महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान कैसे करें?
महामृत्युञ्जय मन्त्र मृत्यु, भय, रोग, शोक, दोष का प्रभाव कम कर देता है। यदि आप या आपका कोई प्रिय बहुत बीमार है या फिर किसी दुर्घटना का शिकार हो गया है या मन आशंकित है तो महामृत्युंजय मन्त्र का जाप रामबाण की तरह कार्य करता है।
मन्त्र के जानकारों का कहना है कि घर से निकलते समय केवल ३ बार महामृत्युंजय का मन्त्र जप करके निकलें तो अकस्मात् होनेवाली दुर्घटना से भगवान् शिव हमारी रक्षा करते हैं।
इस मन्त्र के ऋषि भगवान् श्रीराम के गुरु वशिष्ठ महाराज हैं। छन्द अनुष्टुप है। महामृत्युंजय मन्त्र के ३३ अक्षर, जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार ३३ कोटि (प्रकार के) देवताओं के प्रतिनिधि हैं। उन तैंतीस देवताओं में ८ वसु, ११ रुद्र, १२ आदित्य, १ प्रजापति तथा १ षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मन्त्र में समाहित रहती हैं।
ऊपर कहे गये देवता, वसु, आदित्य आदि अपनी सम्पूर्ण शक्तियों सहित मानव शरीर में विराजते हैं। जो मनुष्य श्रद्धा सहित महामृत्युजय मन्त्र का जप करता है, उसके शरीर के उन अंगों की (जहाँ के जो देवता हैं) उनकी रक्षा होती है।
महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ करनेवाला साधक दीर्घायु तो प्राप्त करता ही है। साथ ही वह निरोग, ऐश्वर्य युक्त धनवान भी होता है, वह हर दृष्टि से सुखी एवं समृद्धिशाली होता है। भगवान् शिव की अमृतमयी कृपावृष्टि उस पर निरन्तर होती रहती है।
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मन्त्रविदों का कहना है कि महामृत्युंजय मन्त्र बीजमन्त्रसहित जप करने से उसका फल १० गुना हो जाता है। अतः स्वयं के लिये अथवा किसी के लिये जप करते समय बीजमन्त्रसहित जप करना अधिक योग्य है।
परन्तु मन्त्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और सही होना चाहिए। महामृत्युञ्जय मन्त्र का अशुद्ध उच्चारण न करें। जप के बाद में इक्कीस बार गायत्री मन्त्र का जाप करें ताकि अनजाने में हुए महामृत्युञ्जय मन्त्र का अशुद्ध उच्चारण होने पर भी अनिष्ट होने का भय न रहे।
इसका मतलब यह नहीं है कि अशुद्ध उच्चारण करें, अनजाने में हुई भूल के लिये यह विकल्प है। इसलिये इस मन्त्र को भलिभाँति उच्चारण कैसे करें, यह समझ लेना चाहिये ताकि जप के दौरान ग़लती न हो।
महामृत्युंजय मन्त्र का जप न बहुत धीरे गति से करें, न तेज़ गति से। जप के समय आपकी आवाज़ कोई सुन न सके, होंठ हिलें पर आवाज़ सुनाई न दे, इस प्रकार जप करना चाहिये।
इसके लिए ब्राह्मणों को संकल्प दिलाकर सवा लाख मन्त्रों का जाप कराया जाता है। परन्तु जब हम किसी अपने के लिये जप करते हैं तो स्वयं जप-अनुष्ठान करना अधिक योग्य है। सवा लाख जप के बाद उसका दशांश (१२५००) हवन करने पर अनुष्ठान पूर्ण होता है।
जप-अनुष्ठान के नियम─
१) अनुष्ठान का आरम्भ सोमवार के दिन करना अधिक योग्य माना जाता है।
२) जपकाल के दौरान पूर्ण रूप से शुद्धि का ध्यान रखें। लघुशंका या दीर्घशंका के बाद स्नान करें।
३) पूर्व दिशा की ओर मुँह करके जप करना चाहिए।
मन्त्र का जाप शिवमन्दिर में या पवित्र स्थल पर रूद्राक्ष की माला से ही करें।
४) माला १०८ मनके का होना चाहिये और कोई भी मनका खण्डित न हो, इसका ख़्याल रखें। गोमुखी में रखकर या शुद्ध कपड़े से ढँककर माला जपना चाहिये।
५) जप करते समय यदि माला हाथ से गिर जाये तो उसकी गिनती जप में नहीं होती।
६) मन्त्र-जाप कुश या ऊन के आसन पर बैठकर करें।
७) जप की संख्या निश्चित कर लें कि कितने दिन में कितनी माला करने पर सवा लाख जप पूरा होगा।
उदाहरण कै तौर पर─
साठ (६०) दिन में प्रतिदिन बीस (२०) माला करने पर एक लाख उनतीस हज़ार छः सौ (१२९६००) जप होगा अर्थात् सवा लाख जप पूर्ण हो जायेगा। सामूहिक रूप से भी यह अनुष्ठान किया जाये तो सात, ग्यारह, इक्कीस दिन में पूर्ण हो जाता है।
८) जाप एक निर्धारित जगह और निर्धारित समय पर ही करें।
विशेष:─
जापक जितने अधिक होंगे, उतना कम समय लगेगा। जितने दिन मन्त्र का जाप करें, उतने दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें, सात्त्विक भोजन करें, उपवास रखना अति उत्तम है। जप के दरम्यान धूप-दीप प्रज्वलित रखें ताकि वातावरण में पवित्रता बनी रहे और मन शान्त रहे। जप के पूर्व प्रतिदिन विनियोग पढ़ लेना चाहिये ताकि हम जिनके लिये जप करें, उनके लिये फलीभूत हो।
ध्यान दें:─
कुछ मन्त्रविदों का मानना है कि दोपहर १२ बजे के बाद इस मन्त्र का जप फलीभूत नहीं होता, यह परम्परागत सुनी गयी बात है, इसका कोई शास्त्रीय प्रमाण मेरे पास नहीं है।
⚛⚛⚛ अथ ध्यानम् ⚛⚛⚛
हस्ताम्भोजयुगस्थकुम्भयुगलादुद्धृत्य तोयं शिरः।
सिंचन्तं करयोर्युगेन दधतं स्वांके सकुम्भौ करौ।।
अक्षस्रङमृगहस्तमम्बुजगतं मूर्धस्थचन्द्रस्रवत्।
पीयूषार्द्रतनु भजे सगिरिजं त्र्यक्षं च मृत्युञ्जयं।।
अर्थ➠ भगवान मृत्युंजय के आठ हाथ हैं। वे अपने ऊपर के दोनों करकमलों से दो घड़ों को उठाकर उसके नीचे के दो हाथों से जल अपने शीश पर उड़ेल रहे हैं। सबसे नीचे के दो हाथों में घड़े लेकर उन्हें अपनी गोद में रख लिया है। शेष दो हाथों में वे रुद्राक्ष की माला तथा मृगी-मुद्रा धारण किये हुए हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं और उनके शीश पर स्थित चन्द्रमा से निरन्तर अमृतवृष्टि के कारण उनका शरीर भीगा हुआ हुआ है। उनके तीन नेत्र हैं। उन्होंने मृत्यु को सर्वथा जीत लिया है। उनके वामांग भाग में गिरिराजनन्दिनी भगवती उमा विराजमान हैं।
✺ विनियोग ✺
ॐ अस्य श्री महामृत्युञ्जय मन्त्रस्य, वशिष्ठ ऋषिः, अनुष्टुप छन्द, श्री महामृत्युञ्जय रुद्र देवता, हौं बीजम्, जूँ शक्तिः, सः कीलकम् (जिसके लिये जप करेंगे, उसका नाम) आयु, आरोग्य, यशः, कीर्ति, पुष्टि, वृद्धि अर्थे जपे विनियोगः।
मैं पहले ही बता चुका हूँ कि जप न तेज़ गति से करें, न धीरे। आरम्भ में १ माला करने में ३५ से ४० मिनट का समय लग सकता है, परन्तु अभ्यास हो जाने पर १८ से २० मिनट में एक माला पूरी हो जाती है।
बीजमन्त्रसहित महामृत्युंजय मन्त्र का जप गाकर नहीं किया जाता। अपितु जैसे जप किया जाता है, उस प्रकार जप करें।
ॐ हौं जूँ सः। ॐ भूर्भुवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूँ हौं ॐ।
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