भगवद्गीता क्या है? knowledge of bhagavad gita

भगवद्गीता क्या है?

(knowledge of bhagavad gita)

श्रीमद्भगद्गीता के बारे में जिन्हें कुछ नहीं पता है, वे यह लेख ज़रूर पढ़ें। (ध्यान रखने योग्य बात─ गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं।)

श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म का पवित्र का ग्रन्थ माना जाता है। लेकिन यह ग्रन्थ सम्पूर्ण मानवजाति के लिये है; क्योंकि इसमें स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निमित्त बनाकर मानवमात्र के कल्याणके लिये उपदेश दिया है। इस ग्रन्थ को लेकर देश-विदेश के दार्शनिक, तत्त्वज्ञानियों द्वारा जितनी टीकाएँ लिखी गयी, उतनी किसी और ग्रन्थ के लिये नहीं लिखी गयी हैं।

विश्व-साहित्य में श्रीमद्भगवद्गीता का अद्वितीय स्थान है। यह साक्षात् भगवान् के श्रीमुख से नि:सृत परम रहस्यमयी दिव्य वाणी है। इस छोटे-से ग्रन्थ में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने हृदय के बहुत ही विलक्षण भाव भर दिये हैं, जिनका आज तक कोई पार नहीं पा सका और ना ही पा सकता है।

आज से लगभग सवा पाँच हज़ार वर्ष पूर्व द्वापर युग के अन्त में भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य का बोध कराने के लिए गीता ज्ञान का उपदेश दिया था।

शास्त्रों के जानकारों का कहना है कि गीता मात्र ४५ मिनट में भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। जिस दिन गीता भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से निःसृत हुई, वह रविवार का दिन और मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी, जिसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। क्योंकि इस तिथि को श्रीमद्भगवद्गीता का प्रादुर्भाव हुआ, इसलिये इस दिन को गीताप्रेमी गीता-जयन्ती के रूप में मनाते हैं।

गीता की गिनती उपनिषदों में की जाती है, इसलिये इसे गीतोपनिषद भी कहा जाता है। गीता-माहात्म्य में भगवान् वेदव्यास ने इसके अठारह नाम बताये गये हैं, जिसके जप से मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति होती है। इन अठारह नामों को लिखकर गले या दाहिने हाथ मेें धारण किया जाये तो बुरी शक्तियों से हमारी रक्षा होती है, परन्तु इसके लिये, मांस-मदिरा, व्यभिचार आदि का त्याग करना आवश्यक है।

अठारह नाम इस प्रकार हैं:-
१) गीता
२) गंगा
३) गायत्री
४) सीता
५) सत्या
६) सरस्वती
७) ब्रह्मविद्या
८) ब्रह्मवल्ली
९) त्रिसन्ध्या
१०) मुक्तगेहिनी
११) अर्धमात्रा
१२) चिदानन्दा
१३) भवघ्नी
१४) भयनाशिनी
१५) वेदत्रयी
१६) परा
१७) अनन्ता
१८) तत्त्वार्थज्ञानमञ्जरी

गीता के १८ नाम वीडियो के रूप में देखें।

आइये जानें, श्रीमद्भगवद्गीता किस ग्रन्थ के अन्तर्गत आती है?

महाभारत के अठारह पर्व हैं। पर्व के अन्तर्गत उप-पर्व भी हैं। भगवद्गीता छठवें पर्व अर्थात् भीष्मपर्व का एक हिस्सा है। भीष्मपर्व के अन्तर्गत भगवद्गीता उप-पर्व है। भीष्मपर्व के २५ वें अध्याय से ४२ वें अध्याय तक भगवद्गीता के अठारह अध्यायों का उल्लेख है

इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता में कुल अठारह अध्याय और सात सौ श्लोक हैं, जिनमें भगवान् श्रीकृष्ण ने पाँच सौ चौहत्तर (५७४) श्लोक, अर्जुन ने पचासी (८५) धृतराष्ट्र ने एक (१) और संजय ने चालीस (४०) श्लोक कहे हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्याय के नाम और हर अध्याय में कितने श्लोक हैं? उसकी जानकारी

१ ला अध्याय
अर्जुनविषादयोग (श्लोक-४७)
[महाभारत के भीष्मपर्व का २५ वाँ अध्याय]
२ रा अध्याय
सांख्ययोग (श्लोक-७२)
[महाभारत के भीष्मपर्व का २६ वाँ अध्याय]
३ रा अध्याय
कर्मयोग (श्लोक-४३)
[महाभारत के भीष्मपर्व का २७ वाँ अध्याय]
४ था अध्याय
ज्ञानकर्मसन्न्यासयोग (श्लोक-४२)
[महाभारत के भीष्मपर्व का २८ वाँ अध्याय]
५ वाँ अध्याय
कर्मसन्न्यासयोग (श्लोक-२९)
[महाभारत के भीष्मपर्व का २९ वाँ अध्याय]
६ वाँ अध्याय
आत्मसंयमयोग (श्लोक-४७)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३० वाँ अध्याय]
७ वाँ अध्याय
ज्ञान-विज्ञानयोग (श्लोक-३०)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३१ वाँ अध्याय]
८ वाँ अध्याय
अक्षरब्रह्मयोग (श्लोक-२८)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३२ वाँ अध्याय]
९ वाँ अध्याय
राजविद्याराजगुह्ययोग (श्लोक-३४)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३३ वाँ अध्याय]
१० वाँ अध्याय
विभूतियोग (श्लोक-४२ )
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३४ वाँ अध्याय]
११ वाँ अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग (श्लोक-५५ )
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३५ वाँ अध्याय]
१२ वाँ अध्याय
भक्तियोग (श्लोक-२०)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३६ वाँ अध्याय]
१३ वाँ अध्याय
क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग (श्लोक-३४ )
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३७ वाँ अध्याय]
१४ वाँ अध्याय
गुणत्रयविभागयोग (श्लोक-२७ )
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३८ वाँ अध्याय]
१५ वाँ अध्याय
पुरुषोत्तमयोग (श्लोक-२०)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ३९ वाँ अध्याय]
१६ वाँ अध्याय
दैवासुरसम्पद्विभागयोग (श्लोक-२४ )
[महाभारत के भीष्मपर्व का ४० वाँ अध्याय]
१७ वाँ अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग (श्लोक-२८)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ४१ वाँ अध्याय]
१८ वाँ अध्याय
मोक्षसन्न्यासयोग (श्लोक-७८)
[महाभारत के भीष्मपर्व का ४२ वाँ अध्याय]

श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग के मार्ग पर चलने की विस्तारपूर्वक व्याख्या की गयी है। इन मार्गों पर चलने से साधक निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

गीता का सार है ईश्वर की शरण होना है, अठारहवें अध्याय के छाछठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत करुणा करके अर्जुन से कहा है:-

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणंव्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामिमा शुचः।।

अर्थात्

सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर (तू) केवल मेरी शरणमें आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर। भगवान् द्वारा सम्पूर्ण धर्मों का आश्रय छोड़कर कहने का अभिप्राय है यह नहीं है कि अपने धर्म का त्याग करना। उनके कहने का अर्थ है धर्म के निर्णय का विचार छोड़कर अर्थात् क्या करना है और क्या नहीं करना है—इसको छोड़कर केवल एक मेरी ही शरणमें आ जा।

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