निंदक नियरे राखिये

निंदक नियरे राखिये…

निन्दक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।।

शायद ही कोई हिन्दी भाषी होगा, जिसने संत कबीर का यह दोहा न सुना हो। इसमें आये साबुन शब्द के बारे में प्रायः चर्चा होती रहती है कि क्या कबीरजी के समय में साबुन का प्रचलन था?

यह प्रश्न उठाने के दो मतलब होते हैं या तो कबीरजी का कहा गया यह दोहा ग़लत है या फिर लोगों ने कबीरजी के नाम से इसे प्रचलित कर दिया है।

कबीरजी के दोहों में एक विशेषता है कि वे गहन दार्शनिक बातें भी साधारण शब्दों में कह देते थे। निन्दा करनेवाला हमारे मन के मैल को धो देता है। शरीर के मैल को साफ़ करने के लिये पानी और साबुन की ज़रूरत पड़ती है, किन्तु निन्दक हमारी निन्दा करके बिना पानी और साबुन के हमारे पापों से हमें मुक्त कर देता है, इसलिये उसे आँगन कुटिया की छाया में अपने पास रखिये।

जो लोग इस दोहे को सुनकर प्रश्न उठाते हैं कि कबीर के ज़माने साबुन था? उनके प्रश्न का जवाब है, था!

सन्त कबीर का जीवनकाल १४ वीं १५ वीं शताब्दी में माना जाता है अर्थात् आज पाँच-छः सौ साल पहले। इस दोहे में साबुन शब्द का प्रयोग कबीरजी ने किया है।

शब्दों का आवागमन लगातार एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में होता रहता है। साबुन शब्द के साथ भी यही हुआ। यह मूलतः यूरोपीय भाषाओं में इस्तेमाल होनेवाला शब्द है। अफ्रीका, यूरोप, पश्चिमी एशिया और पूर्वी एशिया की तमाम भाषाओं में साबुन शब्द का प्रयोग होता है।

आज से पाँच सौ वर्ष पहले अगर कबीरजी ने साबुन शब्द का प्रयोग किया है तो स्पष्ट है कि उस दौर का समाज में शरीर का मैल साफ करने के लिए साबुन का इस्तेमाल आमतौर पर हो रहा होगा।

यहाँ पर साबुन नाम के पदार्थ की उत्पत्ति की बात नहीं हो रही, बल्कि मैल साफ़ करने के साधन के तौर पर साबुन शब्द की बात कर रहे हैं; क्योंकि साबुन कहते ही हमारी आँखों सामने चौकोन या गोलाकार साबुन की टिकिया दिखाई देने लगती है, जो हम विज्ञापनों में देखते हैं और अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं, इसी कारण मन में प्रश्न उठता है कि कबीरजी के समय में इस तरह का साबुन रहा होगा? नहीं, इस तरह का साबुन नहीं रहा होगा, किन्तु साबुन तो रहा ही होगा।

दुनिया भर में साबुन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल हज़ारों वर्षों से हो रहा है। रीठा या शिकाकाई भारत में प्राचीनकाल से ही साबुन का पर्याय रहे हैं। इसलिये हमें यह सन्देह नहीं करना चाहिये कि यह कबीरजी दोहा नहीं है या फिर उनके ज़माने में साबुन का प्रयोग नहीं होता था।

5 Comments

  1. tofdupefe January 26, 2023
  2. tofdupefe February 4, 2023
  3. tofdupefe February 4, 2023
  4. Nadlide February 19, 2023
  5. Nadlide February 20, 2023

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