ग्रहण क्या होता है? इस समय क्या लाभ और क्या हानि होती है? क्या करना चाहिये और क्या नहीं? ग़लत कार्य करने के दुष्परिणाम और सत्कर्म करने के पुण्यशाली प्रभाव। गर्भवती माँ-बहनें कैसे रहें? इस पोस्ट में इस प्रकार के ग्रहण से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

ग्रहण क्या है?

चन्द्रमा और सूर्य के बीच जब पृथ्वी आती है तब चन्द्रग्रहण तथा पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्र आता है तब सूर्यग्रहण होता है। चन्द्रग्रहण पूर्णिमा को और सूर्यग्रहण अमावस्या को ही होता है।

ग्रहण के समय सूर्य और चन्द्र की किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ना थोड़ी देर के लिए बन्द हो जाता है। इसका प्रभाव अग्नि-सोम द्वारा संचालित प्राणी-जगत पर भी पड़ता है और सूर्य-चन्द्र की किरणों द्वारा जो सूक्ष्म तत्त्वों में हलचल होती रहती है, वह भी उस समय बन्द हो जाती है।

हमारे जो सूक्ष्मतम अंग हैं, उनमें भी हिलचाल नहीं के समान हो जाती है। यही कारण है कि ग्रहण के समय कोई भी गन्दा भाव या गन्दा कर्म होता है तो वह स्थायी हो जाता है; क्योंकि उसका पसार नहीं हो पाता है।

इसलिए कहते हैं कि ग्रहण व सूतक में भोजन तो न करें, साथ ही ग्रहण से थोड़ी देर पहले से ही अच्छे विचार और अच्छे कर्म में लग जायें ताकि अच्छाई गहरी और स्थिर हो जाये। अच्छाई गहरी, स्थिर हो जायेगी तो व्यक्ति के स्वभाव में, मति-गति में सुख-शांति आयेगी, आयु, आरोग्य व पुष्टि मिलेगी। अगर गंदगी स्थिर होगी, रजो-तमोगुण स्थिर होंगे तो जीवन में चिंता, शोक, भय, विकार और व्यग्रता घुस जायेगी।

ग्रहण के समय किया हुआ ऐसा-वैसा कोई भी ग़लत या पाप कर्म अनन्त गुना हो जाता है और इस समय भगवद्-चिंतन, भगवद्-ध्यान, भगवद्-ज्ञान का लाभ ले तो वह व्यक्ति सहज में भगवद्-धाम, भगवद्-रस को पाता है। ग्रहण के समय अगर भगवद्-विरह पैदा हो जाता है तो वह भगवान को पाने में अत्यन्त सहायक है। ग्रहण के समय किया हुआ जप, मौन, ध्यान, प्रभु-सुमिरन अनेक गुना हो जाता है।

महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं कि रविवार को सूर्यग्रहण और सोमवार को चन्द्रग्रहण हो तो चूड़ामणियोग होता है। अन्य वारों में सूर्यग्रहण में जो पुण्य होता है, उससे करोड़ गुना पुण्य चूड़ामणि योग में कहा गया है। जैसे २१ जून २०२० रविवार के दिन सूर्यग्रहण है।

ग्रहणकाल में यदि सावधानी रही तो थोड़े ही समय में बहुत पुण्यमय, सुखमय जीवन होता है। उसी प्रकार थोड़ी-सी असावधानी हुई तो बड़े दुःख का सामना करना पड़ सकता है।

पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित लोग इन बातों को भले सुनी-अनसुनी कर दें, परन्तु हमारे ऋषि-मुनियों के कल्याणकारी निर्देशों की अवहेलना का परिणाम आज सबके सामने है। घटता हुआ शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक स्तर और बढ़ती हुई रोगों की संख्या, यह शास्त्र तथा ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों की अवज्ञा का ही परिणाम है। इस बात की वास्तविकता अब आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा सिद्ध हो रही है।

इसलिये भले हम कारण जानें या न जानें, ग्रहण के नियमों का पालन करना ज़रूरी है। इन नियमों को कपोल-कल्पित बातें अथवा अन्धविश्वास नहीं मानना चाहिए; क्योंकि इनके पीछे बहुत-से शास्त्रोक्त कारण होते हैं।

यदि हम ग़ौर करें तो ग्रहण के प्रभाव से वातावरण, पशु-पक्षियों के आचरण में भी परिवर्तन देखा जाता है, इससे यह स्पष्ट है कि मानवीय शरीर तथा मन के क्रिया-कलापों में भी परिवर्तन होते हैं।

तो आइये जानें ग्रहण के समय क्या करना चाहिये क्या नहीं करना चाहिये?

‘‘सूर्यग्रहण में ४ प्रहर (१२ घण्टे) और चन्द्रग्रहण में ३ प्रहर (९ घण्टे) पहले से सूतक माना जाता है। इस समय सशक्त व्यक्तियों को भोजन छोड़ देना चाहिए। इससे आयु, आरोग्य, बुद्धि की विलक्षणता बनी रहती है।

लेकिन जो बालक, बूढ़े, बीमार एवं गर्भवती स्त्रियाँ हैं, वे ग्रहण से १ से १.५ प्रहर (३ से ४.५घण्टे) पहले तक चुपचाप कुछ खा-पी लें तो चल सकता है। बाद में खाने से स्वास्थ्य के लिए बड़ी हानि होती है। गर्भवती महिलाओं को तो ग्रहण के समय ख़ास सावधान रहना चाहिए।

ग्रहणकाल में क्या करने से क्या हानि होती है?

(१) भोजन करनेवाला अधोगति को जाता है।
(२) जो सोता रहता है, वह रोग से ग्रसित हो जाता है। उसकी रोगप्रतिकारक शक्ति कम होने लगती है।
(३) जो लघुशंका (पेशाब) करता है, उसके घर में दरिद्रता आती है। जो शौच (२ नम्बर) जाता है उसको कृमिरोग होता है तथा कीट की योनि में जाना पड़ता है।
(४) जो संसार-व्यवहार (सम्भोग) करते हैं, उनको सूअर की योनि में जाना पड़ता है। यदि उस समय गर्भ टिक जाये तो आनेवाली सन्तान निश्चित तौर पर विकृत या अपंग होती है।
(५) तेल-मालिश करने या उबटन लगाने से कुष्ठरोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
(६) ठगाई करनेवाला सर्पयोनि में जाता है।
(७) चोरी करनेवाले को दरिद्रता पकड़ लेती है।
(८) जीव-जन्तु या किसी प्राणी की हत्या करनेवाले को नारकीय योनियों में जाना पड़ता है।
(९) पत्ते, तिनके, लकड़ी, फूल आदि न तोड़ें । दंतधावन, आज के समय में टूथब्रश न करें।
(१०) चिन्ता करते हैं तो बुद्धिनाश होता है।
(११) ग्रहण काल में भोजन बनाना, साफ़-सफ़ाई आदि घरेलू काम, पढ़ाई-लिखाई, कम्प्यूटर वर्क, नौकरी या बिजनेस आदि से सम्बन्धित कोई भी काम नहीं करने चाहिए; क्योंकि इस समय शारीरिक और बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है। ग्रहणकाल में घर से बाहर निकलना, यात्रा करना सूर्य के दर्शन करना निषिद्ध है।

ये करने से इहलोक-परलोक दोनों सँवरता है

(१) सूर्यग्रहण के समय रुद्राक्ष-माला धारण करने से पाप नष्ट हो जाते हैं।
(२) गुरुदीक्षा में मिले मन्त्र का ग्रहण के समय जप करने से उसकी सिद्धि हो जाती है।
(३) महर्षि वेदव्यासजी कहते हैं : ‘‘चन्द्रग्रहण के समय किया हुआ जप लाख गुना और सूर्यग्रहण के समय किया हुआ जप १० लाख गुना फलदायी होता है।’’ इसलिये जितना हो सके, वैदिक मन्त्र, स्तोत्र आदि का पाठ करें; जैसे⼀
(१) वैदिक मन्त्र
क) ॐ नमः शिवाय
ख) क्लीं कृष्णाय नमः
ग) ॐ एं सरस्वत्यै नमः
घ) ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ङ) ॐ नमो नारायणाय
च) ॐ हनुमते नमः
अपने इष्ट देव के अनुसार जो आपको प्रिय हो, उस मन्त्र का जप करें। यह उदाहरण मात्र है।

(२) स्वास्थ्य मन्त्र
क) अच्युतानन्त गोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।
ख) ॐ हंसं हंसः।

(३) गायत्री मन्त्र
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्।।

(४) महामृत्युञ्जय मन्त्र
ॐ हौं जूँ सः। ॐ भूर्भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।ॐ।।
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूँ हौं ॐ।

(५) देवी अथर्वशीर्ष के अन्तर्गत आया देवी मन्त्र
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे सर्वशक्त्यै च धीमहि।
तन्नो देवी प्रचोदयात्।।

(६) जो अभ्यासु हों, गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें।

(७) हनुमान चालीसा आदि का पाठ करें।

(८) अपने इष्टमन्त्र या गुरुमन्त्र का अधिक-से-अधिक जप करें।

(९) महामारी निवारण मन्त्र का जप करें
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।

(१०) भगवान् श्रीकृष्ण की वाणी गीता के अध्याय का पाठ करें।

तन्त्र-सिद्धि आदि के चक्कर में कदापि न पड़ें, जिससे मानव का आत्मिक पतन होता है।

खाद्य पदार्थ को दूषित होने से कैसे बचायें?

ग्रहण के कुछ समय पहले का बनाया हुआ अन्न ग्रहण के बाद त्याग देना चाहिए, लेकिन ग्रहण से पूर्व रखा हुआ दही या उबाला हुआ दूध तथा दूध, छाछ, घी या तेल – इनमें से किसी में सिद्ध किया हुआ अर्थात् ठीक से पकाया हुआ अन्न (पूड़ी आदि) ग्रहण के बाद भी सेवनीय है, परन्तु ग्रहण के पूर्व इनमें कुशा डालना ज़रूरी है।

सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें। ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिये, किन्तु जिन्हें यह सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं, ऐसा कुछ जानकारों का कहना है।

ग्रहण का कुप्रभाव वस्तुओं पर न पड़े इसलिए मुख्यरूप से कुशा का उपयोग होता है। इससे पदार्थ अपवित्र होने से बचते हैं। कुशा नहीं है तो तिल डालें। इससे भी वस्तुओं पर सूक्ष्म-सूक्ष्मतम आभाओं का प्रभाव कुंठित हो जाता है। तुलसी के पत्ते डालने से भी यह लाभ मिलता है, किन्तु दूध या दूध से बने व्यंजनों में तिल या तुलसी न डालें।

गर्भवती महिला के लिए ग्रहण में कुछ नियम विशेष पालनीय होते हैं। ध्यान रहे, इन नियमों से गर्भवती महिलायें अवगत रहें, परन्तु भयभीत न हों; क्योंकि भय का गर्भ पर विपरीत असर पड़ता है।

१) गर्भवती महिला को ग्रहणकाल से ४ घण्टे पूर्व इस प्रकार अन्न-जलपान कर लेना चाहिये कि ग्रहण के दौरान शौचादि के लिए जाना न पड़े।

२) गर्भिणी अगर चश्मा लगाती हो और चश्मा लोहे का हो तो उसे ग्रहणकाल तक निकाल देना चाहिए। बालों पर लगी पिन या नकली गहने भी उतार दें।

३) ग्रहणकाल में गले में तुलसी की माला या चोटी में कुश धारण कर लें।

४) ग्रहण के समय गर्भवती चाकू, कैंची, पेन, पेन्सिल जैसी नुकीली चीजों का प्रयोग न करें; क्योंकि इससे शिशु के होंठ कटने की सम्भावना होती है।

५) सूई का उपयोग अत्यन्त हानिकारक है, इससे शिशु के हृदय में छिद्र हो जाता है। किसी भी लोहे की वस्तु, दरवाजे की कुण्डी आदि को स्पर्श न करें, न खोले और न ही बंद करें।

६) ग्रहणकाल में सिलाई, बुनाई, सब्जी काटना या घर से बाहर निकलना व यात्रा करना हानिकारक है।

७) ग्रहण के समय भोजन करने से मधुमेह (डायबिटीज) का रोग हो जाता है या बालक बीमार होता है।

८) ग्रहणकाल में पानी पीने से गर्भवती स्त्री के शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) हो जाती है, जिस कारण बालक की त्वचा सूख जाती है।

९) लघुशंका (एक नम्बर) या शौच (दो नम्बर) जाने से बालक को कब्जियत का रोग होता है।

१०) गर्भवती वज्रासन में न बैठे, अन्यथा शिशु के पैर कटे हुए हो सकते हैं। शयन करने से शिशु अंधा या रोगी हो सकता है। ग्रहणकाल में बर्तन आदि घिसने से शिशु की पीठ पर काला दाग़ होता है।

११) ग्रहणकाल के दौरान मोबाइल का उपयोग आँखों के लिए अधिक हानिकारक है। उस दौरान निकले रेडियेशन से गर्भस्थ शिशु के विकास में रुकावट आ सकती है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसके कारण शिशु तनाव में भी जा सकता है। इसलिये फ़ोन का उपयोग बिल्कुल न करें।

१२) गर्भवती ग्रहणकाल में अपनी गोद में एक श्रीफल (सूखा नारियल) लेकर बैठे और ग्रहण पूर्ण होने पर उस नारियल को नदी अथवा अग्नि में समर्पित कर दे।

१३) ग्रहण से पूर्व देशी गाय के गोबर व तुलसी-पत्तों का रस (रस न मिलने पर तुलसी-अर्क का उपयोग कर सकते हैं) का गोलाई से पेट पर लेप करें। देशी गाय का गोबर न उपलब्ध हो तो गेरूमिट्टी का लेप करें अथवा शुद्ध मिट्टी का ही लेप कर लें। इससे ग्रहणकाल के दुष्प्रभाव से गर्भ की रक्षा होती है।

१४) गर्भिणी सम्पूर्ण ग्रहण काल में कमरे में बैठकर यज्ञों में सर्वश्रेष्ठ भगवन्नाम जप रूपी यज्ञ करे। ॐकार का दीर्घ उच्चारण करे। अगर लम्बे समय तक नहीं बैठ पाये तो लेटकर भी जप कर सकती है। जप करते समय गंगाजल पास में रखे। ग्रहण छूटने पर माला को गंगाजल से पवित्र करे और स्वयं वस्त्रों के साथ सिर से स्नान कर ले।

महर्षि कश्यप ऋषि कहते हैं,
सोमार्कौ सग्रहौ श्रुत्वा गर्भिणी गर्भवेश्मनी।
शान्तिहोमपराऽऽसीत मुक्तयोगं तु याचयेत।।
(काश्यप संहिता, जातिसूत्रीयशारीराध्याय)

जिसका अर्थ है, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण का ज्ञान होने पर गर्भिणी को गर्भवेश्म अर्थात् घर के भीतरी भाग (अंत: पुर) में जाकर शान्ति होम आदि कार्यों में लगकर चन्द्र तथा सूर्य की ग्रह द्वारा मुक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए।

संक्षिप्त में कहें तो

‘‘ग्रहण के समय कुछ-न-कुछ उथल-पुथल होती है। यदि अच्छा वातावरण है तो उथल-पुथल अच्छे ढंग से होगी और ख़राब है तो ख़राब ढंग से… जैसे मोम पिघलता है तब उसमें बढ़िया रंग डालो तो बढ़िया रंग की मोमबत्ती बनती है और हलका रंग डालो तो हलके रंगवाली मोमबत्ती बनती है।’’

ग्रहणकाल में सकारात्मक सोच रखते हुए हमें व्यर्थ के वार्तालाप, हिलचाल न करके भगवान् का चिन्तन करना चाहिये, भगवन्नाम का जप करना चाहिये ताकि भगवान में प्रीति हो।