मैं रावण हूँ जग जानता है
रावण को हम सब अत्याचारी मानते हैं, किन्तु रावण श्राप के कारण दानव बना हुआ था। देखने जायें तो रावण की तुलना में अत्याचारी दुर्योधन था। रावण और दुर्योधन में यही अन्तर था कि रावण श्राप के कारण पाप करता था और दुर्योधन पाप के कारण श्रापित हो रहा था। रावण के सन्दर्भ में लिखी कुछ पंक्तियाँ अपने पाठकों के बीच शेयर कर रहा हूँ, जिसे पढ़कर रावण के पूर्वजन्म को समझा जा सकता है।
मैं रावण हूँ जग जानता है,
अत्याचारी मुझे मानता है।
पर मेरे उस पूर्वजन्म की,
व्यथा न कोई जानता है।।
आओ कहानी बतलाऊँ,
जब मैं प्रभू का दरबान था।
जय नाम से मेरी कीर्ति थी,
विजय दूजे का नाम था।।
सनकादिक ऋषिगण आये,
प्रभु दर्शन करना था जिनको।
विष्णुलोक में नहीं प्रवेश,
कह रोक दिया हमने उनको।।
विश्राम कर रहे हैं भगवन्,
हम कैसे आपको जाने दें।
द्वारपाल हैं हम दोनों,
हम बात न कोई मानेंगे।।
तीन बार हम दोनों ने,
ग़ुस्से में आकर रोक दिया।
क्रोध में आकर ऋषियों ने,
हम दोनों को श्राप दिया।।
तीन बार तुम धरती पर,
असुर योनि में जन्मोगे।
वापस तब आ पाओगे,
जब श्राप हमारे भोगोगे।।
श्राप के कारण हम पापी,
हिरण्यकश्यपु हिरण्याक्ष बने।
प्रभु नरसिंह अवतार लिये,
वध की ख़ातिर वाराह बने।।
दूजे जन्म में रावण और,
कुम्भकर्ण बनकर जन्मे।
श्राप के कारण अहंकार था,
हम दोनों के जीवन में।।
प्रभु राम रूप में जन्म लिये,
माँ लक्ष्मी भी संग आई थी।
उन्हें सियारूप में हरने को,
उन श्रापों की अधिकाई थी।।
रामायण का ख़लनायक बन,
इस सत्य को मैंने समझा है।
राम को दुख देनेवाला,
कभी ना सुख से रहता है।।
प्रभु के हाथों ही मरना है,
इस बात का मुझको ज्ञान था।
जो मुझको मूर्ख समझते थे,
वो उनका अज्ञान था।।
शिशुपाल दन्तवक्र बनकर,
हम द्वापरयुग में जन्म लिये।
कृष्ण के हाथों फिर मरकर,
अपने जीवन को धन्य किये।।
सुनकर मेरी यह आत्मकथा,
ऐ नर! सचेत हो जाना।
स्वभाव अगर ना सुधरा तो,
पड़ता है धरती पर आना।।
मैं श्राप के कारण पापी था,
मजबूर था मेरा जीवन।
अहंकार में आकर तू,
पाप करके ना श्रापित बन।।
छुपकर कितना भी पाप कर,
ईश्वर हृदय में बैठा है।
देख रहा है वो सब कुछ,
कर्मों से तेरे रूठा है।।
कर्मगति बड़ी गहन है रे,
तू रहस्य नहीं जानता है।
कर्म अपने हर कर्ता की,
करतूत को पहचानता है।।
मैं रावण हूँ जग जानता है,
अत्याचारी मुझे मानता है।
पर मेरे उस पूर्वजन्म की,
व्यथा न कोई जानता है।।
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