ब्रह्मचर्य
आज के समय में मनुष्य इतना बहिर्मुख हो चुका है कि उसे अन्तर्मुख होने की बात कही जाये तो वह अनेक तर्क वितर्क देने लगेगा। उसकी वृत्तियाँ (विचार) कामुक सुखों के इतनी अधीन हो चुकी हैं कि ब्रह्मचर्य जैसी बात उसे अच्छी ही नहीं लगेगी।
मैं आरम्भ में ही कह रहा हूँ यह पोस्ट केवल परमार्थ के साधकों के लिये हैं, जो साधना करके मनुष्य जन्म की सार्थकता को सिद्ध करना चाहते हैं, न कि उनके लिये जो काम-वासना को ही जीवन का उद्देश्य या उपलब्धि समझते हैं। इसलिये कमेण्ट बॉक्स में व्यर्थ की बातें न लिखें। इसे तटस्थ होकर पढ़ें और इसका लाभ उठायें।
ब्रह्मचर्य की महिमा
ब्रह्मचर्य हमारे साधना पथ की नींव मानी जाती है। ब्रह्मचर्य के प्रताप से ही भीष्म पितामह ने मृत्यु को इच्छामृत्यु के रूप में परिवर्तित किया था। पौराणिक काल में हनुमानजी, भीष्म पितामह जैसे व्यक्तित्व ब्रह्मचर्य के आदर्श रहे हैं और पिछली कुछ सदियों में स्वामी विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, साँई लीलाशाह जैसे महापुरुष! जिनके जीवन चरित्र ब्रह्मचर्य की महानता को सिद्ध करते हैं।
किन्तु आज के समय युवान ही नहीं, प्रत्युत हर वर्ग, हर आयु का व्यक्ति इस पथ से भटका हुआ है; क्योंकि ब्रह्मचर्य से भटकानेवाली वस्तुएँ, सुविधाएँ (सोशल मिडिया यू ट्यूब, फ़ॅसबुक, व्हाट्सएप आदि पर) बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जा रही हैं। विद्यार्थी जीवन को इन सुविधाओं ने अश्लीलता की खाई में ढकेल दिया है, जहाँ से उठ पाना बड़ा ही दुष्कर है; क्योंकि आज के समय में कान्वेण्ट स्कूल में पढ़नेवाले विद्यार्थियों के जीवन में सत्संग का अभाव है।
ख़ैर, हम अपने विषय पर आते हैं। ब्रह्मचर्य के अनेक अर्थ लगाये जाते हैं। हर किसी का अपना-अपना अभिमत है। विवाद का विषय न बनाकर कहें तो बह्मचर्य का सामान्य अर्थ लिया जाता है, काम-विकार से बचना।
परन्तु मेरी दृष्टि में काम-विकार से बचने की अपेक्षा कहीं अधिक आवश्यक है, कामुक विचारों से स्वयं की रक्षा करना। यदि मन में काम-विकार की वृत्तियाँ उत्पन्न होती रहीं तो हम ईश्वर की बन्दगी करते हुए भी बेकार की ज़िन्दगी जीते रहेंगे।
मन के विचारों से ही व्यक्ति साधना करता और मन के विचारों से ही काम-वासना में डूबता है। मन ही बन्धन और मन ही मुक्ति का कारण है।
इसलिये जिसका मन स्तम्भित (संयमित) है, वही ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। आइये, आपको ऐसे एक मन्त्र से परिचित करायें, जिसकी सहायता से ब्रह्मचर्य अर्थात् मन की वृत्तियों को सही दिशा मिलने लगती है।
वह मन्त्र है
ॐ नमो भगवते महाबले पराक्रमाय।
मनोभिलाषितं मनः स्तम्भ
कुरु कुरु स्वाहा।
इसे इक्कीस बार दूध में निहारते हुए पढ़ें और दूध पी जाये तो ब्रह्मचर्य में बहुत सहायता मिलती है। जो साधक साधना के पथ पर अग्रसर होना चाहते हैं, उन्हें यह मंत्र कण्ठस्थ कर लेना चाहिये। स्वभाव में आत्मसात् कर लेने जैसा यह मंत्र है।
।।ॐ आर्यमायै नमः।।
इस मन्त्र के जप से भी ब्रहचर्य में सहायता मिलती है। ब्रह्मचर्य का पालन दूषित मन अर्थात् कामुक विचारोंवाला व्यक्ति कभी नहीं कर सकता, अतः अपनी दिनचर्या में सुधार करें।
गन्दे अश्लील चलचित्र न देखें। यू ट्यूब आदि पर ऐसे विषय सर्च न करें; क्योंकि आप जैसा सर्च करते हैं, गुगल उसी तरह के वीडियो आपके सामने परोसने लगता है और आप बहिर्मुख हो जाते हैं, इसलिये सावधान रहें। गन्दे चैनलों और वेबसाइटों से स्वयं की रक्षा करें। यदि आप साधक हैं तो आज के समय में फ़िल्मांकन की गयी फ़िल्में भी न देखें; क्योंकि अधिकांश फ़िल्मों का उद्देश्य होता है, पैसा कमाना और युवा पीढ़ी को गुमराह करना।
अभिनेता और अभिनेत्रियाँ तो पैसों पर बिकनेवाले (बिकाऊ) हो गये हैं, जो पैसों की ख़ातिर कुछ भी कर गुज़रने को तैयार हों, उनकी फ़िल्में देखकर जीवन में साधारण-सा सुधार भी नहीं लाया जा सकता, तो ब्रह्मचर्य तो दूर की बात रही, इसलिये सावधान! अपने मन को सही दिशा में इंगित करें; क्योंकि सोशल मीडिया में अच्छी चीज़ें भी हैं, जिनसे जीवन का उद्धार भी किया जा सकता है, निर्णय और दिशा हमारे विचारों पर निर्भर है।
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