लिंगाष्टकम् हिन्दी अर्थ

लिंगाष्टकम्

शिवलिङ्ग भगवान शंकर का ही स्वरूप है। जो शिवभक्त है, शिवलिङ्ग की पूजा अवश्य करता है। लिङ्गाष्टकम् शिवलिङ्ग की स्तुति करने का और भक्तों की मनोकामना पूर्ति का सर्वोत्तम और लोकप्रिय अष्टक है।

इसके छन्द का प्रवाह बड़ा ही मधुर है। इसके शब्द देखने में बड़े लगते हैं, परन्तु शब्दों को अगल-अलग करके पढ़ा जाये तो लगेगा कि इससे सरल कोई स्तोत्र हो ही नहीं सकता। जो साधक पूर्ण आस्था और श्रद्धासहित लिङ्गाष्टकम का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ स्वयं भगवान सदाशिव पूर्ण करते हैं।

लिङ्गाष्टकम् के नित्य पाठ से पाप और दरिद्रता का नाश होता है। ज्ञान की वृद्धि और भगवान् शिव की भक्ति प्राप्त होती है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में लिङ्गाष्टकम् (मूलस्तोत्र) गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिवस्तोत्ररत्नाकर पर आधारित है। लघुशब्द पाठकों की सुविधा हेतु दिये जा रहे हैं ताकि इसे सरलता से पढ़ सकें, साथ ही हिन्दी अर्थ भी।

sugamgyaansangam.com पर स्तोत्र आदि प्रामाणिक प्रकाशनों के आधार पर अपलोड किये जाते हैं। हमारी हर सम्भव कोशिश रहती है कि कोई त्रुटि न हो, फिर भी मानवीय भूल हो सकती है अतः विज्ञ पाठकों के सुझाव सदैव ही हमारे लिये ग्राह्य हैं।

लिङ्गाष्टकम्

(❑➧मूलशब्द ❍लघुशब्द ❑अर्थ➠सहित)

❑➧ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत्प्रणमामिसदाशिवलिङ्गम्।।१।।
❍ ब्रह्म मुरारि सुरार्चित लिङ्गं
निर्मल भासित शोभित लिङ्गम्।
जन्मज दुःख विनाशक लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।१।।
❑अर्थ➠ जो ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवगणों के इष्टदेव हैं; परम पवित्र, निर्मल तथा सभी जीवों की मनोकामना को पूर्ण करते हैं; जो लिंग के रूप में चराचर जगत में स्थापित हुए हैं, जो संसार के संहारक हैं; जन्म और मृत्यु के दुःखों का विनाश करते हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम्।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।२।।
❍ देव मुनि प्रवरार्चित लिङ्गं
काम दहं करुणाकर लिङ्गम्।
रावण दर्प विनाशन लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्
❑अर्थ➠ जो मुनियों और देवताओं के परम आराध्य देव हैं; देवताओं और मुनियों द्वारा पूजे जाते हैं; काम (वह कर्म जिसमे विषयासक्ति हो) का विनाश करते हैं; जो दया और करुणा के सागर हैं; जिन्होंने लंकापति रावन के अहंकार का विनाश किया, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।३।।
❍ सर्व सुगन्धि सुलेपित लिङ्गं
बुद्धि विवर्धन कारण लिङ्गम्।
सिद्ध सुरासुर वन्दित लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।३।।
❑अर्थ➠ लिंगमय स्वरूप जो सभी तरह के सुगन्धित इत्रों से लेपित है; जो बुद्धि तथा आत्मज्ञान में वृद्धि का कारण हैं; जो शिवलिंग सिद्ध मुनियों, देवताओं और दानवों द्वारा पूजा जाता है, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।४।।
❍ कनक महामणि भूषित लिङ्गं
फणिपति वेष्टित शोभित लिङ्गम्।
दक्ष सुयज्ञ विनाशन लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।४।।
❑अर्थ➠ लिंगस्वरूप भगवान शिव, जो सोने तथा रत्नजडित आभूषणों से सुसज्जित हैं; चारों ओर से सर्पों से घिरे हुए है; जिन्होंने प्रजापति दक्ष (माता सती के पिता) के यज्ञ का विध्वंस किया था, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।५।।
❍ कुङ्कुम चन्दन लेपित लिङ्गं
पङ्कज हार सुशोभित लिङ्गम्।
सञ्चित पाप विनाशन लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।५।।
❑अर्थ➠ जिनका लिंगस्वरूप कुंकुम और चन्दन से सुलेपित है; कमल के सुन्दर हार से शोभायमान है; जो संचित पापकर्म का लेखा-जोखा मिटने में सक्षम हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।६।।
❍ देव गणार्चित सेवित लिङ्गं
भावैर् भक्ति भिरेव च लिङ्गम्।
दिनकर कोटि प्रभाकर लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।६।।
❑अर्थ➠ जिनकी देवगणों द्वारा अर्चना और सेवा होती है; जो भक्ति भाव से परिपूर्ण तथा पूजित हैं; करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧अष्टदलोपरि वेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।७।।
❍ अष्ट दलो परि वेष्टित लिङ्गं
सर्व समुद्भव कारण लिङ्गम्।
अष्ट दरिद्र विनाशित लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।७।।
❑अर्थ➠ जो पुष्प के आठ दलों (कलियाँ) के मध्य में विराजमान हैं; जो सृष्टि में सभी घटनाओं (उचित-अनुचित) के रचियता हैं; जो आठों प्रकार की दरिद्रता का हरण करते हैं, ऐसे लिंगस्वरूप भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्।
परात्परंपरमात्मकलिङ्गं तत्प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।।८।।
❍ सुरगुरु सुरवर पूजित लिङ्गं
सुरवन पुष्प सदार्चित लिङ्गम्।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं
तत् प्रणमामि सदाशिव लिङ्गम्।।८।।
❑अर्थ➠ जो देवताओं के गुरुजन तथा सर्वश्रेष्ठ देवों द्वारा पूजनीय हैं; जिनकी पूजा दिव्य उद्यानों के पुष्पों से की जाती है; जो परब्रह्म हैं, जिनका न आदि है न ही अन्त! ऐसे लिंगस्वरूप भगवान सदाशिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

❑➧लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
❍ लिंगाष्टक मिदं पुण्यं यः पठेच्छिव सन्निधौ।
शिव लोकम वाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
❑अर्थ➠ जो कोई भी इस लिंगाष्टकम को शिव या शिवलिंग के समीप श्रद्धा सहित पाठ करता है, उसे शिवलोक प्राप्त होता है। भगवान भोलेनाथ उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

।।इति लिङ्गाष्टकं सम्पूर्णम्।।

 

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