बिल्वाष्टकम्
शिवपूजा में बेलपत्र का विशेष महत्त्व है। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण करते समय बिल्वाष्टकम् स्तोत्र का पठन करने से मन अहोभाव से भर जाता है। लिंगाष्टकम् की तरह यह परम्परागत संकलित स्तोत्र है। इसलिये इसके पाठ भिन्नता दिखाई देती है। इस स्तोत्र में प्रत्येक श्लोक के चौथे पद की हर बार पुनरावृत्ति है, जो यू ट्यूब पर एक बिल्वं शिवार्पणम् के रूप में आपने देखा सुना होगा।
गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित किताब शिवस्तोत्र रत्नाकर में यह …बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।। छपा जो सही भी लगता है। क्योंकि बिल्व का अर्थ बेल होता है और बिल्वपत्रं का अर्थ बेलपत्र होता है। इसलिये …एक बिल्वं शिवार्पणम्।। का अर्थ होगा, एक बेल मैं शिवजी को समर्पित करता हूँ। …बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।। का अर्थ होगा, यह बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ।
देखा जाये, पूरे स्तोत्र में बेलपत्र का उल्लेख है, अतः …बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।। यह पद युक्तियुक्त लगता है। ख़ैर, भगवान् तो भावग्राही हैं, इसलिये शब्द से अधिक भाव महत्त्व रखते हैं।
https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट बिल्वाष्टकम् मूल❑➧श्लोक के साथ लघु❍शब्द एवं अर्थ भी दिया गया। पाठकगण इसका लाभ उठायें।
❑➧त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।१।।
❍ त्रिदलं त्रिगुणा-कारं
त्रिनेत्रं च त्रयायुधम्।
त्रिजन्म-पाप-संहारं
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।१।।
❑➧त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः।
शिवपूजां करिष्यामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।२।।
❍ त्रिशाखैर्-बिल्व-पत्रैश्च
ह्यच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः।
शिव-पूजां करिष्यामि
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।२।।
❑➧अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।३।।
❍ अखण्ड-बिल्व-पत्रेण
पूजिते नन्दिकेश्वरे।
शुद्ध्यन्ति सर्व-पापेभ्यो
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।३।।
❑➧शालग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।
सोमयज्ञमहापुण्यं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।४।।
❍ शालग्राम-शिलामेकां
विप्राणां जातु अर्पयेत्।
सोम-यज्ञ-महापुण्यं
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।४।।
❑➧दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च।
कोटिकन्यामहादानं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।५।।
❍ दन्ति-कोटि-सहस्राणि
वाजपेय-शतानि च।
कोटि-कन्या-महादानं
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।५।।
❑➧लक्ष्म्याः स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।६।।
❍ लक्ष्म्याः स्तनत उत्पन्नं
महादेवस्य च प्रियम्।
बिल्व-वृक्षं प्रयच्छामि
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।६।।
❑➧दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।
अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।७।।
❍ दर्शनं बिल्व-वृक्षस्य
स्पर्शनं पाप-नाशनम्।
अघोर-पाप-संहारं
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।७।।
❑➧मूलतोः ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रतः शिवरूपाय बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।८।।
❍ मूलतोः ब्रह्म-रूपाय
मध्यतो विष्णु-रूपिणे।
अग्रतः शिव-रूपाय
बिल्व-पत्रं शिवार्पणम्।।८।।
❑➧बिल्वाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः शिवलोकमवाप्नुयात्।।९।।
❍ बिल्वाष्टक-मिदं पुण्यं
यः पठेच्छिव-सन्निधौ।
सर्व-पाप-विनिर्मुक्तः
शिव-लोकम-वाप्नुयात्।।९।।
।।इति बिल्वाष्टकम् सम्पूर्णम्।।
हिन्दी अर्थ
❑अर्थ➠तीन दलवाला, सत्त्व, रज एवं तमस्वरूप, सूर्य, चन्द्र तथा अग्नि त्रिनेत्रस्वरूप और आयुध त्रयस्वरूप तथा तीनों जन्मों के पापों को नष्ट करनेवाला बिल्वपत्र मैं भगवान् शिव के लिये समर्पित करता हूँ।।१।।
❑अर्थ➠छिद्ररहित, सुकोमल, तीन पत्तेवाले, मंगल प्रदान करनेवाले बिल्वपत्र से मैं भगवान् शिव की पूजा करूँगा। यह बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ।।२।।
❑अर्थ➠अखण्ड बिल्वपत्र से नन्दिकेश्वर भगवान् की पूजा करने पर मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाते हैं। मैं बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ।।३।।
❑अर्थ➠मेरे द्वारा किया गया भगवान् शिव को यह बिल्वपत्र का समर्पण, ब्राह्मणों के शालिग्राम की शिला के समान तथा सोमयज्ञ के अनुष्ठान के समान महान् पुण्यशाली हो। (अतः भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ)।।४।।
❑अर्थ➠मेरे द्वारा किया गया भगवान् शिव को यह बिल्वपत्र का समर्पण, हजारों करोड़ों गजदान, सैकड़ों वाजपेय-यज्ञ के अनुष्ठान तथा करोड़ों कन्याओं के महादान के समान हो। (अतः मैं बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित करता हूँ)।।५।।
❑अर्थ➠विष्णु-प्रिया भगवती लक्ष्मी के वक्ष:स्थल से प्रादुर्भूत तथा महादेव के अत्यंत प्रिय बिल्व वृक्ष को मैं समर्पित करता हूँ, यह बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित है।।६।।
❑अर्थ➠बिल्व वृक्ष के दर्शन और उसका स्पर्श समस्त पापों को नष्ट करनेवाला तथा शिव अपराध का संहार करनेवाला है। यह बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित है।।७।।
❑अर्थ➠बिल्वपत्र का मूलभाग ब्रह्मरूप, मध्यभाग विष्णु रूप एवं अग्रभाग शिव रूप है, ऐसा बिल्वपत्र भगवान् शिव को समर्पित है।।८।।
❑अर्थ➠जो भगवान् शिव के समीप इस पुण्य प्रदान करनेवाले ‘बिल्वाष्टक’ का पाठ करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अन्त में शिवलोक को प्राप्त करता है।।९।।
इस प्रकार बिल्वाष्टक सम्पूर्ण हुआ।