बीज मंत्र का सही उच्चारण

बीज मंत्र का सही उच्चारण

ध्यान दें: ☞ इस लेख का उद्देश्य है, बीजमन्त्र के सही उच्चारण से आपको अवगत कराना, न कि साधना पथ से भटकाना। लेख अन्त तक पढ़ें ताकि कोई दुविधा न रहें।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + धर्म की बातें स्तम्भ के इस लेख में, बीजमन्त्र का उच्चारण कैसे करना चाहिये? बीजमन्त्र क्या होता है? इसके फ़ायदे क्या हैं? यह जानेंगे।

प्रायः बीजमन्त्र का शाब्दिक अर्थ कुछ नहीं होता, परन्तु इसके जप से दैवी शक्तियों से साधक का सीधे तादाम्य होने लगता है। हर देवी-देवताओं के बीजमन्त्र अलग-अलग होते हैं। बीजमन्त्रसहित मन्त्रजाप करने से दैवी शक्तियों की कृपा भक्त पर शीघ्र ही होती है।

कुछ मन्त्र के जानकार शास्त्र-अध्ययन एवं अपने अनुभव के आधार पर बीजमन्त्र का अर्थ भी बताते हैं।

उदाहरण के तौर पर─
भगवान शिव का बीज मन्त्र है ❛ हौं
यह बीजमन्त्र
ह् +औ +बिन्दु से बना है
ह्  भगवान शिव का नाम है
का अर्थ है सदाशिव और
बिन्दु ं का अर्थ है दुःख हरनेवाला
जिसका अर्थ होता है
हे भगवान सदाशिव, मेरे दुखों का हरण करो।

इसी प्रकार─
गं गणेशजी का बीजमन्त्र है
ह्रीं भैरव और शिवजी का बीजमन्त्र है
क्लीं भगवान श्रीकृष्ण का बीज मन्त्र है
श्रीं माता लक्ष्मी का बीजमन्त्र है
क्रीं माता काली का बीजमन्त्र है
ऐं माता सरस्वती का बीजमन्त्र है
दुं माता दुर्गा का बीजमन्त्र है
क्ष्रों भगवान नरसिंह का बीजमन्त्र है
हं हनुमानजी का बीजमन्त्र है

ऐसे ही हर बीज मन्त्र की अपनी महिमा है, जिसके जप निश्चित ही लाभ होता है और उस देवी-देवता की कृपा होती उस भक्त पर होती ही है। लेकिन हर बीजमन्त्र का अर्थ होता है, ऐसा अब तक मैंने किसी शास्त्र में उल्लेख नहीं पाया।

आइये, बीजमन्त्रों का सही उच्चारण क्या है, यह जान लें─

कुछ बीजमन्त्रों के विषय में भक्त या साधकों में असमंजस की स्थिति बनी रहती है कि इस बीजमन्त्र का उच्चारण क्या है?

जैसे─
गं को गङ्ग कहा जाये या गम्?
दुं को दुङ्ग कहा जाये या दुम्?
ह्रीं को ह्रीङ्ग कहा जाये या ह्रीम्?

आप मेरी बातों पर ध्यान दें─
संस्कृत के श्लोक हमने बड़े-बड़े मनीषियों के मुख से सुना होगा कि शब्द के अन्त में यदि अनुस्वार अर्थात् बिन्दु आये तो उच्चारण आधा म (म्) होता है।

रामरक्षास्तोत्र में आये एक श्लोक पर नज़र डालते हैं─

मनोजवं मारुतुल्य वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।।

इस श्लोक में आये निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण देखें─
मनोजवं को मनोजवम्
वेगं को वेगम्
जितेन्द्रियं को जितेन्द्रियम्
वरिष्ठम् को वरिष्ठम् ही लिखा गया है।
वातात्मजं को वातात्मजम्
मुख्यं को मुख्यम्
दूतं को दूतम्
शरणं को शरणम्

इससे सिद्ध होता है कि किसी भी शब्द के अन्त में अनुस्वार का अर्थ आधा म (म्) होता है। इसी प्रकार किसी भी शास्त्र के श्लोक पढ़ते समय यही नियम लागू होते हैं।

ध्यान दें─ बीजमन्त्र पर अनुस्वार लगने से वह शब्द का रूप बन जाता है। उसके आगे कोई अक्षर नहीं होता, जिससे जुड़कर उसका उच्चारण बदले या अलग हो और जिसके आगे अक्षर हो वह बीजमन्त्र नहीं कहलाता। इसलिये बिन्दु (अनुस्वार) का उच्चारण आधा म (म्) होता है।

तो…
गं को गम्
दुं को दुम्
ह्रीं को ह्रीम्
उच्चारण करना एकदम सही है।

इसी तरह कोई भी बीजमन्त्र हो उसके बिन्दु का उच्चारण आधा म (म्) ही होता है। आप भ्रमित न हों, इसलिये मैंने आपको उदाहरण देकर समझाया। आप निश्चिन्त होकर बीजमन्त्रों का इस प्रकार जप करें और साधनापथ पर अग्रसर हों, यही मेरी शुभकामना है। हर क़दम आत्मा की ओर बढ़ते रहें।

विशेष ध्यान:- 

यदि किसी साधक को उसके गुरु से उपरोक्त बीजमन्त्रों में कोई मन्त्र का उच्चारण अलग बताया गया है तो साधक को वही उच्चारण करना है, जो गुरु ने कहा है; क्योंकि गुरु के मुख से जो शब्द निकले शिष्य के लिये वही कल्याणकारी होता है। अतः यह लेख पढ़ने के बाद दुविधा में न रहें।