भीख को अंग

भीख को अंग

(कबीरदास के दोहे)

अपने स्वाभिमान को भूलकर भीख माँगना मृत्यु के समान है। स्वाभिमान और अभिमान में बहुत अन्तर है। स्वाभिमान आपको भीतर से गिरने नहीं देता, किन्तु अभिमान आपको पाखण्डी बना देगा।

भिक्षा के सन्दर्भ में गृहस्थ और साधुओं का क्या धर्म है? इस बारे में कबीर साहेब के दोहे बड़ी सरलता से मार्गदर्शन करते हैं, आइये जानें

❍ माँगन मरण समान है, तोहि दई मैं सीख।
कहैं कबीर समझाय के, मति कोई माँगे भीख।।१।।
❑अर्थ➠ माँगना मरने के तुल्य है, कबीरजी समझाकर कहते हैं कि मैं तुम्हें शिक्षा देता हूँ कि कोई भिक्षा मत माँगो।।१।।
दोहे का भाव है, किसी के आगे असहाय होकर गिड़गिड़ाना मृत्यु के समान है।

❍ माँगन गै सो मर रहै, मरै जु माँगन जाहिं।
तिनते पहिले वे मरे, होत करत हैं नाहिं।।२।।
❑अर्थ➠ जो किसी के यहाँ माँगने गया है, वह तो मरा हुआ ही है। उससे पहले वह मर गया, जिसने होते हुए भी ना कर दिया।।२।।
दोहे का भाव है, यदि ईश्वर ने हमें समर्थ बनाया है तो माँगनेवाले को कभी निराश नहीं करना चाहिये। यदि सामर्थ्य होते हुए भी हमने ना कह दिया तो हम ज़िन्दा लाश है, जो किसी के दुःख दर्द को महसूस नहीं कर पाते।

❍ उदर समाता माँगि ले, ताको नाहीं दोष।
कहैं कबीर अधिका गहै, ताकि गति न मोष।।३।।
❑अर्थ➠ यदि साधु उदर-पूर्ति मात्र के लिए माँग ले तो उसको दोष नहीं है। कबीरजी कहते है जो संग्रह के लिए लालच करता है, उसको मोक्ष मिलना कठिन है।।३।।
दोहे का भाव है, भिक्षा साधु-सन्न्यासी को ही शोभा देता है, वह भी आवश्तकता भर। यदि मन में संग्रह करने का लोभ उत्पन्न हो गया तो लोभ ही मुक्ति में बाधा उत्पन्न कर देगी।

❍ अजहूँ तेरा सब मिटैं, जो मानै गुरु सीख।
जब लग तू घर में रहै, मति कहुँ माँगे भीख।।४।।
❑अर्थ➠ आज भी तेरे सब दोष-दुख मिट जायें। यदि तू सद्गुरु की शिक्षा पर कान दे तो जब तक तू गृहस्थ है, कहीं भिक्षा मत माँगना।।४।।
दोहे का भाव, गृहस्थ को कभी भीख नहीं माँगना चाहिये।

❍ उदर समाता अन्न ले, तनहि समाता चीर।
अधिकहि संग्रह ना करै, तिसका नाम फकीर।।५।।
❑अर्थ➠ जो उदर-पूर्ति के लिये भोजन ले, शरीर निर्वाह के लिये वस्त्रादि तथा जीवनोपयोगी वस्तु के अतिरिक्त संग्रह न करे, उसी को विरक्त कहा जाता है।।५।।
दोहे का भाव है, जो वस्तुओं संग्रह न करे, अपितु सदुपयोग करे, वही फ़कीर है।

❍ अनमाँगा तो अति भला, माँगि लिया नहिं दोष ।
उदर समाता माँगि ले, निश्चै पावै मोष।।६।।
❑अर्थ➠ बिना माँगे मिला हुआ सर्वोत्तम है। यदि पेट के लिए माँग लिया तो भी साधु को दोष नहीं है। उदर-पूर्ति के लिए माँग लेने में मोक्ष साधन में निश्चय ही कोई बाधा नहीं पड़ेगी।।६।।
यह दोहा भिक्षा के विषय में साधु धर्म की परिभाषा है।

❍ अनमाँगा उत्तम कहा, मध्यम माँगि जो लेय।
कहैं कबीर निकृष्टि सो, पर घर धरना देय।।७।।
❑अर्थ➠ कबीरजी कहते हैं, बिना माँगे मिला हुआ उत्तम, माँग लेना मध्यम है और पराये द्वार पर धरना देकर हठपूर्वक माँगना तो महापाप है।।७।।
दोहे का भाव है, माँगनेवाले को कोई कुछ देना भी नहीं चाहता इसलिये जो सहज मिले वही उत्तम है, इसी दोहे को दूसरे ढंग से कबीरजी ने कहा है।

❍ सहज मिलै सो दूध है, माँगि मिलै सो पानि।
कहैं कबीर वह रक्त है, जामें ऐंचातानि।।८।।
❑अर्थ➠ बिना माँगे सहज रूप से मिल जाय, वह दूध के समान उत्तम है, और माँगने पर मिले, वह पानी के समान मध्यम है। कबीर साहेब कहते हैं कि जिसमें ऐंचातानी हो (अड़ंगा डालकर माँगना और कष्टपूर्वक देना होता है) वह रक्त के समान त्यागने योग्य है।।८।।

❍ आब गया आदर गया, नैनन गया सनेह।
यह तीनों तबही गये, जबहिं कहा कछु देह।।९।।
❑अर्थ➠ मर्यादा चली गयी, सत्कार चला गया, नेत्रों से स्नेह भी चला गया। ये तीनों तभी चले गये, जब कहा-‘कुछ दीजिये!’।।९।।
दोहे का भाव
माँगनेवाला तृण (घास) से भी हल्का हो जाता है, जो कहीं भी उड़कर चला जाता है। उसका कहीं आदर-सत्कार नहीं होता, ना ही लोगों के मन उसके प्रति स्नेह होता है। लोग डरते ही रहते हैं कि कहीं कुछ माँग न ले?

12 Comments

  1. tofdupefe January 25, 2023
  2. tofdupefe January 25, 2023
  3. gypesee January 29, 2023
  4. gypesee February 2, 2023
  5. tofdupefe February 3, 2023
  6. tofdupefe February 3, 2023
  7. tofdupefe February 3, 2023
  8. gypesee February 7, 2023
  9. Boasexy February 20, 2023
  10. Boasexy February 21, 2023
  11. Nadlide March 2, 2023
  12. Boasexy March 12, 2023

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