दुष्टों से दूर रहें
कबीर के दोहे
विवेकहीन मूर्ख लोगों को कितना भी समझाया जाये, वे असार बातों को ही ग्रहण करते हैं; क्योंकि वे स्वभाव से ही दुष्ट प्रवृत्ति के होते हैं। कबीर साहेब ने ऐसे लोगों की तुलना जोंक, मछली, मक्खी, चलनी, कोल्हू से की है। सात दोहों का यह संकलन बड़ा ही रोचक है। आइये, इसका अर्थ जानकर स्वभाव से जो दुष्ट हैं, उनसे दूर रहें।
दूध त्यागि रक्तहि गहै, लगी पयोधर जोंक।
कहैं कबीर असार मति, छल ना राखै पोक।।१।।
गौ के थन में जब जोंक लगती है, तब दूध को न निकालकर केवल रक्त निकालती है। गुरु कबीर कहते हैं कि असारग्राही बुद्धिवाला छली मनुष्य किसी गुण में सन्तोष नहीं रखता।
• जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो जोंक की तरह हमें चूसते रहते हैं। ऐसे लोगों से सावधानीपूर्वक स्वयं की रक्षा करनी चाहिये; क्योंकि ऐसे लोग हमारे अपने ही होते हैं, जिन्हें पहचानना बड़ा मुश्किल होता है। उनके प्रति हम कितना भी अच्छा करें, वे दीमक की तरह हमें खोखला कर देते हैं।
मच्छी मल को गहत है, निरमल वस्तुहि छाँड़ि।
कहैं कबीर असार मत, माड़ि रहा मन माँड़ि।।२।।
शुद्ध वस्तु को त्याग कर, मछली मल को ही खाती है। इसी प्रकार बुरे मनुष्य के मन में बुरी बातों का ही सिद्धांत जमा रहता है।।२।।
• इस दोहे में मछली का उदाहरण देकर कबीरजी कह रहे हैं कि तालाब में अच्छी-अच्छी वनस्पतियाँ भी होती हैं, किन्तु मछली गन्दगी ही खाती है। उसी तरह दुष्ट विचारोंवाले लोग होते हैं, उन्हें कितनी भी अच्छी बात बताओ, आपकी अच्छी बातों में भी बुराई ढूँढ़कर तर्क देंगे कि तुम ग़लत हो। वे मछली की तरह गन्दगी खाने के आदी बन जाते हैं।
पापी पुन्न न भावई, पापहि बहुत सुहाय।
माखि सुगन्धी परिहरै, जहँ दुरगन्ध तहँ जाय।।३।।
पापात्मा मनुष्य को पुण्य कार्य अच्छे नहीं लगते, उसको पाप ही बहुत अच्छे लगते हैं। मक्खी सुगन्धित पदार्थों को त्यागकर वहीं जाती है, जहाँ दुर्गन्ध हो।।३।।
• यह तो हम सबने अनुभव किया होगा कि शरीर के अंग पर घाव हो जाये तो मक्खी उसी घाव पर बैठती है, उसी तरह दुष्ट लोग होते हैं, वे जब भी मिलेंगे, गन्दी बातों में रुचि रखेंगे। अच्छी बात कहने लगो तो हमें महात्मा कहकर मक्खी की तरह उड़ जायेंगे।
आटा तजि भूसी गहै, चलनी देखु विचार।
कबीर सारहि छाड़ि के, गहै असार असार।।४।।
विचार करके देखिये! आटा (पिसान) को त्याग कर चलनी केवल भूसी को ही अपने पेट में रख लेती है। इस प्रकार बुरा मनुष्य अच्छी बात को छोड़कर, केवल बुरी बात को ही ग्रहण कर लेता है।।४।।
• यहाँ आटा चालनेवाली चलनी का उदाहरण देकर कबीरजी कहना चाहते हैं, बुरे लोग अच्छी बातों में से भी केवल बुराई ही अपने पास रखते हैं। आज की भाषा में कहें तो दुष्ट लोगों के पास आपकी बातों को फ़िल्टर करके बुराई को ग्रहण करने शक्ति होती है।
रस छाड़ै सीठी गहै, कोल्हू परगट देख।
गहै असार असार को, हिरदै नाहिं विवेक।।५।।
प्रत्यक्ष देखिये! रस को त्यागकर कोल्हू केवल खोइया ही ग्रहण करता है। इसी प्रकार विवेक से शून्य हृदयवाला मनुष्य केवल बुरी-बुरी बातों को ग्रहण करता है।।५।।
• यहाँ कोल्हू का उदाहरण भी चलनी की तरह है।
बूटी बाटी पान करे, कहै दुःख जो जाय।
कहै कबीर सुख न गहै, यही असार सुभाय।।६।।
मदिरा-मांस पी-खाकर जो कहते है कि हमारा दुख दूर हो जायगा और सुख प्राप्त होगा। उनको कभी सुख नहीं मिल सकता, असार ग्रहण का यही स्वभाव है।।६।।
• आजकल फ़िल्मों में दिखाया जाता है, हिरो-हिरोइन बहुत टेन्शन में होते हैं तो दारू पीकर अपनी टेन्शन मिटाते हैं। कुछ मूर्ख लोग ऐसे अभिनेताओं से प्रेरित होकर जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं, यह बहुत बड़ी मूर्खता है। हम जो देखते हैं, उसका प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। फ़िल्में देखकर जाने-अनजाने में हम बुराई में अच्छाई ढूँढ़ने के चक्कर में बुराई में लिप्त हो जाते हैं। मांस-मदिरा खा-पीकर सुखी होने की धारणा महामूर्खता है।
निरमल छाड़े मल गहै, जनम असारे खोय।
कहैं कबीर सार तजि, आपन गए बिगोय।।७।।
दूसरे के निर्मल सद्गुणों को छोड़कर दुर्गुण ग्रहण करनेवाले मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ ही खोते हैं और व्यर्थ ही नहीं, बल्कि सबके दोषों को ग्रहण कर वे पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं।।७।।
• इस दोहे का और पूरे लेख का सार यही है, स्वयं को बुराई को बचायें। बुराई में अच्छाई ढूँढने से अच्छा है, अच्छाई को सीधे तौर स्वीकार कर लें।
buy online cialis Lung FW, Liu CL, Wang CS, Tzeng DS