मृत्युंजय स्तोत्र
पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में श्रीमृत्युंजय स्तोत्र का उल्लेख है। इसमें कुल १६ मन्त्र हैं। यह स्तोत्र बहुत ही सरल और प्रभावशाली है।
आप सोच रहे होंगे कि इसकी शब्दशृंखला तो बड़ी जटिल है फिर मैं इसे सरल क्यों कह रहा हूँ; क्योंकि इसके आरम्भ के आठ मन्त्रों में चौथे पद की पुनरावृत्ति है और बाद के आठ श्लोकों में आधे श्लोक की हर बार पुनरावृत्ति है
और…
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में इस स्तोत्र के लघु शब्दों के स्वरूप देखकर आप इसे सरलतापूर्वक बोल सकेंगे, इस कारण यह सरल है और प्रभावशाली इसलिये है कि जिस स्तोत्र में बारम्बार जिन पंक्तियों की पुनरावृत्ति होती है। वे पंक्तियाँ अपना प्रभाव अवश्य दिखाती हैं।
क्योंकि यह प्रभावशाली है, इसलिये निश्चित ही महाशक्तिशाली भी है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है, इसके श्रवण से भी मनुष्य काल के गाल बच जाता है तो फिर जिसके कण्ठ में यह वास करे, उस साधक के बारे में क्या कहा जाये?
मेरा भरसक प्रयास है कि आप इसे बोलना सीख जायें। मुझे विश्वास है यह पोस्ट आपको यह स्तोत्र सरल बनाने में सहायक सिद्ध होगी।
श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रम्
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)
❑➧रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।१।।
❍ रत्न सानु शरासनं रजताद्रि शृङ्ग निकेतनं
शिञ्जिनी कृत पन्नगेश्वर मच्युता नल सायकम्।
क्षिप्र दग्ध पुर त्रयं त्रि दशाल यैरभि वन्दितं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।१।।
❑➧पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
अभाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।२।।
❍ पञ्च पादप पुष्प गन्धिप दाम्बुज द्वय शोभितं
भाल लोचन जात पावक दग्ध मन्मथ विग्रहम्।
भस्म दिग्ध कलेवरं भव नाशिनं भवमव्ययं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।२।।
❑➧मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम्।
देवसिद्धतरङ्गिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।३।।
❍ मत्त वारण मुख्य चर्म कृतोत्तरीय मनोहरं
पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताङ्घ्रि सरोरुहम्।
देव सिद्ध तरङ्गिणी कर सिक्त शीत जटा धरं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।३।।
❑➧कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।४।।
❍ कुण्डली कृत कुण्डलीश्वर कुण्डलं वृष वाहनं
नारदादि मुनीश्वर स्तुत वैभवं भुवनेश्वरम्।
अन्ध कान्तक माश्रितामर पादपं शमनान्तकं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।४।।
❑➧यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।५।।
❍ यक्षराज सखं भगाक्षि हरं भुजङ्ग विभूषणं
शैलराज सुता परिष्कृत चारु वाम कलेवरम्
क्ष्वेड नील गलं परश्वध धारिणं मृग धारिणं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।५।।
❑➧भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।६।।
❍ भेषजं भव रोगिणा मखिला पदाम पहारिणं
दक्ष यज्ञ विनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्
भुक्ति मुक्ति फल प्रदं निखिलाघ संघ निबर्हणं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।६।।
❑➧भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।७।।
❍ भक्त वत्सल मर्चतां निधि मक्षयं हरि दम्बरं
सर्व भूत पति परात्पर मप्रमेय मनूपमम्।
भूमि वारि नभो हुताशन सोम पालित स्वाकृतिं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।७।।
❑➧विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम्
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।८।।
❍ विश्व सृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परं
संहरन्त मथ प्रपञ्च मशेष लोक निवासिनम्
क्रीडयन्त महर्निशं गणनाथ यूथ समावृतं
चन्द्र शेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः।।८।।
❑➧रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।९।।
❍ रुद्रं पशु पतिं स्थाणुं
नील कण्ठ मुमा पतिम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।९।।
❑➧कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१०।।
❍ काल कण्ठं कला मूर्तिं
कालाग्निं काल-नाशनम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१०।।
❑➧नीलकण्ठ विरूपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।११।
❍ नील कण्ठ विरू पाक्षं
निर्मलं निरुपद्रवम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।११।
❑➧वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१२।।
❍ वामदेवं महादेवं
लोक नाथं जगद्गुरुम्
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१२।।
❑➧देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१३।।
❍ देव देवं जगन्नाथं
देवेश मृषभ ध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१३।।
❑➧अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१४।।
❍ अनन्त मव्ययं शान्त
मक्ष माला धरं हरम्
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१४।।
❑➧आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१५।।
❍ आनन्दं परमं नित्यं
कैवल्य पद कारणम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१५।।
❑➧स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।१६।।
❍ स्वर्गाप वर्ग दातारं
सृष्टि स्थित्यन्त कारिणम्।
नमामि शिरसा देवं
किं नो मृत्युः करिष्यति।।१६।।
❑➧।।इति श्रीपद्ममहापुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
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