वर्णिक छंद के गण कैसे पहचानें
ध्यान दें☞ यह लेख ध्यानपूर्वक पढ़ने पर आप गण पहचानना तो सीख ही जायेंगे, साथ ही छन्द और वर्ण की गणना करना भी सीख जायेंगे।
वर्णिक छन्द में गण और मात्राओं की संख्या निश्चित होती है। मात्राओं को लघु गुरु चिह्नों की सहायता से समझा जाता है। लघु का चिह्न खड़ी पाई । गुरु या दीर्घ का चिह्न अँग्रेज़ी अक्षर ऽ की तरह होता है। लघु में १ मात्रा मानी जाती है। गुरु में २ मात्रा मानी जाती है।
उदाहरण तौर पर मात्रिक छन्द पर आधारित हनुमान चालीसा की प्रथम चौपाई को ले लेते हैं। दो सोलह-सोलह मात्राओं की पंक्तियाँ मिलकर ३२ मात्राओं की एक चौपाई बनती है। चौपाई की मात्राएँ इस प्रकार होती हैं☟
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
(।।) (।।ऽ।) (ऽ।) (।।) (ऽ।।)=१६
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।
(।।) (।ऽ।) (।।) (ऽ।) (।ऽ।।)=१६
जय | हनुमान | ज्ञान | गुन | सागर | वर्ण (१३) |
।। | ।।ऽ। | ऽ। | ।। | ऽ।। | मात्रा (१६) |
जय | कपीस | तिहुँ | लोक | उजागर | वर्ण (१३) |
।। | ।ऽ। | ।। | ऽ। | ।ऽ।। | मात्रा (१६) |
इस प्रकार मात्रिक छन्द पर आधारित छन्द-मात्रा की गिनती तो हो जाती है; क्योंकि इसमें गण नहीं होते, गण नहीं होने के कारण वर्ण की संख्या भी निश्चित नहीं होती। यद्यपि उपरोक्त चौपाई में वर्ण की संख्या भी समान है, परन्तु यह पंक्ति-रचना पर आधारित है, नियम नहीं है।
ख़ैर, जब कभी हम वर्णिक छन्द के बारे में पढ़ते हैं कि अमुक-अमुक गण को मिलाकर इस छन्द की रचना हुई है तो हम गण को पहचान नहीं पाते कि कौन-कौन-से गण हैं?
तो आइये,
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सुगम ज्ञान संगम के हिन्दी साहित्य + छन्द ज्ञान स्तम्भ (Category) में जानते हैं कि वर्णिक छन्द के गण कैसे पहचानें।
शिखरिणी छन्द को समझने का प्रयास करते हैं; क्योंकि इस छन्द में अनेक गणों का समावेश है। इस प्रकार आप इस छन्द से परिचित भी हो जायेंगे और गण को कैसे पहचाना जाये, यह भी समझ जायेंगे।
शिखरिणी छन्द [एक यगण] [एक मगण] [एक नगण] [एक सगण] [एक भगण] और अन्त में [लघु-गुरु] के संयोग से बनता है।
निम्नलिखित स्तम्भ देखें:-
यगण | मगण | नगण | सगण | भगण | ल-गु | ||
मात्रा | ।ऽऽ | ऽऽऽ | ।।। | ।।ऽ | ऽ।। | ।ऽ | २५ |
वर्ण | ३ | ३ | ३ | ३ | ३ | २ | १७ |
इस प्रकार इसमें कुल २५ मात्राएँ और १७ वर्ण हैं। ऐसी चार पंक्तियों को मिलाकर यह छन्द पूर्ण होता है। जिसमें १०० मात्राएँ और ६८ वर्ण होते हैं। अब आइये, यगण मगण नगण आदि को कैसे पहचाने, इस पर ग़ौर करते हैं।
निम्नलिखित स्तम्भ देखें─
य | मा | ता | रा | ज | भा | न | स | ल | गा |
। | ऽ | । | ऽ | ऽ | ऽ | । | । | । | ऽ |
य मा ता रा ज भा न स ल गा
बस, यही गणों को पहचानने का सूत्र है। इसे कण्ठस्थ कर लेें। उपरोक्त तीन-तीन वर्णों को पकड़कर एक गण बनता है, उसके अनुसार उसकी मात्राएँ निश्चित होती है, अर्थात्
१) यगण (यमाता-।ऽऽ)
२) मगण (मातारा-ऽऽऽ)
३) तगण (ताराज-ऽऽ।)
४) रगण (राजभा-ऽ।ऽ)
५) जगण (जभान-।ऽ।)
६) भगण (भानस-ऽ।।)
७) नगण (नसल-।।।)
८) सगण (सलगा-।।ऽ)
९) ल अर्थात् लघु (।)
१०) गा अर्थात् गुरु (ऽ)
इस प्रकार कुल आठ गण हैं, जिनके आधार पर वर्णिक छन्दों की रचना होती है।
अब जान लेते हैं कि लघु-गुरु (दीर्घ) मात्रा को कैसे पहचानें?
जिस अक्षर पर छोटे स्वर की मात्रा होती है, उसकी मात्रा लघु होती है; जिस पर बड़े स्वर की मात्रा होती है, उसकी मात्रा गुरु या दीर्घ होती है; जैसे ─
क | का | कि | की | कु | कू | के | कै | को | कौ | कं | कः |
। | ऽ | । | ऽ | । | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ | ऽ |
ध्यान दें─ के (ए) को (ओ) की मात्रा को बलाघात के अनुसार लघु मात्रा में भी गिना जाता है।
संयुक्त वर्ण में जिस वर्ण पर बलाघात (ज़ोर) पढ़ता है, वह गुरु या दीर्घ माना जाता है, जैसे─
दिव्य (ऽ।) दिव्या (ऽऽ)
कुम्भ (ऽ।) कुम्भार (ऽऽ।)
दण्ड (ऽ।) दण्डाधीश (ऽऽऽ।)
परन्तु…
म जब ह से जुड़ता है तो उसका बलाघात ह पर पड़ता है, इसलिये ‘तुम्ह’ शब्द में दो लघु अर्थात् दो ही मात्रा होगी।
जैसे─
तुम्ह (।।)
तुम्हारी (।ऽऽ)
शिखरिणी छन्द पर आधारित निम्नलिखित पंक्तियाँ पढ़ें, जिनमें मात्राओं की संख्या २५×४=१०० और वर्णों की संख्या १७×४=६८ है।
सभी मेरे साथी, सुख समय में साथ सबका
सभी मेरे प्रेमी, धन रतन जो पास मिलता
तभी मैंने जाना, दुख समय में कौन किसका
नहीं कोई मेरा, इस जगत् में स्वार्थ सबका
ध्यान दें─
शिखरिणी छन्द के आधार पर शिवमहिम्नः स्तोत्र की रचना हुई है।
Dear Sanjay G,
!!!!! नमस्ते !!!!!
आपका youtube चैंनल “सुगम-ज्ञान-संगम” देखकर बहूत उत्साहित हो गया, voice एडिटिंग बहूत बढ़िया है | बात कहने का ढंग भी अति सहारनीय है |
ऐसा ही मैं कुछ बनाना चाहता था पर मुझे ये सब नहीं आती, पर आपके चैनल को देख कर लगा आप हमारी सहायता कर सकते है ?
I have a question.
How do I find out the chhanda of a small four line poem?
Kanakmanjiri chanda ka details batao