यह एक परम्परागत सुनी गयी कहानी है। इस कहानी का मूल स्रोत मेरे पास नहीं है। कहानी का शीर्षक मैंने प्रसंग के अनुसार रखा दिया है।
तोते की वेदना
एक बार किसी गाँव में एक तोता बेचनेवाला आया। उसके पास पिंजरे में बन्द एक ऐसा तोता था, जो एक ही सुर में कुछ तो बोलता था, पर उसकी समझ में नहीं आता था कि वह तोता क्या बोल रहा है? वह कई दिनों से इस बात को लेकर परेशान था। आख़िरकार, गाँव में प्रवेश करते ही उसने शर्त रख दी कि जो कोई यह बता देगा कि यह तोता क्या बोल रहा है, मैं उसे यह तोता मुफ़्त में दे दूँगा।
यह सुनकर बहुत-से लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गयी। एक भक्तराज का वहाँ से जाना हुआ, वे रुक गये और बोले─ “लाओ, ये तोता मुझे दे दो, मैं बताता हूँ यह क्या बोल रहा है।”
तोेतेवाला─ “हाँ-हाँ, ले जाओ। पहले ये बताओ कि यह क्या बोल रहा है?”
भक्तराज─ “यह बोल रहा है, राजा राम दशरथ!”
सारी भीड़ भक्तराज की बातों पर ग़ौर करने लगी।
तभी एक सब्जीवाला उस भीड़ से बोला─ “यह तोता कुछ और ही बोल रहा है।”
तोतेवाला─ “तो आप ही बताइये श्रीमान, यह तोता क्या बोल रहा है?”
सब्जीवाला─ “यह बोल रहा है, आलू प्याज अदरक!”
भीड़ हँसने लगी। तभी एक पहलवान उस भीड़ में आगे आया और बोला─ “ये दोनों ग़लत बोल रहे हैं। मैं बताता हूँ, यह तोता क्या बोल रहा है।”
तोतेवाला─ “फ़रमाइये, ये क्या बोल रहा है?”
पहलवान─ “दण्ड बैठक कसरत!”
सब हँसने लगे, लेकिन पहलवान ने रौब जमाते हुए चारों ओर नज़र घुमाई तो सबने चुप्पी साध ली। तोतेवाला समझ गया कि अब यह तोता पहलवान को ही देना पड़ेगा, वह बोला─ ” मुझे अब भी पता नहीं चल रहा है कि यह तोता क्या बोल रहा है, परन्तु आप लोगों का जवाब सुनकर मैंने यह तय किया है कि मनुष्य की जैसी दृष्टि होती है, वैसी ही उसकी सृष्टि होती है। अपनी जगह पर भक्तराज भी सही हैं, सब्जीवाले भाईसाहब सही बोल रहे हैं और पहलवान भी सही कह रहे हैं। लेकिन मैं कैसे तय करूँ कि यह तोता आप तीनों की बातों में से क्या बोल रहा है?”
कोई एक व्यक्ति उस भीड़ में से बोल पड़ा। बेहद ग़रीब जान पड़ता था, बोला─ “तोतेवाले भाईसाहब, यदि किसी को आपत्ति न हो तो मैं बताऊँ, यह तोता क्या बोल रहा है?”
तोतेवाला─ “हाँ-हाँ, बताइये। मैं यह तोता आपको दे दूँगा।”
ग़रीब बोला─ “नहीं-नहीं, मैं तो अपने खाने भर का भी जुटा ही नहीं पाता, तो इस तोते को लेकर क्या करूँगा। बस मेरी एक शर्त है, मेरे बताने पर, इसे एक बार पिंजरे से बाहर निकाल देना, यह जिसके पास जाकर रुकेगा, यह तोता उसका हो जायेगा।”
तोतेवाला हँसने लगा, बोला─ “लगता है, निर्धन होने के साथ-साथ तुम्हारी बुद्धि भी निर्धन की तरह हो गयी है। भला, पिंजरे से निकलने के बाद यह तोता तुम चारों में से किसी के पास जायेगा, या उड़ जायेगा? ख़ैर, तुम यह बताओ कि यह तोता क्या बोला रहा है, फिर मैं तुम्हारी शर्त पर सोचूँगा।”
ग़रीब─ “यह तोता बोल रहा है, खोल दो मेरा पिंजर!”
यह सुनकर सन्नाटा छा गया और यह तय किया गया कि तोते को पिंजरे से बाहर निकाला जाये। तोता पिंजरे से बाहर निकलते ही उस ग़रीब के काँधे पर जाकर बैठ गया। भक्तराज, सब्जीवाला और पहलवान की निगाहें शर्म से झुक गयीं; क्योंकि किसी ने उस तोते की वेदना को नहीं समझा। सबने सिर्फ़ यह सोचा कि यह तोता मुझे मुफ़्त मे मिल जाये।
लेकिन तोता
न तो राजा राम दशरथ बोल रहा था,
न आलू प्याज अदरक बोल रहा था,
न दण्ड बैठक कसरत बोल रहा था,
वह तो अपनी पीड़ा कह रहा था “खोल दो मेरा पिंजर! खोल दो मेरा पिंजर!!”