दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् में भगवती दुर्गा के १०८ नाम हैं, जिनके नित्य पाठ से इस संसार में कुछ असाध्य नहीं रहता। श्रीविश्‍वसारतन्त्र के अन्तर्गत भगवान शिव के श्रीमुख से यह बोला गया है। गीताप्रेस से प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती में यह छपा हुआ है। चैत्र या शारदीय नवरात्रि में इस स्तोत्र का नित्य पाठ देवीभक्तों के लिये अत्यन्त लाभकारी है। आइये सुगम ज्ञान संगम के इस पोस्ट में लघु ❍ शब्दों की सहायता से इसका पाठ करके भगवती दुर्गा का आशीर्वाद पायें।

श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

ईश्‍वर उवाच
❑➧शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व​ कमलानने।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।१।।
❍ शत नाम प्रवक्ष्यामि
शृणुष्व​ कमलानने।
यस्य प्रसाद-मात्रेण
दुर्गा प्रीता भवेत् सती।।१।।

❑➧ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी।।२।।
❍ ॐ सती साध्वी भव-प्रीता
भवानी भव मोचनी।
आर्या दुर्गा जया चाद्या
त्रिनेत्रा शूल-धारिणी।।२।।

❑➧पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः।
मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः।।३।।
❍ पिनाक-धारिणी चित्रा
चण्ड-घण्टा महा-तपाः।
मनो बुद्धि-रहंकारा
चित्त-रूपा चिता चितिः।।३।।

❑➧सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।।४।।
❍ सर्व-मन्त्र-मयी सत्ता
सत्या-नन्द-स्वरूपिणी।
अनन्ता भाविनी भाव्या
भव्या-भव्या सदागतिः।।४।।

❑➧शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्‍‌नप्रिया सदा।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी।।५।।
❍ शाम्भवी देव-माता च
चिन्ता रत्‍‌न-प्रिया सदा।
सर्व-विद्या दक्ष-कन्या
दक्ष-यज्ञ-विनाशिनी।।५।।

❑➧अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती।
पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी।।६।।
❍ अपर्णा-नेकवर्णा च
पाटला पाटला-वती।
पट्टाम्बर परीधाना
कलमञ्जीर-रञ्जिनी।।६।।

❑➧अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता।।७।।
❍ अमेय-विक्रमा क्रूरा
सुन्दरी सुर-सुन्दरी।
वनदुर्गा च मातङ्गी
मतङ्ग-मुनि-पूजिता।।७।।

❑➧ब्राह्मी माहेश्‍वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्‍च पुरुषाकृतिः।।८।।
❍ ब्राह्मी माहेश्‍वरी चैन्द्री
कौमारी वैष्णवी तथा।
चामुण्डा चैव वाराही
लक्ष्मीश्‍च पुरुषा-कृतिः।।८।।

❑➧विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना।।९।।
❍ विमलोत्-कर्षिणी ज्ञाना
क्रिया नित्या च बुद्धिदा।
बहुला बहुल प्रेमा
सर्व-वाहन-वाहना।।९।।

❑➧निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी।।१०।।
❍ निशुम्भ-शुम्भ-हननी
महिषा-सुर-मर्दिनी।
मधु-कैटभ-हन्त्री च
चण्ड-मुण्ड-विनाशिनी।।१०।।

❑➧सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।।११।।
❍ सर्वासुर विनाशा च
सर्व-दानव-घातिनी।
सर्व-शास्त्र-मयी सत्या
सर्वास्त्र-धारिणी तथा।।११।।

❑➧अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्यधारिणी।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः।।१२।।
❍ अनेक-शस्त्र हस्ता च
अनेकास्त्रस्य-धारिणी।
कुमारी चैक-कन्या च
कैशोरी युवती यतिः।।१२।।

❑➧अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला।।१३।।
❍ अप्रौढा चैव प्रौढा च
वृद्ध-माता बल-प्रदा।
महोदरी मुक्त-केशी
घोर-रूपा महा-बला।।१३।।

❑➧अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी।।१४।।
❍ अग्नि-ज्वाला रौद्र-मुखी
काल-रात्रिस्-तपस्विनी।
नारायणी भद्र-काली
विष्णु-माया जलोदरी।।१४।।

❑➧शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्‍वरी।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी।।१५।।
❍ शिवदूती कराली च
अनन्ता परमेश्‍वरी।
कात्यायनी च सावित्री
प्रत्यक्षा ब्रह्म-वादिनी।।१५।।

❑➧य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति।।१६।।
❍ य इदं प्रपठेन्नित्यं
दुर्गा-नाम-शताष्टकम्।
नासाध्यं विद्यते देवि
त्रिषु लोकेषु पार्वति।।१६।।

❑➧धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्‍वतीम्।।१७।।
❍ धनं धान्यं सुतं जायां
हयं हस्तिन-मेव च।
चतुर्वर्गं तथा चान्त
लभेन्-मुक्तिं च शाश्‍वतीम्।।१७।।

❑➧कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्‍वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम्।।१८।।
❍ कुमारीं पूजयित्वा तु
ध्यात्वा देवीं सुरेश्‍वरीम्।
पूजयेत् परया भक्त्या
पठेन्नाम-शताष्टकम्।।१८।।

❑➧तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात्।।१९।।
❍ तस्य सिद्धिर्-भवेद् देवि
सर्वैः सुरवरै-रपि।
राजानो दासतां यान्ति
राज्य-श्रियम-वाप्नुयात्।।१९।।

❑➧गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः।।२०।।
❍ गोरोचना-लक्तक कुङ्कुमेन
सिन्दूर कर्पूर मधु त्रयेण।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो
भवेत् सदा धारयते पुरारिः।।२०।।

❑➧भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम्।।२१।।
❍ भौमावास्या-निशामग्रे
चन्द्रे शत-भिषां गते।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं
स भवेत् सम्पदां पदम्।।२१।।

।।इति श्रीविश्‍वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम्।।

हिन्दी अर्थ

शंकर जी पार्वती से कहते हैं─ कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनामका वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद (पाठ का श्रवण) मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।।१।।

२ से १५ श्लोक तक भगवती दुर्गा के १०८ नामों का उल्लेख है, जो निम्नलिखित हैं ─
१) ॐ सती
२) साध्वी
३) भवप्रीता ( भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली)
४) भवानी
५) भवमोचनी (संसारबन्धनसे मुक्त करने वाली )
६) आर्या
७) दुर्गा
८) जया
९) आद्या
१०) त्रिनेत्रा
११) शूलधारिणी
१२) पिनाकधारिणी
१३) चित्रा
१४) चण्डघण्टा (प्रचण्ड स्वरसे घण्टानाद करनेवाली)
१५) महातपा (भारी तपस्या करनेवाली)
१६) मन (मनन शक्ति)
१७) बुद्धि (बोधशक्ति)
१८) अहंकारा (अहंता का आश्रय)
१९) चित्तरूपा
२०) चिता
२१) चिति (चेतना)
२२) सर्वमन्त्रमयी
२३) सत्ता (सत्-स्वरूपा)
२४) सत्यानन्दस्वरूपिणी
२५) अनन्ता (जिनके स्वरूपका कहीं अन्त नहीं)
२६) भाविनी (सबको उत्पन्न करनेवाली)
२७) भाव्या (भावना एवं ध्यान करनेयोग्य)
२८) भव्य ( कल्याणरूपा)
२९) अभव्या (जिससे बढ़कर भव्य कहीं है नहीं)
३०) सदागति
३१) शाम्भवी (शिवप्रिया)
३२) देवमाता
३३) चिन्ता
३४) रत्नप्रिया
३५) सर्वविद्या
३६) दक्षकन्या
३७) दक्षयज्ञविनाशिनी
३८) अपर्णा (तपस्या के समय पत्ते को भी न खानेवाली)
३९) अनेकवणा (अनेक रंगोंवाली)
४०) पाटला (लाल रंगवाली)
४१) पाटलावती (गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करनेवाली)
४२) पट्टाम्बरपरीधाना (रेशमी वस्त्र पहननेवाली)
४३) कलमंजीररंजिनी (मधुर ध्वनि करनेवाले मंजीर को धारण करके प्रसन्न रहनेवाली)
४४) अमेयविक्रमा (असीम पराक्रमवाली)
४५) क्रूरा (दैत्यों के प्रति कठोर)
४६) सुन्दरी
४७) सुरसुन्दरी
४८) वनदुर्गा
४९) मातंगी
५०) मतंगमुनिपूजिता
५१) ब्राह्मी
५२) माहेश्वरी
५३) ऐन्द्री
५४) कौमारी
५५) वैष्णवी
५६) चामुण्डा
५७) वाराही
५८) लक्ष्मी
५९) पुरुषाकृति
६०) विमला
६१) उत्कर्षिणी
६२) ज्ञाना
६३) क्रिया
६४) नित्या
६५) बुद्धिदा
६६) बहुला
६७) हुलप्रेमा
६८) सर्ववाहनवाहना
६९) निशुम्भ-शुम्भहननी
७०) महिषासुरमर्दिनी
७१) मधुकैटभहन्त्री
७२) चण्डमुण्डविनाशिनी
७३) सर्वासुरविनाशा
७४) सर्वदानवघातिनी
७५) सर्वशास्त्रमयी
७६) सत्या
७७) सर्वास्त्रधारिणी
७८) अनेकशस्त्रहस्ता
७९) अनेकास्त्रधारिणी
८०) कुमारी
८१) एककन्या
८२) कैशोरी
८३) युवती
८४) यति
८५) अप्रौढा
८६) प्रौढा
८७) वृद्धमाता
८८) बलप्रदा
८९) महोदरी
९०) मुक्तकेशी
९१) घोररूपा
९२) महाबला
९३) अग्निज्वाला
९४) रौद्रमुखी
९५) कालरात्रि
९६) तपस्विनी
९७) नारायणी
९८) भद्रकाली
९९) विष्णुमाया
१००) जलोदरी
१०१) शिवदूती
१०२) कराली
१०३) अनन्ता (विनाशरहिता)
१०४) परमेश्वरी
१०५) कात्यायनी
१०६) सावित्री
१०७) प्रत्यक्षा
१०८) ब्रह्मवादिनी

देवी पार्वती! जो प्रतिदिन दुर्गाजी के इस अष्टोत्तरशतनाम का पाठ करता है, उसके लिये तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है।।१६।।

वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्म आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है।।१७।।

कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशत नामका पाठ आरम्भ करे।।१८।।

देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है। राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है।।१९।।

गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी (अथवा दूध), चीनी और मधु-इन वस्तुओंको एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यन्त्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यन्त्र धारण करता है, वह शिव के तुल्य (मोक्षरूप) हो जाता है।।२०।।

भौमवती अमावास्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हों, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है।।२१।।

इस प्रकार श्रीविश्‍वसारतन्त्र में दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्ण हुआ।