योगी अरविंद घोष

योगी अरविंद घोष का जन्म १५ अगस्त १८७२ को कोलकाता में हुआ। उनके पिता का नाम कृष्णधन घोष, जो पेशे से डॉक्टर थे और माता का नाम स्वर्णलता देवी था।

योगी अरविंद घोष बचपन से ही संस्कृतिनिष्ठ रहे। उन्होंने युवावस्था में ‘वन्दे मातरम्’ पत्रिका में प्रकाशित अपने लेखों द्वारा सम्पूर्ण देशवासियों में अपने राष्ट्र एवं संस्कृति के प्रति सजगता फैलायी। अरविंदजी द्वारा चलाये जा रहे राष्टव्यापी वैचारिक जागरण के कारण अंग्रेज़ी शासन उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया था, फलस्वरूप झूठे आरोप लगाकर उन्हें कारावास में डाल दिया गया।

एकान्तवास का अभ्यास करने के लिए ही परमेश्वर ने कृपा करके उन्हें वहाँ भेजा है, ऐसा विचार करके वे नित्य गीता, उपनिषद् आदि ग्रंथ पढ़ने लगे। उनका मन ईश्वर-विषयक श्रद्धा से ओत-प्रोत हो गया। प्रतिकूल परिस्थिति में भी परमेश्वर की कृपा का अनुभव करना, ऊँची-में-ऊँची समझ है।

सर्वं खल्विदं ब्रह्म – इस महावाक्य के विचारों में उनका मन रमने लगा। उनके लिए वह स्थान कारागार न रहा। दीवारें, ईंटें, लौह-शलाकाएँ, पेड़-पौधे, फल-फूल सब कुछ उन्हें ईश्वरस्वरूप दिखाई देने लगा।

एक बार कारागार में उन्हें वृक्ष के नीचे भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर छवि के दर्शन हुए। बंसी की मधुर धुन सुनकर वे गद्गद् हो गये। कुछ समय पश्चात् अरविंदजी को ध्यान में भगवान का स्पष्ट शब्दों में आदेश मिला, इस एकान्तवास में हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता का अनुभव तुम्हें प्राप्त हुआ है। इस धर्म की श्रेष्ठता से तुम्हें सारे विश्व को विशुद्ध करना होगा, साथ ही इसेे अपने देशवासियों के हृदय पर अंकित करने का तुम प्रयास करो। सबको मिलकर सनातन धर्म का संवर्धन करना चाहिए, इसी में भारत का सच्चा गौरव है।

कारागार से बाहर आने के बाद ईश्वर के आदेशानुसार अरविंदजी हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में निरन्तर लगे रहे। अपने वक्तृत्व में वे कहा करते थे

‘‘सनातन धर्म का वास्तविक रूप बहुत थोड़े लोग जानते हैं। अधिकांश लोग तो यही समझते हैं कि जैसे दुनिया के और धर्म हैं, वैसा ही यह धर्म भी है। परन्तु विश्व के अन्य धर्मों में कुछ श्रद्धा की बातें हैं और कुछ नीति-विषयक बोध हैं। सनातन धर्म में तो दिव्य जीवन का साक्षात्कार है।

परमेश्वर ने इस विश्व में धर्म-संस्थापन करने के लिए ही भारतवर्ष की योजना की है। हमारा धर्म चिरकालिक धर्म है। वह विश्व के सब देशों के लिए सब कालों में उपकारक है। दुनिया में यही एक धर्म है जो अपने उपासकों को भगवान के निकट ले जाता है और उनसे प्रत्यक्ष भेंट कराता है। सत्य का वास्तविक आग्रह यही धर्म करता है। सत्य का वास्तविक मार्ग यही धर्म दिखाता है। सनातन धर्म कहता है, जड़-चेतन सर्वत्र जो कुछ भी है सब भगवान ही हैं, ऐसी महान सूझबूझ केवल धर्म ही प्रस्थापित करता है। धर्म हमें मृत्यु के उस पार ले जाता है और अमरता से साक्षात् कराता है। दुनिया में इस ढंग का यही एक धर्म है।

राष्ट्रीयता का मतलब केवल राजनीति नहीं अपितु हमारा ‘सनातन धर्म’ है। सनातन धर्म के मार्गदर्शन में ही राष्ट्र का विकास सुनिश्चित है और जब कभी यह राष्ट्र अपने सनातन धर्म से दूर हटेगा, तब इसका अधःपतन होगा। सनातन हिन्दू धर्म ही भारत की राष्ट्रीयता है।”

योगी अरविंद घोष के अनुसार शिक्षण एक विज्ञान है जिसके द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्तन आना अनिवार्य है। उनके शब्दों में, “वास्तविक शिक्षण का प्रथम सिद्धान्त है कि कुछ भी पढ़ाना संभव नहीं अर्थात् बाहर से शिक्षार्थी के मस्तिष्क पर कोई चीज न थोपी जाये। शिक्षण प्रक्रिया द्वारा शिक्षार्थी के मस्तिष्क की क्रिया को ठीक दिशा देनी चाहिये।”

५ दिसम्बर १९५० को उन्होंने इस धरा से विदाई ले ली।

Yogi Arvind Ghosh

योगी अरविंद घोष की जीवनी