जन गण मन राष्ट्रीय गीत
❛ जन गण मन अधिनायक जय हे…❜ भारतवर्ष के इस राष्ट्रगीत की रचना रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की है। रवीन्द्रनाथ टैगोर का नाम साहित्य-जगत् में बड़े आदर से लिया जाता है। कहा जाता है, उन्होंने आठ साल की उम्र में ही कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थी। उनका जन्म ७ मई १८६१ को कलकत्ता में हुआ था।
इस राष्ट्रगीत के सन्दर्भ में कहा जाता है, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक कविता लिखी थी, जो पाँच पदों में थी। उसी कविता के पहले पद को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया। २७ दिसम्बर १९११ को काँग्रेस के कलकत्ता (कोलकाता) अधिवेशन में इस गीत को पहली बार गाया गया था।
भारत सरकार द्वारा २४ जनवरी १९५० मंगलवार के दिन राष्ट्रगान के रूप में इस गीत को मान्यता मिली। इसे यूनेस्को की ओर से विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान घोषित किया गया है, जो हम भारतीयों के लिये गौरव की बात है। इसके गायन की अवधि लगभग ५२ सेकेण्ड तक मानी जाती है। जब इस राष्ट्रगान का सामूहिक रूप से गायन होता है तो श्रोताओं को सावधान-मुद्रा में खड़े होना आवश्यक है।
इसमें आये ‘भारत भाग्य विधाता’ शब्दों का अर्थ हर भारतीय से है या फिर भगवान से, ऐसा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्पष्ट किया था। आइये,
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सुगम ज्ञान संगम के हिन्दी साहित्य + राष्ट्रीय ज्ञान स्तम्भ में हम ईश्वर को सम्बोधित करके इसका हिन्दी में सरल अर्थ जानें।
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्यविधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा
द्राविड़ उत्कल बंगा।
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंगा।।
तव शुभ नामे जागे।
तव शुभ आशिष माँगे।।
गाहे तव जयगाथा…
जन गण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्यविधाता।।
जय हे! जय हे!! जय हे!!!
जय जय जय जय हे!!
जनगणमन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता!
❑अर्थ➠ हे भारत के भाग्यविधाता (ईश्वर)! जन समूह के मन (विचारों) के अधिनायक (स्वामी) आपकी जय हो।
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंगा।
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंगा।।
तव शुभ नामे जागे। तव शुभ आशिष माँगे।।
गाहे तव जयगाथा…
❑अर्थ➠ पंजाब (पंजाब तथा पंजाबी लोग), सिन्धु (सिन्ध, सिन्धु नदी के तट पर बसे लोग), गुजरात (गुजरात और गुजराती लोग), मराठा (महाराष्ट्र तथा मराठा लोग), द्राविड़ (दक्षिण भारत तथा द्राविड़ी लोग), उत्कल (उड़ीसा तथा वहाँ के लोग), बंग (बंगाल तथा बंगाली लोग), विन्ध्य-हिमाचल (विन्ध्याचल और हिमाचल अर्थात् हिमालय पर्वत शृंखला), यमुना-गंगा (ये दोनों नदियाँ) और उच्छल जलधि तरंग (उछलती सागर की लहरें) ये सब आपके शुभ नाम पर जाग उठते हैं, आपके शुभ आशिष पाने की अभिलाषा रखते हैं और आपकी ही विजय-गाथाओं का गान करते हैं
जन गण मंगल दायक जय हे, भारत भाग्य विधाता!
जय हे! जय हे!! जय हे!!! जय जय जय जय हे!!
❑अर्थ➠ हे भारत के भाग्यविधाता (ईश्वर)! जन समूह के मंगलदायक (सौभाग्य प्रदान करनेवाले) आपकी जय हो!
आपकी जय हो! आपकी जय हो!!आपकी जय हो!!! जय-जयकार हो! जय-जयकार हो!!
ध्यान दें ☟
कुछ लोगों की मान्यता है कि यह गीत रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जॉर्ज पंचम के लिये लिखी थी, लेकिन यह बात मुझे युक्तियुक्त नहीं लगती। राजीव दीक्षित के वीडियो में मैंने यह बात सुनी है। मैं राजीव दीक्षित का अन्तर्मन से आदर करता हूँ। लेकिन उनकी यह बात मेरे गले नहीं उतरती। भला एक कवि का हृदय इतने नीचले स्तर तक गिर सकता कि वह अँग्रेज़ों की ख़ुशामदी करे? चलो मान भी लें कि यह गीत जॉर्ज पंचम के लिये लिखी गयी थी, लेकिन कहीं तो जार्ज पंचम के नाम का ज़िक्र होना चाहिये? अन्य चार पदावली भी नीचे दी जा रही हैं, जिनमें भी ऐसा कुछ ज़िक्र नहीं मिलता।
अन्य ४ पदावली
अहरह तव आह्वान प्रचारित सुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध सिख जैन पारसिक मुसलमान ख्रिस्तानी
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पासे, प्रेमहार हय गाथा
जनगणऐक्यविधायक जय हे, भारत भाग्यविधाता।।
जय हे! जय हे!! जय हे!!! जय जय जय जय हे!!
पतन अभ्युदय बन्धुर पंथा युग युग धावित यात्री
तुम चिर सारथि तव रथचक्रे मुखरित पथ दिन रात्री
दारुण विप्लव माजे, तव शंखध्वनि बाजे, संकट दुःखत्राता
जनगणपथपरिचायक जय हे, भारत भाग्यविधाता।।
जय हे! जय हे!! जय हे!!! जय जय जय जय हे!!
घोर तिमिर घन निबिड निशीथे पीड़ित मूर्छित देशे
जागृत छिल तव अविचल मंगल नत नयने अनिमेषे
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके, स्नेहमयी तुमि माता
जनगणदुःखत्रायक जय हे, भारत भाग्यविधाता।।
जय हे! जय हे!! जय हे!!! जय जय जय जय हे!!
रात्र प्रभातिल उदिल रविच्छवि पूर्व उदयगिरि भाले
गाहे विहंगम पुण्य समीरण नवजीवन रस ढाले
तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे, तव चरणे नत माथा
जय हे जय हे जय जय जय हे, भारत भाग्यविधाता।।
जय हे! जय हे!! जय हे!!! जय जय जय जय हे!!
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