महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास से शायद ही कोई सनातनधर्मी अपरिचित हो। महाभारत के अलावा महर्षि वेदव्यास ने १८ पुराणों एवं ब्रह्मसूत्र की रचना की। कहा जाता है, संसार में जितनी अच्छी बातें हैं, वेदव्यास का उच्छिष्ट (जूठन) हैं अर्थात् सारी अच्छाइयों का उल्लेख वेदव्यास ने किसी न किसी रूप में कर ही दिया है। उनके पिता पराशर मुनि और माता सत्यवती थी।
सत्यवती का जन्म कैसे हुआ? और सत्यवती से वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ? इसकी कहानी बड़ी रोचक है। आइये, https://sugamgyaansangam.com के इस पोस्ट इसे जानें।
सुधन्वा (जो पूर्व जन्म में उपरिचर वसु थे) नाम के एक राजा बहुत धर्मात्मा और सत्यवादी थे। उनकी रानी का गिरिका सुन्दर, सुशीला और ईश्वर में आस्था रखनेवाली थी। सुधन्वा तपस्या करके देवराज इन्द्र से एक विमान और न सूखनेवाली सुन्दर माला वरदान में प्राप्त कर ली थी। वह माला अपने हृदय में धारण कर विमान में बैठकर उपरिचर आकाश में भ्रमण किया करते थे। उन्हें आखेट का बड़ा शौक था। वह प्रायः वनों में आखेट के लिए जाया करते थे।
एक दिन गिरिका ऋतुमती हुई। ३ दिन के पश्चात जब रानी शुद्ध हुई तो उपरिचर उसके साथ रमण करने से पूर्व ही वन में आखेट के लिए चले गये। राजा आखेट के लिये चला तो गये, किन्तु उनका ध्यान रानी के साथ रमण करने की ओर ही लगा रहा, फलस्वरूप उनका वीर्य स्खलित हो गया। वीर्य व्यर्थ नहीं जाये, अतः राजा ने अपने वीर्य को एक दोने में रखकर विमान में बैठे हुए बाज पक्षी को बुलाकर उसे कहा तुम इस दोने को ले जाकर मेरी रानी को दे दो। वह इसे धारण कर लेगी। दोने को मुँह में दबाकर बाज राजा के भवन की ओर उड़ चला। जैसे ही बाज यमुना नदी के ऊपर से जा रहा था, दूसरे बाज की दृष्टि उस पर गयी, उसे लगा यह खाने का सामान ले जा रहा है, इसलिये उसने झपट्टा मारा। जिस कारण बाज के मुँह से दोना गिरकर यमुना नदी में बह गया।
दोने में रखा वीर्य यमुना नदी में बह गया, जिसे एक मछली (जो पूर्व जन्म में अद्रिका नाम की अप्सरा थी) निगल लिया। मछली गर्भवती हो गयी। दासराज नामक मल्लाह को वह मछली शिकार में मिली। जब उसने मछली के पेट को बीचो-बीच से काटा तो उसके पेट से एक बालक और एक बालिका निकली। उसने दोनों बच्चे को राजा को भेंट कर दिया। राजा ने बालक को अपने पास रख लिया और बालिका दासराज को वापस लौटा दिया। दासराज उस बालिका को अपने घर ले जाकर उसका पालन पोषण करने लगा। दासराज ने बालिका का नाम सत्यवती रखा।
सत्यवती मछली के पेट में से उत्पन्न हुई थी, इसलिए उसके शरीर से मछली की गन्ध निकला करती थी। लोग उसे मत्स्यगंधा भी कहते थे। मत्स्यगन्धा धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उसकी सुन्दरता भी अद्भुत थी। रात्रि को वह अपनी नाव पर बैठकर लोगों को इस पार से उस पार पहुँचाया करती थी।
एक दिन महर्षि पराशर वहाँ पहुँचे। पराशर मुनि ज्योतिष विद्या के मर्मज्ञ थे। वे गर्भाधान के लिये उपयुक्त पात्र की खोज में थे; क्योंकि उस दिन पुष्य नक्षत्र के योग से ऐसा संयोग बन रहा था कि सही पात्र ने गर्भ धारण कर लिया तो कोई दिव्य आत्मा इस धरती पर अवतरित होगी। समय बीतने से पहले उनकी दृष्टि मत्स्यगंधा पर पड़ी,उसे देखकर महर्षि मुग्ध हो गये। उन्होंने कहा, “सुन्दरी! तुम्हें अपूर्व सुख मिलेगा, तुम मेरे साथ रमण करो।”
तब मत्स्यगन्धा ने उत्तर दिया, “महर्षि, आप यह कैसी बातें कर रहे हैं? दोपहर का समय है, आसपास लोग बैठे हैं। मैं आपके साथ रमण कैसे कर सकती हूँ?”
पराशर मुनि ने योगशक्ति से चारों ओर कुहरा कर दिया और बोले, “अब हमें कोई नहीं देख सकता तुम निश्चिन्त होकर मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लो।”
मत्स्यगन्धा पुनः बोली, “महर्षि मैं कुँवारी हूँ। पिता की आज्ञा के अधीन हूँ। आपके साथ रमण करने से मेरा कौमार्य नष्ट हो जायेगा। मैं समाज के लिये कलंक बन जाऊँगी।”
पराशर जी ने उत्तर दिया, “तुम चिन्ता मत करो, मुझसे रमण करने के पश्चात तुम्हारा कौमार्य बना रहेगा। गर्भवती होने पर भी गर्भ का चिह्न प्रकट नहीं होगा।”
मत्स्यगंधा फिर बोली, “मेरे शरीर से मछली की गन्ध हमेशा निकलती रहती है। आप मुझे वरदान दें कि वह गन्ध सुगन्ध के रूप में परिवर्तित जाये और चार कोस तक यह गन्ध फैलती रहे।”
पराशर जी ने तथास्तु कहा। तब मत्स्यगंधा के शरीर से कस्तूरी की गंध निकलने लगी। वह योजनगन्धा भी कहे जाने लगी।
पराशर जी ने मत्स्यगन्धा के साथ रमण किया था, जिसके फलस्वरूप मत्स्यगंधा गर्भवती हुई। यमुना के द्वीप में एक बालक ने उनके गर्भ से जन्म लिया। वह बालक जन्म लेते ही बड़ा हो गया। वह तप करने के लिए वन में चला गया। वहीं बालक जगत में ‘वेदव्यास’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वेदव्यास को नाम कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है। वे श्याम वर्ण के थे और उनका जन्म दो द्वीपों के बीच हुए था, इसलिए वे कृष्ण द्वैपायन कहे जाते हैं।
वेदव्यास कारक पुरुष थे। जो आत्मा स्वेच्छापूर्वक जगत-उद्धार के लिये धरती पर जन्म लेती है और स्वेच्छापूर्वक अपने लोक को जा सकती है, वे कारक कहलाती हैं। माना जाता है, वेदव्यास आज भी धरती पर मौजूद है और योग्य लोगों को दर्शन देकर कृतार्थ भी करते हैं।