देवी कवच
श्रीदुर्गा सप्तशती में देवी कवच का उल्लेख है। देवी भक्त जानते ही होंगे कि इसका पाठ हर प्रकार से भक्तों की रक्षा करता है। जो इस कवच का पाठ करके यात्रा आदि को जाता है, उसका कभी अमंगल नहीं होता। तीनों सन्ध्याओं में पाठ करनेवालों को सर्प आदि के काटने का भी भय नहीं होता। तन्त्र-मन्त्र, मारण, यहाँ तक कि अदृष्ट शक्तियाँ, भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी से भी उसकी रक्षा होती है।
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में
संक्षिप्त में जानते हैं कि देवी कवच क्या है? मार्कण्डेय ऋषि के पूछने पर ब्रह्माजी द्वारा बोला गया, यह अद्भुत स्तोत्र है। जिसमें २ से १५ श्लोक तक देवी के विविध रूपों का वर्णन है। १७ से ४१ श्लोक तक देवी के भिन्न-भिन्न स्वरूपों से स्वयं के शरीर के प्रत्येक अंग सहित धन-धान्य, सन्तान आदि की रक्षा करने का अनुरोध है। ४२ वें श्लोक में देवी से प्रार्थना है कि जिस अंग का उल्लेख इस कवच में नहीं हुआ है, उन सबकी आप रक्षा करें। ४३ से ५६ श्लोक तक इसका माहात्म्य कहा गया है। इसके पाठ से साधक पूर्ण रूप से माता के संरक्षण में हो जाता है। देवी भक्तों को इसका नित्य पाठ करना चाहिये।
मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गा सप्तशती से लिये गये हैं। लेख के अन्त में PDF उपलब्ध है।
❀ देव्याः कवचम् ❀
(❑➧मूलशब्द ❍लघुशब्द)
विनियोग:-
❑➧ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।
❍ ॐ अस्य श्रीचण्डी कवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्त मातरो बीजम्, दिग्बन्ध देवतास् तत्त्वम्, श्रीजगदम्बा प्रीत्यर्थे सप्तशती पाठाङ्ग त्वेन जपे विनियोगः।
।।ॐ नमश्चण्डिकायै।।
मार्कण्डेय उवाच
❑➧ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।।१।।
❍ ॐ यद् गुह्यं परमं लोके
सर्व रक्षा करं नृणाम्।
यन्न कस्य चिदा ख्यातं
तन्मे ब्रूहि पितामह।।१।।
ब्रह्मोवाच
❑➧अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।।२।।
❍ अस्ति गुह्यतमं विप्र
सर्व भूतो पकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं
तच्छृणुष्व महामुने।।२।।
❑➧प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।३।।
❍ प्रथमं शैलपुत्री च
द्वितीयं ब्रह्म चारिणी।
तृतीयं चन्द्र घण्टेति
कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।३।।
❑➧पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।४।।
❍ पञ्चमं स्कन्द मातेति
षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं काल रात्रीति
महा गौरीति चाष्टमम्।।४।।
❑➧नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।।५।।
❍ नवमं सिद्धि दात्री च
नव दुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्ये तानि नामानि
ब्रह्मणैव महात्मना।।५।।
❑➧अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।६।।
❍ अग्निना दह्य मानस्तु
शत्रु मध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव
भयार्ताः शरणं गताः।।६।।
❑➧न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।७।।
❍ न तेषां जायते किंचि
दशुभं रण संकटे।
नापदं तस्य पश्यामि
शोक दुःख भयं न हि।।७।।
❑➧यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।।८।।
❍ यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं
तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि
रक्षसे तान्न संशयः।।८।।
❑➧प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना।।९।।
❍ प्रेत संस्था तु चामुण्डा
वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गज समारूढा
वैष्णवी गरुडासना।।९।।
❑➧माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।।१०।।
❍ माहेश्वरी वृषा रूढा
कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी
पद्म हस्ता हरि प्रिया।।१०।।
❑➧श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता।।११।।
❍ श्वेत रूप धरा देवी
ईश्वरी वृष वाहना।
ब्राह्मी हंस समारूढा
सर्वा भरण भूषिता।।११।।
❑➧इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः।।१२।।
❍ इत्येता मातरः सर्वाः
सर्व योग समन्विताः।
नाना भरण शोभाढ्या
नाना रत्नोप शोभिताः।।१२।।
❑➧दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।।१३।।
❍ दृश्यन्ते रथ मारूढा
देव्यः क्रोध समाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं
हलं च मुसला युधम्।।१३।।
❑➧खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।।१४।।
❍ खेटकं तोमरं चैव
परशुं पाशमेव च।
कुन्ता युधं त्रिशूलं च
शार्ङ्गमा युध मुत्तमम्।।१४।।
❑➧दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।।१५।।
❍ दैत्यानां देह नाशाय
भक्ता नाम भयाय च।
धार यन्त्या युधानीत्थं
देवानां च हिताय वै।।१५।।
❑➧नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि।।१६।।
❍ नमस्तेऽस्तु महा रौद्रे
महा घोर पराक्रमे।
महा बले महोत्साहे
महा भय विनाशिनि।।१६।।
❑➧त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।।१७।।
❍ त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये
शत्रूणां भय वर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री
आग्नेय्या मग्नि देवता।।१७।।
❑➧दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।।१८।।
❍ दक्षिणेऽवतु वाराही
नैर्ऋत्यां खड्ग धारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद्
वायव्यां मृग वाहिनी।।१८।।
❑➧उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।।१९।।
❍ उदीच्यां पातु कौमारी
ऐशान्यां शूल धारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद
धस्ताद् वैष्णवी तथा।।१९।।
❑➧एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः।।२०।।
❍ एवं दश दिशो रक्षेच्
चामुण्डा शव वाहना।
जया मे चाग्रतः पातु
विजया पातु पृष्ठतः।।२०।।
Guruji Namaskar
Guruji Muje Durga Saptasati ke 1 se 13 aadhya ko bolna shikhna hai
kripa 1 se 13 aadhya ko Youtub par aap ka post bheje ne ki kripa kare
Dhanyvad
Vipul Upadhyay
क्या आप इस देवी कवच का पीडीएफ़ मुझे मेरी मेल आई डी में भेज सकते हैं यहाँ से डाउन्लोड नहीं हो पा रहा है, ये इसलिए चाहिए क्योंकि आपने इसे बड़े ही आसान भाषा में बनाये हैं
प्रेषित कर दिया गया है।
eska download pdf nahi kaam kar raha …..pls ese download option dijiye
आपन्ने बहुत सुंदर प्रस्तुति की है।
Pdf nhi download ho raha h… File not available h.. kripya ke pdf dale
Please email devi Kavach pdf. Unable to download. Thanks