प्रेरक विचार – केकड़े की कहानी

१) एक बार एक केकड़ा समुद्र किनारे अपनी मस्ती में चला जा रहा था। बीच बीच में रुक-रुककर अपने पैरों के निशान देखकर ख़ुश हो जाता था। आगे बढ़ता, पैरों के निशान देखता और ख़ुश होता। इतने में एक लहर आयी और उसके पैरों के सब निशान मिट गये।
इस पर केकड़े को बड़ा गुस्सा आया, उसने लहर से बोला─ “ऐ लहर, मैं तो तुझे अपना मित्र मानता था, पर ये तू ने क्या किया?मेरे बनाये सुन्दर पैरों के निशानों को ही मिटा दिया। कैसी दोस्त हो तुम?
तब लहर बोली…

२) सफलता का मूल्य मेहनत है; क्योंकि मेहनतरूपी कीमत अदा करने के बाद जीतने मौक़ा आपके हाथों में हो सकता। बिन मेहनत के तो नींद भी अच्छी नहीं आती तो फिर सफलता की कल्पना कैसे की जा सकती है?
लेकिन हाँ, सफलता के लिए…

३) हर पल अच्छा सोचने का और अच्छा करने का प्रयास करें;
क्योंकि बिना विचारों के मन और बिना कर्मों के तन
एक पल भी नहीं रह सकता है,
इसलिये…

४) जब वो सच्चाई की राह पर चलने लगा,
तो उसके कानों में ये आवाज़ सुनाई दी,
बहुत छाले हैं इसके पैरों में,
कम्बख़्त ज़रूर उसूलों पर चला होगा।
शरीफ़ इन्सान इन्सानियत के नाते चुप रह जाता है
मगर दुष्ट लोग समझते हैं कि उसे जवाब देना नहीं आता…

५) ज़िन्दगी में सोच अच्छी होनी चाहिये,
क्योंकि नज़र का इलाज़ हो सकता है,
लेकिन नज़रिये का नहीं।
अन्धे को मन्दिर आया देखकर लोग हँस पड़े और बोले, “मन्दिर में दर्शन के लिए आये तो हो पर क्या भगवान् को देख पाओगे?”
अन्धे ने मुस्कुराकर कहा कि
“क्या फ़र्क़ पड़ता है, मेरा भगवान् तो मुझे देख लेगा।”
इसलिये जीवन में दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण सही होना चाहिए…

६) धनवान होने के बाद भी
यदि लालच और पैसों का मोह है,
तो उससे बड़ा ग़रीब
कोई नहीं हो सकता है।
संसार में सबसे अधिक
प्रभावित करनेवाली चीज़ लालच ही है,
यह क़दर हमारे भीतर समाई होती है कि
हमें पता भी नहीं चलता,
हम किस दलदल में धँसते चले जा रहे हैं?

७) सत्कर्म
सच्चा भक्त वो है जो किसी विशेष दिन या
विशेष पर्व की प्रतीक्षा नहीं करता
अपितु नित्य प्रभु की आराधना करके
मानव जन्म की सार्थकता को सिद्ध करता है।

किसी विशेष दिन, पर्व या माह में
पुण्य बढ़ाने के लिये सत्कर्म न करो
हर समय पाप से बचने का प्रयास करो
नित्य सत्कर्म स्वाभाविक ही होगा।

पाप न करना ही सबसे बड़ा पुण्य है।
किसी कही हुई बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ हैं
ईश्वर कहते हैं
तू करता वही है जो तू चाहता है,
पर होता वही है जो मैं चाहता हूँ,
तू कर वही जो मैं चाहता हूँ,
फिर होगा वही जो तू चाहता है।

सुबह पुण्य और दिन भर पाप करने से
कहीं अच्छा है, पाप ही न करो।
क्योंकि छोटा-सा बच्चा कितनी भी गन्दगी में खेले
जब माँ का ध्यान जायेगा तो वह उसे
स्वच्छ जल से नहला-धुलाकर साफ़ कर देती है
फिर बच्चा कितना भी रोये।

उसी प्रकार परमात्मारूपी माँ
हर पल हमें दुष्कर्मरूपी गन्दगी से बचाने के लिये
अपने कृपारूपी जल से नित्य नहलाती रहती है,
लेकिन उस जल को दुःख का नाम देकर
संघर्ष करने की बजाय परमात्मा को ही दोष देते हैं
और अपने कर्मों की ओर ध्यान नहीं देते।

हमारी दिनचर्या तो यही है
सुबह-सुबह मुँह में राम नाम की माला।
शाम को मुँह में पाप का निवाला।।
ऐसे जप से प्रभु क्या ख़ुश होंगे।
सारे पुण्य करके भी केवल पाप ही सँभाला।।

 

4 Comments

  1. tofdupefe January 25, 2023
  2. tofdupefe February 2, 2023
  3. tofdupefe February 3, 2023
  4. Nadlide March 8, 2023

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