मृत्युंजय स्तोत्र अर्थ

मृत्युंजय स्तोत्र अर्थ

पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में श्रीमृत्युंजय स्तोत्र का उल्लेख है। इसमें कुल १६ मन्त्र हैं।

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श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रम्
(❑➧मूलश्लोक ❑अर्थ➠सहित)

❑➧रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।१।।

❑अर्थ➠ कैलास के शिखर पर जिनका निवासगृह है, जिन्होंने मेरुगिरि का धनुष, नागराज वासुकि की प्रत्यंचा और भगवान् विष्णु को अग्निमय बाण बनाकर तत्काल ही दैत्यों के तीनों परों को दग्ध कर डाला था। सम्पूर्ण देवता जिनके चरणों की वन्दना करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।१।।

❑➧पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
अभाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।२।।

❑अर्थ➠ मन्दार, पारिजात, सन्तान, कल्पवृक्ष और हरिचन्दन ─इन पाँच दिव्य वृक्षों के पुष्पों से सुगन्धित युगल चरण-कमल जिनकी शोभा बढ़ाते हैं, जिन्होंने अपने ललाटवर्ती नेत्र से प्रकट हुई अग्नि-ज्वाला में कामदेव के शरीर को भस्म कर डाला था। जिनका श्रीविग्रह सदा भस्म से विभूषित रहता है, जो भव की उत्पत्ति के कारण होते हुए भी भव संसार के नाशक तथा जिनका कभी विनाश नहीं होता, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।२।।

❑➧मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम्।
देवसिद्धतरङ्गिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।३।।

❑अर्थ➠ जो मतवाले गजराज के मुख्य चर्म की चादर ओढ़े परम मनोहर जान पड़ते हैं, ब्रह्मा और विष्णु भी जिनके चरण कमलों की पूजा करते हैं तथा जो देवताओं और सिद्धों की नदी गंगा की तरंगों से भीगी हुई शीतल जटा धारण करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।३।।

❑➧कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।४।।

❑अर्थ➠ कुण्डली मारे हुए सर्पराज जिनके कानों में कुण्डल का काम देते हैं, जो वृषभ पर सवारी करते हैं, नारद आदि मुनीश्वर जिनके वैभव की स्तुति करते हैं, जो समस्त भुवनों के स्वामी, अन्धकासुर का नाश करनेवाले, आश्रितजनों के लिये कल्पवृक्ष के समान और यमराज को भी शान्त करनेवाले हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।४।।

❑➧यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।५।।

❑अर्थ➠ जो यक्षराज कुबेर के सखा, भग देवता की आँख फोड़नेवाले और सर्पों के आभूषण धारण करनेवाले हैं, जिनके श्रीविग्रह के सुन्दर वामभागको गिरिराजकिशोरी उमा ने सुशोभित कर रखा है, कालकूट विष पीने के कारण जिनका कण्ठभाग नीले रंग का दिखायी देता है, जो एक हाथमें फरसा और दूसरे में मृग लिये रहते हैं, उन भगवान चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।५।।

❑➧भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।६।।

❑अर्थ➠ जो जन्म-मरण के रोग से ग्रस्त पुरुषों के लिये औषधरूप हैं, समस्त आपत्तियों का निवारण और दक्षयज्ञ का विनाश करनेवाले हैं, सत्त्व आदि तीनों गुण जिनके स्वरूप हैं, जो तीन नेत्र धारण करते, भोग और मोक्षरूपी फल देते तथा सम्पूर्ण पापराशि का संहार करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।६।।

❑➧भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।७।।

❑अर्थ➠ जो भक्तों पर दया करनेवाले हैं, अपनी पूजा करनेवाले मनुष्यों के लिये अक्षय निधि होते हुए भी जो स्वयं दिगम्बर रहते हैं, जो सब भूतों (प्राणियों) के स्वामी, परात्पर, अप्रमेय और उपमारहित हैं; पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और चन्द्रमा के द्वारा जिनका श्रीविग्रह सुरक्षित है, उन भगवान् चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।७।।

❑➧विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम्
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।८।।

❑अर्थ➠ जो ब्रह्मारूप से सम्पूर्ण विश्व की सृष्टि करते, फिर विष्णुरूप से सबके पालन में संलग्न रहते और अन्त में सारे प्रपंच का संहार करते हैं। सम्पूर्ण लोकों में जिनका निवास है तथा जो गणेशजी के पार्षदों से घिरकर दिन-रात भाँति-भाँति के खेल किया करते हैं, उन भगवान् चन्द्रशेखरकी मैं शरण लेता हूँ। यमराज मेरा क्या करेगा?।।८।।

❑➧रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।९।।

❑अर्थ➠ ‘रु’ अर्थात् दु:ख को दूर करने के कारण जिन्हें रुद्र कहते हैं, जो जीवरूपी पशुओं का पालन करने से पशुपति, स्थिर होने से स्थाणु, गले में नीला चिह्न धारण करने से नीलकण्ठ और भगवती उमा के स्वामी होने से उमापति नाम धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।९।।

❑➧कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१०।।

❑अर्थ➠ जिनके गले में काला दाग़ है, जो कलामूर्ति, कालाग्निस्वरूप और काल के नाशक हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१०।।

❑➧नीलकण्ठ विरूपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।११।।

❑अर्थ➠ जिनका कण्ठ नील और नेत्र विकराल होते हुए भी जो अत्यन्त निर्मल और उपद्रवरहित हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।११।।

❑➧वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१२।।

❑अर्थ➠ जो वामदेव, महादेव, विश्वनाथ और जगद्गुरु नाम धारण करते हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१२।।

❑➧देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१३।।

❑अर्थ➠ जो देवताओं के भी आराध्यदेव, जगत् के स्वामी और देवताओं पर भी शासन करनेवाले हैं, जिनकी ध्वजापर वृषभका चिह्न बना हुआ है, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१३।।

❑➧अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१४।।

❑अर्थ➠ जो अनन्त, अविकारी, शान्त, रुद्राक्षमालाधारी और सबके दु:खोंका हरण करनेवाले हैं, उन भगवान् शिव को मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१४।।

❑➧आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१५।।

❑अर्थ➠ जो परमानन्दस्वरूप, नित्य एवं कैवल्यपद-मोक्ष प्राप्ति के कारण हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१५।।

❑➧स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१६।।

❑अर्थ➠ जो स्वर्ग और मोक्ष के दाता तथा सृष्टि, पालन और संहार के कर्ता हैं, उन भगवान् शिवको मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ। मृत्यु मेरा क्या कर लेगी?।।१६।।

❑➧।।इति श्रीपद्ममहापुराणान्तर्गत
उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
❑अर्थ➠ इस प्रकार श्रीपद्ममहापुराणान्तर्गत उत्तरखण्ड में श्रीमृत्युंजयस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।