बोला तो मरा
एक राजा था। उसकी कोई सन्तान नहीं थी। एक बार नगर में किसी अच्छे सन्त का आगमन हुआ। उनके शिष्य भी इतनी उच्चतम् अवस्था को प्राप्त थे कि जो मुँह से कह दें, वह हो जाता था।
राजा सन्त के पास गया और सन्तान के लिये प्रार्थना की। सन्त ने कहा─ “राजन, तुम्हारे प्रारब्ध में सन्तान लिखी नहीं है। इस विषय में मैं कुछ नहीं कर सकता।”
राजा उदास मन से वहाँ से लौट पड़ा। रास्ते में उन्हीं सन्त का एक शिष्य मिल गया। शिष्य ने पूछ लिया कि─ “महाराज! आप यहाँ कैसे आये?”
राजा ने कहा कि─ “मैं सन्तान की कामना से आया था, परन्तु निराशा ही हाथ लगी।”
शिष्य ने कह दिया─ “चिन्ता मत करो, आपको सन्तान हो जायेगी।”
राजा प्रसन्न होकर महल में लौट आया। इधर गुरुजी को मालूम हुआ तो वे शिष्य पर बडे़ नाराज़ होकर बोले─ “राजा के भाग्य में सन्तान योग नहीं था, तुमने सन्तान होने की बात क्यों कह दी?”
शिष्य बोला─ “क्या करूँ गुरुदेव, मुँह से निकल गया!”
गुरुदेव मौन हो गये। शिष्य बोला─ “क्या हुआ गुरुदेव, आप चुप क्यों हो गये?”
गुरुजी ने कहा─ “बेटा, अपने वचन के कारण अब तुम्हें ही राजा के घर पुत्र बनकर जन्म लेना पड़ेगा।”
समय पाकर राजा के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। पुत्र सब शुभ लक्षणों से सम्पन्न था, बस एक ही दोष था कि वह मुँह से कुछ बोलता नहीं था।
राजा ने अच्छे-अच्छे वैद्यों को दिखाया। वैद्य यही बताते कि ─ “यह गूँगा तो नहीं है, पर बोलता क्यों नहीं समझ में नहीं आ रहा है?”
राजा ने घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति राजकुमार से बुलवायेगा, उसको एक लाख रुपये इनाम में दिये जायेंगे।
अनेक व्यक्ति आये, उन्होंने तरह-तरह के उपाय किये, पर कोई भी राजकुमार से बुलवा नहीं सका।
समय बीतता गया। राजकुमार कुछ बड़ा हो गया।
एक दिन राजा के आदमी राजकुमार को वन में घुमाने ले गये। वहाँ एक शिकारी बैठा था और पक्षी को खोज रहा था कि कोई पक्षी दिखायी दे तो उसको मार सकूँ। इतने में एक पेड़ पर बैठा पक्षी बोल पड़ा। शिकारी की दृष्टि उस पक्षी की तरफ़ गयी और उसने पक्षी को मार गिराया।
यह देखते ही राजकुमार के मुँह से निकल पड़ा─ “बोला तो मरा!”
यह सुनते ही राजकुमार के साथ आये आदमी बड़े हर्षित हो गये कि आज तो राजकुमार बोल गया। वे राजा के पास गये और उसका समाचार दिया कि आज उनका राजकुमार बोल पड़ा।
राजा ने उनसे कहा कि मेरे सामने बुलवाओ, तब मैं मानूँगा। उन आदमियों ने बहुत प्रयत्न किया, पर राजकुमार कुछ बोला नहीं।
राजा ने कहा─ “तुम सब झूठ बोलते हो, मैं तुम्हें फाँसी पर चढ़ा दूँगा।”
राजकुमार फिर बोल उठा─ “बोला तो मरा!”
राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ।
उसने राजकुमार से प्रार्थना की कि─ “साफ़-साफ़ कहो, बात क्या है?”
अब राजकुमार बोला─ “महाराज ! मैं वही साधु हूँ, जिसने आपको सन्तान होने का आशीर्वाद दिया था। आपके प्रारब्ध में सन्तान नहीं थी, पर मैं बोल गया, इसलिये मुझे आपके घर जन्म लेना पड़ा। अगर मैं न बोलता तो मुझे दोबारा जन्म न लेना पड़ता। पक्षी भी बोल तभी शिकारी के द्वारा मारा गया। इन आदमियों ने आपको मेरे बोलनेका समाचार दिया तो परिणाम में फाँसी लगने लगी। यह सब बोलने का ही परिणाम है। इसीलिये मेरे मुँह से निकला─ “बोला तो मरा!”
अब मैं भी जाता है क्योंकि मैं बोल गया! ऐसा कहकर राजकुमार मर गया।
इस कहानी की सीख यही है कि मनुष्य को बिना सोचे समझे किसी से भी कुछ नहीं कहना चाहिये।
सन्तोंने ठीक ही कहा है
जनहरिया संसार में, बहु बोल्याँ बहु दुक्ख।
चुप रहिये हरि सुमिरिये, जो जिव चाहे सुक्ख।।
अर्थात्
इस संसार में जो बहुत बोलता है, उसे बहुत दुःख मिलता है, इसलिये जीव यदि सुख चाहे तो चुप रहे और हरि का सुमिरन करे।