पुरुष सूक्त मूलपाठ

पुरुष सूक्त में विराट् पुरुष परमात्मा की स्तुति की गयी है। इसके पाठ से बुद्धि तेजस्वी होती है। वैसे तो नित्य ही इसका पाठ करना चाहिये, परन्तु चातुर्मास में इसके पाठ का विशेष फल माना जाता है। इसमें कुल १६ श्लोक हैं। प्रथम श्लोक का कहीं-कहीं अलग स्वरूप देखने मिलता है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में इस स्तोत्र के ❑➧मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पंचदेव अथर्वशीर्ष किताब से लिये गये हैं। आप ❍लघुशब्दों को देखते हुए पुरुष सूक्त का पाठ करें।

ध्यान दें:- यहाँ शब्दों का सन्धि-विच्छेदन नहीं किया गया है; क्योंकि सन्धि-विच्छेदन से मूल उच्चारण में अन्तर पड़ जाता है, अतः केवल उच्चारण की दृष्टि से शब्दों को छोटे रूप में दर्शाया गया है।

❀ पुरुष सूक्तं ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)

❑➧ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिᳬं सर्वत स्पृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।१।।
❍ ॐ सहस्र शीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्र पात्।
स भूमिᳬं सर्वत स्पृत्वा ऽत्यतिष्ठ द्दशाङ्गुलम्।।१।।

❑➧पुरुष एवेदᳬं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।।२।।
❍ पुरुष एवेदᳬं सर्वं यद् भूतं यच्च भाव्यम्।
उता मृतत्व स्येशानो यदन् नेनाति रोहति।।२।।

❑➧एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि।।३।।
❍ एता वानस्य महि मातो ज्यायाँश्च पूरुषः।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपाद स्यामृतं दिवि।।३।।

❑➧त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत् पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि।।४।।
❍ त्रिपा दूर्ध्व उदैत् पुरुषः पादोऽ स्येहा भवत् पुनः।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत् साशनान शने अभि।।४।।

❑➧ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः।।५।।
❍ ततो विराड जायत विराजो अधि पूरुषः।
स जातो अत्य रिच्यत पश्चाद् भूमि मथो पुरः।।५।।

❑➧तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम्।
पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये।।६।।
❍ तस्माद्य ज्ञात् सर्वहुतः सम्भृतं पृष दाज्यम्।
पशूँ स्ताँश्चक्रे वायव्या नारण्या ग्राम्याश्च ये।।६।।

❑➧तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दाᳬंसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।।७।।
❍ तस्माद्य ज्ञात् सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे।
छन्दाᳬंसि जज्ञिरे तस्माद्य जुस्त स्माद जायत।।७।।

❑➧तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः।।८।।
❍ तस्मादश्वा अजा यन्त ये के चोभयादतः।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज् जाता अजावयः।।८।।

❑➧तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जातमग्रतः।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये।।९।।
❍ तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन् पुरुषं जात मग्रतः।
तेन देवा अय जन्त साध्या ऋषयश्च ये।।९।।

❑➧यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्येते।।१०।।
❍ यत् पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन्।
मुखं किमस्या सीत् किं बाहू किमूरू पादा उच्येते।।१०।।

❑➧ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद्बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्य पद्भ्याᳬं शूद्रो अजायत।।११।।
❍ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद् वैश्य पद्भ्याᳬं शूद्रो अजायत।।११।।

❑➧चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत।।१२।।
❍ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
श्रोत्राद् वायुश्च प्राणश्च मुखा दग्निर जायत।।१२।।

❑➧नाभ्या आसीदन्तरिक्षᳬं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्।।१३।।
❍ नाभ्या आसीदन्तरिक्षᳬं शीर्ष्णो द्यौः सम वर्तत।
पद्भ्यां भूमिर् दिशः श्रोत्रात् तथा लोकाँ अकल्पयन्।।१३।।

❑➧यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत।
वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः।।१४।।
❍ यत् पुरुषेण हविषा देवा यज्ञ मतन्वत।
वसन्तो ऽस्यासी दाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद् धविः।।१४।।

❑➧सप्तास्यासन् परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः।।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्।।१५।।
❍ सप्ता स्यासन् परिधय स्त्रिः सप्त समिधः कृताः।।
देवा यद्यज्ञं तन्वाना अबध्नन् पुरुषं पशुम्।।१५।।

❑➧यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।१६।।
❍ यज्ञेन यज्ञ मयजन्त देवा स्तानि धर्माणि प्रथमा न्यासन्।
ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।१६।।

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