जयंती मंगला काली मंत्र
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती में अर्गलास्तोत्र का उल्लेख है। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा अर्गलास्तोत्र बोला गया है।
❑➧ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
यह अर्गलास्तोत्र का पहला श्लोक है। ॐ का सम्पुट लगाकर भी इस श्लोक का पाठ किया जाता है; जैसे
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
चूँकि यह अनुष्टुप् छन्द पर आधारित है और अनुष्टुप् छन्द में ३२ वर्ण होते हैं, अतः बिना ॐ के यह श्लोक पूर्ण है।
इस मन्त्र के बारे कहा गया है, महामारी से निदान पाने के लिये में इसका जप अतिप्रभावशाली है। इसे सुनकर बड़ी सरलता से बोला जा सकता है। जो बोल न सकें, उन्हें श्रवण अवश्य करना चाहिये।
इसका सामान्य अर्थ है
❑अर्थ➠ जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा ─ इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके। तुम्हें मेरा नमस्कार है।
इसमें आद्यशक्ति के ११ नामों का उल्लेख है, जिनका अपने आपमें सम्पूर्ण अर्थ है। जो देवी भक्त हैं, वे जानते ही होंगे कि इन नामों से क्यों आद्यशक्ति को पुकारा जाता है? शास्त्रों विलग-विलग कथाएँ हैं। आइये, https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट में प्रत्येक नामों का अर्थ जानें। इन नामों के अर्थ गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित किताब श्रीदुर्गा सप्तशती के आधार पर हैं।
१) जयन्ती ─ जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते इति ‘जयन्ती’ ─ सबसे उत्कृष्ट एवं विजयशालिनी है।
२) मंगला ─ मङ्गं जननमरणादिरूपं सर्पणं भक्तानां लाति गृह्णाति नाशयति या सा मङ्गला मोक्षप्रदा ─ जो अपने भक्तों के जन्म-मरण आदि संसार-बन्धन को दूर करती हैं, उन मोक्षदायिनी मंगलमयी देवी का नाम ‘मंगला’ है ।
३) काली ─ कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम् इति काली ─ जो प्रलयकाल में सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है, वह ‘काली’ है।
४) भद्रकाली ─ भद्रं मङ्गलं सुखं वा कलयति स्वीकरोति भक्तेभ्यो दातुम् इति भद्रकाली सुखप्रदा ─ जो अपने भक्तों को देने के लिये ही भद्र, सुख अथव मंगल स्वीकार करती है, वह ‘भद्रकाली’ है।
५) कपालिनी ─ हाथ में कपाल तथा गले में मुण्डमाला धारण करनेवाली ‘कपालिनी’ है।
६) दुर्गा ─ दु:खेन अष्टाङ्गयोगकर्मोपासनारूपेण क्लेशेन गम्यते प्राप्यते या सा दुर्गा ─ जो अष्टांगयोग, कर्म एवं उपासनारूप दुःसाध्य साधन से प्राप्त होती हैं, वे जगदम्बिका ‘दुर्गा’ कहलाती हैं।
७) क्षमा ─ क्षमते सहते भक्तानाम् अन्येषां वा सर्वानपराधान् जननीत्वेनातिशयकरुणामयस्वभावादिति क्षमा ─ सम्पूर्ण जगत् की जननी होने से अत्यन्त करुणामय स्वभाव होने के कारण जो भक्तों अथवा दूसरों के भी सारे अपराध क्षमा करती हैं, उनका नाम ‘क्षमा’ है।
८) शिवा ─ सबका शिव अर्थात् कल्याण करनेवाली जगदम्बा को ‘शिवा’ कहते हैं।
९) धात्री ─ सम्पूर्ण प्रपंच को धारण करने के कारण भगवती का नाम ‘धात्री’ है।
१०) स्वाहा ─ स्वाहा रूप से यज्ञभाग ग्रहण करके देवताओं का पोषण करनेवाली देवी का नाम ‘स्वाहा’ है।
११) स्वधा ─ स्वधा रूप से श्राद्ध और तर्पण को स्वीकार करके पितरों का पोषण करनेवाली देवी का नाम ‘स्वधा’ है।
दुर्गासप्तशती के कुछ सिद्ध सम्पुट-मन्त्र
१) सामूहिक कल्याण के लिये─
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः।।
२) विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये─
यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
३) विश्व की रक्षा के लिये─
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
४) विश्व के अभ्युदय के लिये─
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः।।
५) विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये─
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
६) विश्व के पाप-ताप-निवारण के लिये─
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-
र्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्।।
७) विपत्ति-नाश के लिये─
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
८) विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये─
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
९) भय-नाश के लिये─
(क) सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।
(ख) एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते।।
(ग) ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते।।
१०) पाप-नाश के लिये─
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव।।
११) रोग-नाश के लिये─
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
१२) महामारी-नाश के लिये─
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।
१३) आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये─
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
१४) सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिये─
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।
१५) बाधा-शान्ति के लिये─
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।
१६) सर्वविध अभ्युदय के लिये─
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां
तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा
येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना।।
१७) दारिद्र्यदुःखादि नाश के लिये─
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता।।
१८) रक्षा पाने के लिये─
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च।।
१९) समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये─
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।।
२०) सब प्रकार के कल्याण के लिये─
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
२१) शक्ति-प्राप्ति के लिये─
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।
२२) प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये─
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।
२३) विविध उपद्रवों से बचने के लिये─
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्।।
२४) बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये─
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।
२५) भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये─
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
२६) पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये─
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
२७) स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये─
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः।।
२८) स्वर्ग और मुक्ति के लिये─
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
२९) मोक्ष की प्राप्ति के लिये─
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।।
३०) स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये─
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
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