शिवरक्षास्तोत्रम्

शिवरक्षा स्तोत्रम् एक अद्भुत स्तोत्र है। भगवान् नारायण ने स्वप्न में आकर याज्ञवल्क्य मुनि को जो उपदेश दिया और उस उपदेश को प्रातःकाल उठकर याज्ञवल्क्य मुनि ने उसी प्रकार लिख लिया जैसा भगवान् श्रीहरि ने कहा था। यही उपदेश शिवरक्षास्तोत्रम् के नाम से जाना जाता है।

श्री हरि के पावन मुख से निःसृत होने के कारण इसका एक एक श्लोक मन्त्र के समान शक्तिशाली है। आरोग्यदायी होने के साथ साथ यह एक अमोघ रक्षा कवच है।

अनुष्टुप् छन्द पर आधारित इस स्तोत्र में कुल १२ श्लोक हैं। क्योंकि यह अनुष्टुप् छन्द पर आधारित है, अतः इसे बोलना बहुत ही सरल है। इसमें बहुत कठिन शब्दों का समावेश भी नहीं है। शिवभक्तों को तो ये १२ श्लोक कण्ठस्थ करके प्रातःकाल की संन्ध्या में नित्य पठन का नियम बना लेना चाहिये।

यह स्तोत्र देखा जाये तो अन्य स्तोत्रों की अपेक्षा बहुत ही छोटा है और बहुत ही प्रभावशाली है। इसकी फलश्रुति में कहा गया है कि जो साधक इसका पाठ करता है, वह समस्त कामनाओं का उपभोग करके अन्त में शिव का सान्निध्य प्राप्त करता है। इसके पाठ मात्र से त्रैलोक में जितने ग्रह, भूत, पिशाच आदि विचरण करते हैं, तत्क्षण दूर भाग जाते हैं, यह इतना प्रभावशाली है।

अधिक क्या कहूँ? बस, यह स्वभाव में आत्मसात् कर लेने जैसा स्तोत्र है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में इस स्तोत्र को विनियोग सहित लघुशब्द दिये गये हैं, जिनकी सहायता से आप यह स्तोत्र सरलतापूर्वक बोल सकते हैं। मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिवस्तोत्र रत्नाकर पर आधारित हैं।

दर्शकों की सुविधा हेतु इस स्तोत्र का JPG image पोस्ट के अन्त में दिया गया है, उसे अवश्य डाउनलोड कर लें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आपको स्तोत्र को अपने मोबाइल में ही देखकर सरलता से पढ़ सकें।

विनियोग

❑➧ॐ अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः।
❍ ॐ अस्य श्री शिवरक्षा स्तोत्र मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीसदाशिव प्रीत्यर्थं शिवरक्षा स्तोत्र जपे विनियोगः।

शिवरक्षास्तोत्रम्

(❑➧मूल श्लोक ❍लघु शब्द)

❑➧चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्।।१।।
❍ चरितं देव देवस्य
महा देवस्य पावनम्।
अपारं परमो दारं
चतुर् वर्गस्य साधनम्।।१।।

❑➧गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षा पठेन्नरः।।२।।
❍ गौरी विनायको पेतं
पञ्च वक्त्रं त्रि नेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दश भुजं
शिव रक्षा पठेन् नरः।।२।।

❑➧गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्धेन्दुशेखरः।
नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषणः।।३।।
❍ गङ्गा धरः शिरः पातु
भाल मर्धेन्दु शेखरः।
नयने मदन ध्वंसी
कर्णो सर्प विभूषणः।।३।।

❑➧घ्राणं पातु पुरारातिर्मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरा शितिकन्धरः।।४।।
❍ घ्राणं पातु पुरारातिर्
मुखं पातु जगत्पतिः।
जिह्वां वागीश्वरः पातु
कन्धरा शिति कन्धरः।।४।।

❑➧श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठ स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।
भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्।।५।।
❍ श्री कण्ठः पातु मे कण्ठ
स्कन्धौ विश्व धुरन्धरः।
भुजौ भूभार संहर्ता
करौ पातु पिनाक धृक्।।५।।

❑➧हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः।।६।।
❍ हृदयं शङ्करः पातु
जठरं गिरिजा पतिः।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु
कटी व्याघ्रा जिनाम्बरः।।६।।

❑➧सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।
ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः।।७।।
❍ सक्थिनी पातु दीनार्त
शरणागत वत्सलः।
ऊरू महेश्वरः पातु
जानुनी जगदीश्वरः।।७।।

❑➧जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः।।८।।
❍ जङ्घे पातु जगत्कर्ता
गुल्फौ पातु गणाधिपः।
चरणौ करुणा सिन्धुः
सर्वाङ्गानि सदाशिवः।।८।।

❑➧एतां शिवबलोपेतां रक्षा यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।।९।।
❍ एतां शिव बलो पेतां
रक्षा यः सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान्
शिव सायुज्य माप्नुयात्।।९।।

❑➧ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।।१०।।
❍ ग्रह भूत पिशाचाद्यास्
त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूरादाशु पलायन्ते
शिव नामाभि रक्षणात्।।१०।।

❑➧अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्य जगत्त्रयम्।।११।।
❍ अभयङ्कर नामेदं
कवचं पार्वती पतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे
तस्य वश्य जगत् त्रयम्।।११।।

❑➧इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत्।।१२।।
❍ इमां नारायणः स्वप्ने
शिव रक्षां यथाऽऽ दिशत्।
प्रात रुत्थाय योगीन्द्रो
याज्ञवल्क्यस् तथाऽ लिखत्।।१२।।

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