नारायण अथर्वशीर्ष अर्थ
नारायण अथर्वशीर्ष का हिन्दी में अर्थ शान्तिपाठ सहित।
●शान्तिपाठ●
❑➧ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै।
ॐ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!!
❑अर्थ➠ ॐ वह प्रसिद्ध परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करे। हम दोनोंको साथ-साथ विद्या के फलका भोग कराये । हम दोनों एक साथ मिलकर वीर्य यानी विद्याकी प्राप्तिके लिये सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। परमात्मन्! हमारे त्रिविध तापकी शान्ति हो।
नारायण अथर्वशीर्ष
❑➧ॐ अथ पुरुषो ह वै नारायणोऽकामयत प्रजा: सृजेयेती। नारायणात्प्राणो जायते मनः सर्वेन्द्रियाणि च। खं वायुर्ज्योतिरापः पृथिवी विश्वस्य धारिणी। नारायणाद् ब्रह्मा जायते। नारायणाद्रुद्रो जायते। नारायणादिन्द्रो जायते। नारायणात्प्रजापतिः प्रजायते। नारायणाद् द्वादशादित्या रुद्रा वसवः सर्वाणि छन्दांसि नारायणादेव समुत्पद्यन्ते। नारायणात्प्रवर्तन्ते। नारायणे प्रलीयन्ते। एतदृग्वेदशिरोऽधीते।।१।।
❑अर्थ➠ सनातन पुरुष भगवान नारायण ने संकल्प किया⼀’मैं जीवों की सृष्टि करूँ।’ (अत: उन्हीं से सबकी उत्पत्ति हुई है।) नारायण से ही समष्टिगत प्राण उत्पन्न होता है, उन्हीं से मन और सम्पूर्ण इन्द्रियाँ प्रकट होती हैं। आकाश, वायु, तेज, जल तथा सम्पूर्ण विश्व को धारण करनेवाली पृथ्वी ⼀इन सबकी नारायण से ही उत्पत्ति होती है। नारायण से ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं । नारायण से प्रकट होते हैं। नारायण से इन्द्र का जन्म होता है। नारायण से प्रजापति उत्पन्न होते हैं। नारायण से ही बारह आदित्य प्रकट हुए हैं। ग्यारह रुद्र, आठ वसु और सम्पूर्ण छन्द (वेद) नारायण से ही उत्पन्न होते हैं, नारायण से ही प्रेरित होकर वे अपने-अपने कार्य में प्रवृत्त होते हैं और नारायण में ही लीन हो जाते हैं। यह ऋग्वेदीय उपनिषद का कथन है।।१।।
❑➧अथ नित्यो नारायणः। ब्रह्मा नारायणः। शिवश्च नारायणः। शक्रश्च नारायणः। कालश्च नारायणः। दिशश्च नारायणः। विदिशश्च नारायणः। ऊर्ध्वं च नारायणः। अधश्च नारायणः। अन्तर्बहिश्च नारायणः। नारायण एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम्। निष्कलङ्को निरञ्जनो निर्विकल्पो निराख्यातः शुद्धो देव एको नारायणो न द्वितीयोऽस्ति कश्चित्। य एवं वेद स विष्णुरेव भवति स विष्णुरेव भवति। एतद्यजुर्वेदशिरोऽधीते।।२।।
❑अर्थ➠ भगवान् नारायण नित्य हैं। ब्रह्मा नारायण हैं। शिव भी नारायण हैं। इन्द्र भी नारायण हैं। काल भी नारायण हैं। दिशाएँ भी नारायण हैं। विदिशाएँ (दिशाओं के बीच के कोण) भी नारायण हैं। ऊपर भी नारायण हैं। नीचे भी नारायण हैं। भीतर और बाहर भी नारायण हैं। जो कुछ हो चुका है तथा जो कुछ हो रहा है और होनेवाला है, यह सब भगवान् नारायण ही है। एकमात्र नारायण ही निष्कलंक, निरंजन, निर्विकल्प, अनिर्वचनीय एवं विशुद्ध देव हैं, उनके सिवा दूसरा कोई नहीं है। जो इस प्रकार जानता है, वह विष्णु ही हो जाता है, वह विष्णु ही हो जाता है। यह यजुर्वेदीय उपनिषद का प्रतिपादन है।।२।।
❑➧ओमित्यग्रे व्याहरेत्। नम इति पश्चात्। नारायणायेत्युपरिष्टात्। ओमित्येकाक्षरम्। नम इति द्वे अक्षरे। नारायणायेति पञ्चाक्षराणि। एतद्वै नारायण स्याष्टाक्षरं पदम्। यो ह वै नारायणस्याष्टाक्षरं पदमध्येति। अनपब्रुवः सर्वमायुरेति। विन्दते प्राजापत्यं रायस्पोषं गौपत्यं ततोऽमृतत्वमश्नुते ततोऽमृतत्वमश्नुत इति। एतत्सामवेदशिरोऽधीते।।३।।
❑अर्थ➠ सबसे पहले ‘ॐ’ इस अक्षरका उच्चारण करे, इसके बाद नमः पद का, फिर अन्त में ‘नारायणाय’ इस पद का उच्चारण करें। ‘ॐ’ यह एक अक्षर है। ‘नमः’ ये दो अक्षर हैं। ‘नारायणाय’ ये पाँच अक्षर है। यह ‘ॐ नमो नारायणाय’ पद भगवान नारायण अष्टाक्षर मंत्र है। निश्चय ही जो मनुष्य भगवान् नारायण के इस अष्टाक्षर मन्त्र का जप करता है, वह उत्तम कीर्ति से युक्त हो पूरी आयु तक जीवित रहता है। जीवों का आधिपत्य, धन की वृद्धि, गौ आदि पशुओं का स्वामित्व ⼀ये सब भी उसे प्राप्त होते हैं। तदनन्तर वह अमृतत्व को प्राप्त होता है, अमृतत्व को प्राप्त होता है (अर्थात् भगवान् नारायण के अमृतमय परमधाम में जाकर परमानन्द का अनुभव करता है)। यह सामवेदीय उपनिषद का कथन है।।३।।
❑➧प्रत्यगानन्दं ब्रह्मपुरुषं प्रणवस्वरूपम्। अकार उकारो मकार इति। ता अनेकधा समभवत्तदेतदोमिति। यमुक्त्वा मुच्यते योगी जन्मसंसारबन्धनात्। ॐ नमो नारायणायेति मन्त्रोपासको वैकुण्ठभुवनं गमिष्यति। तदिदं पुण्डरीकं विज्ञानघनं तस्मात्तडिदाभमात्रम्। ब्रह्मण्यो देवकीपुत्रो ब्रह्मण्यो मधुसूदनः। ब्रह्मण्य: पुण्डरीकाक्षो ब्रह्मण्यो विष्णुरच्युत इति। सर्वभूतस्थमेकं वै नारायणं कारणपुरुषमकारणं परं ब्रह्मोम्। एतदथर्वशिरोऽधीते।।४।।
❑अर्थ➠ आत्मानन्द जय ब्रह्म पुरुष प्रणव स्वरूप है; ‘अ’ ‘उ’ ‘म’⼀ये उसकी मात्राएँ हैं। ये अनेक हैं। इनका ही सम्मिलित रूप ‘ॐ’ इस प्रकार हुआ है। इस प्रणव का जप करके योगी जन्म-मृत्यु रूप संसार-बंधन से मुक्त हो जाता हैं। ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस मन्त्र की उपासना करनेवाला साधक वैकुण्ठधाम में जाएगा। वह वैकुण्ठधाम विज्ञानघन पुण्डरीक (कमल) है; अत: इसका रूप विद्युत के समान परम प्रकाशमय है। देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्ण ब्रह्मण्य (ब्राह्मण प्रिय) हैं। भगवान् मधुसुदन ब्रह्मण्य हैं। पुण्डरीक (कमल) के सदृश नेत्रवाले भगवान् विष्णु ब्रह्मण्य हैं। अच्युत विष्णु ब्रह्मण्य हैं। सम्पूर्ण भूतों में स्थित एक ही नारायण देव कारण पुरुष हैं। वे ही कारण रहित परब्रह्म हैं। यह अथर्ववेदीय उपनिषद का प्रतिपादन है।।४।।
❑➧प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति। सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति। तत्सायं प्रातरधीयानः पापोऽपापो भवति। मध्यन्दिनमादित्याभिमुखोऽधीयानः पञ्चमहापातकोपपातकात्प्रमुच्यते। सर्ववेदपारायणपुण्यं लभते। नारायणसायुज्यमवाप्नोति श्रीमन्नारायण सायुज्यमवाप्नोति य एवं वेद।।५।।
❑अर्थ➠ प्रात:काल इस उपनिषद का पाठ करनेवाला पुरुष रात्रि में किये हुए पापका नाश कर डालता है। सायंकाल में इसका पाठ करनेवाला मनुष्य दिन में किये हुए पापका नाश कर डालता है। सायंकाल और प्रात:काल दोनों समय पाठ करनेवाला साधक पहले का पापी हो तो भी निष्पाप हो जाता है। दोपहर के समय भगवान् सूर्य की ओर मुख करके पाठ करनेवाला मानव पाँच महापातकों और उपपातकों से सर्वथा मुक्त हो जाता है। सम्पूर्ण वेदों के पाठ का पुण्य लाभ करता है। वह भगवान् श्रीनारायण का सायुज्य प्राप्त कर लेता है; जो इस प्रकार जानता है, वह श्रीमन्नारायण का सायुज्य प्राप्त कर लेता है।।५।।
।।इत्युपनिषत्।।
इस प्रकार यह ब्रह्मविद्या है।