महालक्ष्मी अष्टकम्

महालक्ष्मी अष्टकम्

जीवन में हर कोई चाहता है कि माँ लक्ष्मी की कृपा उस पर सदैव बनी रहे। शास्त्रों में माता लक्ष्मी के अनेक स्तोत्र हैं, जिनके पाठ से उनकी कृपा भक्तों पर होती है, परन्तु वे बहुत बड़े या उच्चारण में कठिन हैं। सही ज्ञान दिशा के इस वीडियो में ११ श्लोकवाले महालक्ष्म्यष्टकम् इस छोटे-से स्तोत्र को हम बोलना सीखेंगे। अनुष्टुप् छन्द पर आधारित होने के कारण यह बहुत ही सरल है। इसके आठ श्लोक में चौथे पद …महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते। इसकी पुनरावृत्ति है, जिस कारण यह और भी सरल हो जाता है।

इसकी फलश्रुति में कहा गया है। एककाल (प्रातःकाल) इसका पाठ महापापों का नाश करता है। द्विकाल (प्रातः और सन्ध्या) के समय पाठ करनेवाला धन्य-धान्य से सम्पन्न रहता है। जो त्रिकाल (प्रातः, दोपहर और संध्या) में इसका पाठ करता है, उसके महाशत्रुओं का नाश होता है और महालक्ष्मी उस पर सदैव प्रसन्न रहती हैं।

www.sugamgyaansangam.com
सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में प्रस्तुत स्तोत्र के मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित देवीस्तोत्र रत्नाकर पर आधारित हैं।

महालक्ष्म्यष्टकम्
(❑➧मूलश्लोक ❍ लघुशब्द)

इन्द्र उवाच
❑➧नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।
❍ नमस्तेऽस्तु महा-माये
श्री-पीठे सुर-पूजिते।
शङ्ख-चक्र-गदा-हस्ते
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।

❑➧नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।
❍ नमस्ते गरुडा-रूढे
कोलासुर-भयङ्करि।
सर्व-पाप-हरे देवि
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।

❑➧सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।
❍ सर्वज्ञे सर्व-वरदे
सर्व-दुष्ट-भयङ्करि
सर्व-दुःख-हरे देवि
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।

❑➧सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।।
❍ सिद्धि-बुद्धि-प्रदे देवि
भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिनि।
मन्त्र-पूते सदा देवि
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।।

❑➧आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।
❍ आद्यन्त-रहिते देवि
आद्य-शक्ति-महेश्वरि।
योगजे योग-सम्भूते
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।

❑➧स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
❍ स्थूल-सूक्ष्म-महारौद्रे
महा-शक्ति-महोदरे।
महा-पाप-हरे देवि
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।

❑➧पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।
❍ पद्मासन-स्थिते देवि
परब्रह्म-स्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।

❑➧श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।
❍ श्वेताम्बर-धरे देवि
नाना-लङ्कार-भूषिते।
जगत्-स्थिते जगन्मातर्
महा-लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।

❑➧महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।।
❍ महा-लक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं
यः पठेद्-भक्तिमान्-नरः।
सर्व-सिद्धिम-वाप्नोति
राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।।

❑➧एककाले यः पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकाल यः पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वितः।।१०।।
❍ एककाले यः पठेन्-नित्यं
महा-पाप-विनाशनम्।
द्विकाल यः पठेन्-नित्यं
धन्य-धान्यसमन्वितः।।१०।।

❑➧त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।।
❍ त्रिकालं यः पठेन्-नित्यं
महा-शत्रु-विनाशनम्
महा-लक्ष्मीर्-भवेन्-नित्यं
प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।।

महालक्ष्म्यष्टकम्
(❑➧मूलश्लोक ❑अर्थ➠ सहित)

इन्द्र उवाच
❑➧नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।१।।
इन्द्र बोले─
❑अर्थ➠ श्री पीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होनेवाली हे महामाये! तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाली है महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।।१।।

❑➧नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।२।।
❑अर्थ➠ गरुड़ पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देनेवाली और समस्त पाप को हरनेवाली हे भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।।२।।

❑➧सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।३।।
❑अर्थ➠ सब कुछ जाननेवाली, सबको वर देनेवाली, समस्त दुष्टों को भय देनेवाली और सबके दु:खों को दूर करनेवाली हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।।३।।

❑➧सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।४।।
❑अर्थ➠ सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देनेवाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नित्य प्रणाम है।।४।।

❑➧आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।५।।
❑अर्थ➠ हे देवी! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ते! हे महेश्वरी ! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।।५।।

❑➧स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।६।।
❑अर्थ➠ हे देवी! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा (महा उदार) हो और बड़े बड़े पाप का नाश करनेवाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।।६।।

❑➧पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।७।।
❑अर्थ➠ हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्बा! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।।७।।

❑➧श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।८।।
❑अर्थ➠ हे देवी! तुम श्वेत वस्त्र धारण करनेवाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् मे व्याप्त एवं समस्त लोक को जन्म देनेवाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।।८।।

❑➧महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।९।।
❑अर्थ➠ जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है।।९।।

❑➧एककाले यः पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकाल यः पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वितः।।१०।।
❑अर्थ➠ जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्यसे सम्पन्न होता है।।१०।।

❑➧त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।११।।
❑अर्थ➠ जो प्रतिदिन तीनों काल में पाठ करता है, उसके महान् शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।।११।।

इस प्रकार इन्द्रकृत महालक्ष्म्यष्टक सम्पूर्ण हुआ।

5 Comments

  1. tofdupefe January 26, 2023
  2. tofdupefe February 3, 2023
  3. tofdupefe February 4, 2023
  4. Nadlide March 8, 2023
  5. Nadlide March 9, 2023

Leave a Reply