महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र बोलना सीखें | Mahishasura mardini stotram

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र बोलना सीखें

महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र को संकटास्तुतिः के नाम से भी जाना जाता है। यह कनकमंजरी छन्द पर आधारित है। इस स्तोत्र में शिवताण्डव की तरह शब्द का स्वरूप तो बहुत ही बड़ा है, परन्तु प्रवाह इतना मधुर है कि बार-बार सुनने को मन करता है। मन में इच्छा भी होती है कि काश! इसे हम भी पढ़ सकते!

तो निश्चित ही हम इसे पढ़ सकते हैं। जितना कठिन हम इसे समझते हैं, यह उतना कठिन नहीं है। इसकी शब्द-शृंखला देखकर हम डर जाते हैं। परन्तु इस लेख में मूल शब्दों को छोटे-छोटे रूप में दर्शाया गया है, जिसे देखकर सरलतापूर्वक पढ़ा जा सकता है। प्रामाणिकता के तौर पर मूल श्लोक भी लाल रंग दर्शाये गये हैं।

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❀ महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)

❑➧अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूतिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१।।
❍ अयि गिरि नन्दिनि नन्दित मेदिनि
विश्व विनोदिनि नन्दि नुते
गिरिवर विन्ध्य शिरोधिनि वासिनि
विष्णु विलासिनि जिष्णु नुते।
भगवति हे शिति कण्ठ कुटुम्बिनि
भूरि कुटुम्बिनि भूति कृते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१।।

❑➧सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि कल्मषमोषिणि घोषरते।
दनुजनिरोषिणि दुर्मदशोषिणि दुर्मुनिरोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२।।
❍ सुरवर वर्षिणि दुर्धर धर्षिणि
दुर्मुख मर्षिणि हर्ष रते
त्रिभुवन पोषिणि शङ्कर तोषिणि
कल्मष मोषिणि घोष रते।
दनुजनि रोषिणि दुर्मद शोषिणि
दुर्मुनि रोषिणि सिन्धु सुते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।२।।

❑➧अयि जगदम्ब कदम्बवनप्रियवासिनि तोषिणि हासरते
शिखरिशिरोमणितुङ्गहिमालयशृङ्गनिजालयमध्यगते।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि महिषविदारिणि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।३।।
❍ अयि जगदम्ब कदम्ब वन प्रिय
वासिनि तोषिणि हास रते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय
शृङ्ग निजालय मध्य गते।
मधु मधुरे मधु कैटभ गञ्जिनि
महिष विदारिणि रास रते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।३।।

❑➧अयि निजहुंकृतिमात्रनिराकृतधूम्रविलोचनधूम्रशते
समरविशोषितरोषितशोणितबीजसमुद्भवबीजलते।
शिवशिवशुम्भनिशुम्भमहाहवतर्पितभूतपिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।४।।
❍ अयि निज हुंकृति मात्र निराकृत
धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित रोषित शोणित
बीज समुद्भव बीज लते।
शिव शिव शुम्भ निशुम्भ महाहव
तर्पित भूत पिशाच रते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।४।।

❑➧अयि शतखण्डविखण्डितरुण्डवितुण्डितशुण्डगजाधिपते
निजभुजदण्डनिपातितचण्डविपाटितमुण्डभटाधिपते।
रिपुगजगण्डविदारणचण्डपराक्रमशौण्डमृगाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।५।।
❍ अयि शत खण्ड विखण्डित रुण्ड
वितुण्डित शुण्ड गजाधि पते
निज भुज दण्ड निपातित चण्ड
विपाटित मुण्ड भटाधि पते।
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड
पराक्रम शौण्ड मृगाधि पते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।५।।

❑➧धनुरनुषङ्गरणक्षणसङ्गपरिस्फुरदङ्गनटत्कटके
कनकपिशङ्गपृषत्कनिषङ्गरसद्भटशृङ्गहताबटुके।
हतचतुरङ्गबलक्षितिरङ्गघटद् बहुरङ्गरटद् बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।६।।
❍ धनु रनु षङ्ग रण क्षण सङ्ग
परिस्फुर दङ्ग नटत् कटके
कनक पिशङ्ग पृषत् कनिषङ्ग
रसद् भटशृङ्ग हता बटुके।
हत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग
घटद् बहुरङ्ग रटद् बटुके
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।६।।

❑➧अयि रणदुर्मदशत्रुवधाद्धुरदुर्धरनिर्भरशक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशयदूतकृतप्रमथाधिपते।
दुरितदुरीहदुराशयदुर्मतिदानवदूतदुरन्तगते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।७।।
❍ अयि रण दुर्मद शत्रु वधाद्धुर
दुर्धर निर्भर शक्तिभृते
चतुर विचार धुरीण महाशय
दूत कृत प्रमथाधि पते।
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति
दानव दूत दुरन्त गते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।७।।

❑➧अयि शरणागतवैरिवधूजनवीरवराभयदायिकरे
त्रिभुवनमस्तकशूलविरोधिशिरोधिकृतामलशूलकरे।
दुमिदुमितामरदुन्दुभिनादमुहुर्मुखरीकृतदिङ्निकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।८।।
❍ अयि शरणागत वैरिव धूजन
वीर वराभय दायि करे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि
शिरोधि कृता मल शूल करे।
दुमि दुमिता मर दुन्दुभि नाद
मुहुर्मुखरी कृत दिङ्निकरे
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।८।।

❑➧सुरललनाततथेयितथेयितथाभिनयोत्तरनृत्यरते
कुतकुकुथाकुकुथोदिडदाडिकतालकुतूहगानरते।
धुधुकुटधूधुटधिन्धिमितध्वनिघोरमृदङ्गनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।९।।
❍ सुरलल नातत थेयित थेयित
थाभिन योत्तर नृत्य रते
कुत कुकुथा कुकुथो दिड दाडिक
ताल कुतूहल गानरते।
धुधुकुट धूधुट धिन्धि मितध्वनि
घोर मृदङ्ग निनादरते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।९।।

❑➧जय जय जाप्यजये जयशब्दपरस्तुतितत्परविश्वनुते
झणझणझिंझिमझिंकृतनूपुरशिञ्जितमोहितभूतपते।
नटितनटार्धनटीनटनायकनाटननाटितनाट्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१०।।
❍ जय जय जाप्य जये जय शब्द
परस्तुति तत्पर विश्व नुते
झणझण झिंझिम झिंकृत नूपुर
शिञ्जित मोहित भूत पते।
नटित नटार्ध नटी नट नायक
नाटन नाटित नाट्यरते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१०।।

❑➧अयि सुमनःसुमनःसुमनःसुमनःसुमनोरमकान्ति युते
श्रितरजनीरजनीरजनीरजनीरजनीकरवक्त्र भृते।
सुनयनविभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमरभ्रमराभिदृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।११।।
❍ अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः
सुमनोरम कान्ति युते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी
रजनीकर वक्त्र भृते।
सुनयन विभ्रम रभ्रम रभ्रम
रभ्रम रभ्रम राभिदृते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।११।।

❑➧महितमहाहवमल्लमतल्लिकवल्लितरल्लितभल्लिरते
विरचितवल्लिकपालिकपल्लिकझिल्लिकभिल्लिकवर्गवृते।
श्रुतकृतफुल्लसमुल्लसितारुणतल्लजपल्लवसल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१२।।
❍ महित महाहव मल्लम तल्लिक
वल्लित रल्लित भल्लिरते
विरचित वल्लिक पालिक पल्लिक
झिल्लिक भिल्लिक वर्गवृते।
श्रुत कृत फुल्ल समुल्ल सितारुण
तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१२।।

❑➧अयि सुदतीजन लालसमानसमोहनमन्मथराजसुते
अविरलगण्डगलन्मदमेदुरमत्तमतङ्गजराजगते
त्रिभुवनभूषणभूतकलानिधिरूपपयोनिधिराजसुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१३।।
❍ अयि सुदतीजन लालस मानस
मोहन मन्मथ राज सुते
अविरल गण्ड गलन् मद मेदुर
मत्त मतङ्ग जरा जगते
त्रिभुवन भूषण भूत कला निधि
रूप पयो निधि राज सुते।
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१३।।

❑➧कमलदलामलकोमलकान्तिकलाकलितामलभाललते
सकलविलासकलानिलयक्रमकेलिचलत्कलहंसकुले।
अलिकुलसङ्कुलकुन्तलमण्डलमौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैल सुते।।१४।।
❍ कमल दलामल कोमल कान्ति
कला कलितामल भाल लते
सकल विलास कला निलय क्रम
केलि चलत् कल हंस कुले।
अलिकुल सङ्कुल कुन्तल मण्डल
मौलि मिलद् बकुलालि कुले
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१४।।

❑➧करमुरलीरववर्जितकूजितलज्जितकोकिलमञ्जुमते
मिलितमिलिन्दमनोहरगुञ्जितरञ्जितशैलनिकुञ्जगते।
निजगणभूतमहाशबरीगणरङ्गणसम्भृत केलिरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१५।।
❍ कर मुरलीरव वर्जित कूजित
लज्जित कोकिल मञ्जुमते
मिलित मिलिन्द मनोहर गुञ्जित
रञ्जित शैल निकुञ्ज गते।
निज गण भूत महा शबरीगण
रङ्गण सम्भृत केलि रते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१५।।

❑➧कटितटपीतदुकूलविचित्रमयूखतिरस्कृतचण्डरुचे
जितकनकाचलमौलिमदोर्जितगर्जितकुञ्जरकुम्भकुचे।
प्रणतसुराऽसुरमौलिमणिस्फुरदंशुलसन्नखचन्द्ररुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१६।।
❍ कटितट पीत दुकूल विचित्र
मयूख तिरस्कृत चण्ड रुचे
जितकन काचल मौलि मदोर्जित
गर्जित कुञ्जर कुम्भ कुचे।
प्रणत सुरा सुर मौलि मणिस्फुर
दंशुल सन्नख चन्द्र रुचे
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१६।।

❑➧विजितसहस्रकरैकसहस्रकरैकसहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारकसङ्गरतारकसङ्गरतारकसूनुनुते।
सुरथसमाधिसमानसमाधिसमानसमाधिसुजाप्यरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१७।।
❍ विजित सहस्र करैक सहस्र
करैक सहस्र करैक नुते
कृत सुर तारक सङ्गर तारक
सङ्गर तारक सूनुनुते।
सुरथ समाधि समान समाधि
समान समाधि सुजाप्य रते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१७।।

❑➧पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परं पदमस्त्विति शीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१८।।
❍ पद कमलं करुणा निलये वरि
वस्यति योनु दिनं सुशिवे
अयि कमले कमला निलये
कमला निलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परं पदमस् त्विति
शीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१८।।

❑➧कनकलसत्कलशीकजलैरनुषिञ्चति तेऽङ्गणरङ्गभुवं
भजति स किं न शचीकुचकुम्भनटीपरिरम्भसुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि सुवाणि पथं मम देहि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।१९।।
❍ कनक लसत्कल शीकजलै रनु
षिञ्चति तेङ्गण रङ्ग भुवं
भजति स किं न शची कुच कुम्भ
नटी परिरम्भ सुखानुभवम्।
तव चरणं शरणं करवाणि
सुवाणि पथं मम देहि शिवं
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।१९।।

❑➧तव विमलेन्दुकलं वदनेन्दुमलं कलयन्ननुकूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखीसुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
मम तु मतं शिवमानधने भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२०।।
❍ तव विमलेन्दु कलं वदनेन्दु
मलं कलयन्न नुकूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दु मुखी सुमुखी
भिरसौ विमुखी क्रियते।
मम तु मतं शिव मान धने
भवती कृपया किमु न क्रियते
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।२०।।

❑➧अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननीति यथाऽसि मयाऽसि तथाऽनुमतासि रमे।
यदुचितमत्र भवत्पुरगं कुरु शाम्भवि देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२१।।
❍ अयि मयि दीन दयालु तया
कृपयैव त्वया भवि तव्यमुमे
अयि जगतो जननीति यथासि
मयासि तथानु मतासि रमे।
यदुचित मत्र भवत्पुरगं कुरु
शाम्भवि देवि दयां कुरु मे
जय जय हे महिषा सुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैल सुते।।२१।।

❑➧स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत्।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।२२।।
❍ स्तुति मिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत्।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनो ऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।२२।।

।।इति श्री संकटा स्तुतिः सम्पूर्णा।।