याददाश्त क्यों चली जाती है?
कई बार ऐसा देखा गया है कि किसी बड़ी दुर्घटना या शोक समाचार के बाद कुछ व्यक्तियों की याददाश्त चली जाती है। वह व्यक्ति अपने अतीत को भूल जाता है, अपने सगे सम्बन्धियों और मित्रों को भूल जाता है। यहाँ तक कि वह अपना नाम तक भूल जाता है। मनोविज्ञान में इस रोग को स्मृति-लोप (Amnesia) कहते हैं।
आइये, https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट में जानें, व्यक्ति की याददाश्त क्यों चली जाती है?
स्मृति-लोप या याददाश्त का चला जाना कई कारणों से हो सकता है। मस्तिष्क में चोट लगना, मानसिक आघात या सदमा, बहुत अधिक थकान, दवाओं का प्रभाव, मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ, वृद्धा अवस्था, शराब के प्रभाव आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे याददाश्त कम हो सकती है या खो सकती है।
याददाश्त खोने का कारण चाहे कुछ भी हो, लेकिन मस्तिष्क में होनेवाला प्रभाव लगभग एक-सा ही होता है। याददाश्त मस्तिष्क में उपस्थित न्यूरॉन्स के द्वारा क़ायम रहती है, जब ये न्यूरॉन्स किसी कारणवश प्रभावित हो जाते हैं तो स्मृति-लोप हो जाता है।
न्यूरॉन को हिन्दी में तन्त्रिका कोशिका कहते हैं। यह तन्त्रिका तन्त्र में स्थित एक उत्तेजनीय कोशिका है। इस कोशिका का कार्य मस्तिष्क से सूचना का आदान-प्रदान और विश्लेषण करना है। यह कार्य एक विद्युत-रासायनिक संकेत के द्वारा होता है। तन्त्रिका कोशिका तन्त्रिका तन्त्र के प्रमुख भाग होते हैं, जिसमें मस्तिष्क, मेरु रज्जु और पेरीफेरल गैंगिला होते हैं। तन्त्रिका कोशिका अनेक प्रकार की होती हैं।
किसी चीज के स्पर्श छूने, ध्वनि या प्रकाश के होने पर ये तन्त्रिका कोशिका ही प्रतिक्रिया करते हैं और यह अपने संकेत मेरु रज्जु और मस्तिष्क को भेजते हैं। मोटर तंत्रिका कोशिका मस्तिष्क और मेरु रज्जु से संकेत ग्रहण करते हैं। मांसपेशियों की सिकुड़न और ग्रन्थियाँ इससे प्रभावित होती है। एक सामान्य और साधारण तन्त्रिका कोशिका में एक कोशिका यानि सोमा, डेंड्राइट और कार्रवाई होते हैं। तंत्रिका कोशिका का मुख्य हिस्सा सोमा होता है।
तंत्रिका कोशिका को उसकी संरचना के आधार पर भी विभाजित किया जाता है। यह एकध्रुवी, द्विध्रुवी और बहुध्रुवी (क्रमशः एकध्रुवीय, द्विध्रुवीय और बहुध्रुवीय) होते हैं। तंत्रिका कोशिका में कोशिकीय विभाजन नहीं होता है जिससे इसके नष्ट होने पर दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता। किन्तु इसे स्टेम कोशिका के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अस्थि-कणिका को तन्त्रिका कोशिका में बदला जा सकता है। कई अनुमानों के अनुसार मनुष्य में क़रीब 100 बिलियन न्यूरान्स (तन्त्रिका कोशिकाएँ) पाई जाती हैं।
न्यूरॉन्स मस्तिष्क के सभी हिस्सों में होते हैं, जो अलग-अलग समय की बातों की सूची (रिकार्ड) रखते हैं। जिस हिस्से के न्यूरॉन्स प्रभावित होते हैं, उसी हिस्से की याददाश्त समाप्त हो जाती है। स्मृति-लोप में या तो याददाश्त खोने से पहले की बातें याद नहीं रहतीं या याददाश्त खोने के बाद की घटनाएँ याद नहीं रहती। स्मृति-लोप कुछ हफ़्ते तक, महीनों और वर्षों तक भी रह सकता है। कुछ ऐसे भी व्यक्ति देखे गए हैं, जिनकी जीवन भर के लिए याददाश्त चली जाती है। जब आदमी की याददाश्त वापस आती है तो भूली हुई सभी बातें याद आ जाती हैं।
वास्तव में याददाश्त वापस आने का मतलब है कि प्रभावित न्यूरॉन्स ठीक हो गये हैं। लेकिन एक बात निश्चित है कि याददाश्त वापस आ जाने पर भी कुछ न कुछ प्रभाव मस्तिष्क पर अवश्य रह जाता है, जिससे याददाश्त क्षीण हो जाती है। याददाश्त खो जाने पर मनोचिकित्सकों की सहयता तुरन्त लिया जाना अतिआवश्यक है।
याददाश्त का कम होना आमतौर पर वृद्धावस्था के कारण होता है। कभी-कभी पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer), हाई ब्लड प्रेशर या दमे की बीमारी के कारण भी याददाश्त कमजोर हो जाती है।
मानव स्मरण शक्ति (याददाश्त) के तीन भाग समझे जाते हैं⼀
१) मस्तिष्क का सूचना भण्डार
२) थोड़े समय की स्मृति और
३) लम्बी अवधि की स्मृति
मस्तिष्क को ज्ञानेन्द्रियाें द्वारा जो सूचना मिलती है, वह एक सेकण्ड के ३/१० वें समय तक उसके सूचना संग्रह भण्डार में रहती है। यदि इतने समय में उसे मस्तिष्क द्वारा चुनकर थोड़े समय की स्मृति के लिए रख लिया जाए तो वह बनी रहती है, अन्यथा तुरन्त भुला दी जाती है। थोड़े समय के लिए जो सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं, उनका उपयोग करने के बाद मस्तिष्क उन्हें भूल जाता है। यह सूचना स्थायी स्मृति (याद) इसलिए नहीं बन पाती; क्योंकि उसके लिए एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। मस्तिष्क ६ या ७ इकाइयाँ तक याद रख सकता है। थोड़े समय की याददाश्त को स्थायी याददाश्त बनाने के लिए उसे बार-बार दोहराने की आवश्यकता पड़ती है। स्थायी याददाश्त सीमित होती है। इसके द्वारा मनुष्य वर्षों पहले की घटनाओं को याद कर सकता है। स्नायुकोषों में रहनेवाली विद्युतीय क्रिया द्वारा उनकी बनावट में परिवर्तन हो जाते हैं, जिसके फलस्वरूप कोई याददाश्त स्थायी बनती है।
हमारे मस्तिष्क के पिछले भाग में दृष्टि केन्द्र के ठीक ऊपर स्मरण शक्ति का केन्द्र होता है।