शिव तांडव बोलना सीखें shiv tandav bolna sikhe

शिव तांडव बोलना सीखें

शिव-भक्त रावण द्वारा गायी गयी शिवताण्डव स्तोत्र की रचना पञ्चचामर छन्द के आधार पर हुई है। इसकी शब्द रचना निश्चित ही बहुत बड़ी है, परन्तु इसके छन्द में इतना मधुर प्रवाह है कि सुनकर तन-मन पुलकित हो जाता है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसे देखकर इसे पढ़ना तो दूर, यह भी समझ में नहीं आता कि स्तोत्र के शब्द क्या हैं? इसे किस प्रकार बोलें? बार-बार प्रयास करने पर भी इसके शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाते हैं? जिसने कभी शिवताण्डव नहीं पढ़ा-सुना नहीं है, उसके सामने यदि शिवताण्डव स्तोत्र रख दिया जाये तो उसकी यही स्थिति रहती है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म-स्तोत्र संग्रह स्तम्भ (Category) में इस स्तोत्र के शब्द छोटे-छोटे रूप में ‘❍’ इस चिह्न के बाद दर्शाये गये हैं, जिसका उद्देश्य है, दर्शकों को श्लोक पढ़ने में आसानी हो। यह शब्दों का सन्धि-विच्छेदन नहीं है, अपितु उच्चारण की सुविधा अनुसार शब्दों को अलग-अलग किया गया है। अतः प्रामाणिकता तौर पर मूल श्लोक भी ‘❑➧’ इस चिह्न के आगे दर्शाये गये हैं, जो गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिवस्तोत्र रत्नाकर किताब से लिये गये हैं। तो आइये, शिव तांडव बोलना सीखें shiv tandav bolna sikhe.

ध्यान दें─ यह स्तोत्र गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित शिवस्तोत्र रत्नाकर के आधार पर है, जिसमें १५ श्लोक हैं। कहीं-कहीं अपवाद के रूप में १७ श्लोक देखने मिलते हैं। इस वेबसाइट पर आप स्तोत्र आदि प्रामाणिक मानकर ही पढ़ें। स्तोत्र के अन्त में pdf तथा jpg image भी उपलब्ध है।

 

❀ शिवताण्डव स्तोत्रम् ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)

❑➧जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।
❍ जटा-टवी-गलज्-जल-प्रवाह-पावि-तस्थले
गलेऽव-लम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्।
डमड्-डमड्-डमड्-डमन्-निनाद-वड्-डमर्वयं
चकार चण्ड-ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्।।१।।

❑➧जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम।।२।।
❍ जटा-कटाह-सम्भ्रम-भ्रमन्-निलिम्प निर्झरी-
विलोल-वीचि-वल्लरी-विराज-मान मूर्धनि।
धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलल्-ललाट-पट्ट पावके
किशोर-चन्द्र-शेखरे रतिः प्रति-क्षणं मम।।२।।

❑➧धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि।।३।।
❍ धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-विलास-बन्धु बन्धुर-
स्फुरद्-दिगन्त-सन्तति-प्रमोद-मान मानसे।
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरा-पदि
क्वचिद्-दिगम्बरे मनो विनोद-मेतु वस्तुनि।।३।।

❑➧जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि।।४।।
❍ जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्-फणा मणि-प्रभा-
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव-प्रलिप्त-दिग्वधू-मुखे।
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्-त्वगुत्त-रीय-मेदुरे
मनो विनोद-मद्भुतं बिभर्तु भूत-भर्तरि।।४।।

❑➧सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः।।५।।
❍ सहस्र-लोचन-प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः।
भुजङ्ग-राज-मालया निबद्ध-जाट-जूटक:
श्रियै चिराय जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः।।५।।

❑➧ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमान शेखरं
महाकपालि सम्पदे शिरो जटालमस्तु नः।।६।।
❍ ललाट-चत्वर-ज्वलद्-धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं नमन्-निलिम्प-नायकम्।
सुधा-मयूख-लेखया विराज-मान-शेखरं
महा-कपालि सम्पदे शिरो जटाल-मस्तु नः।।६।।

❑➧करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्-
धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।
❍ कराल-भाल-पट्टिका-धगद्-धगद्-धगज्-ज्वलद्-
धनञ्जया-हुती-कृत-प्रचण्ड-पञ्च-सायके।
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्र-चित्र-पत्रक-
प्रकल्प-नैक-शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम।।७।।

❑➧नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्-
कुहूनिशीथिनीतमःप्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः।।८।।
❍ नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्-
कुहू-निशीथिनी-तमः-प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः।
निलिम्प-निर्झरी-धरस्-तनोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्-धुरन्धरः।।८।।

❑➧प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।९।।
❍ प्रफुल्ल-नील-पङ्कज-प्रपञ्च-कालिम-प्रभा-
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचि-प्रबद्ध-कन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छि-दान्ध-कच्छिदं तमन्त-कच्छिदं भजे।।९।।

❑➧अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं-
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे।।१०।।
❍ अखर्व-सर्व-मङ्गला-कला-कदम्ब मञ्जरी-
रस-प्रवाह-माधुरी-विजृम्भणा-मधु-व्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्त-कान्तकं भजे।।१०।।
 
❑➧जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्
धिमिद्धिमिद्धिमिद्ध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः।।११।।
❍ जयत्-वदभ्र-विभ्रम-भ्रमद्-भुजङ्ग मश्वस-
द्विनिर्गमत्-क्रम-स्फुरत्-कराल-भाल-हव्य-वाट्
धिमिद्-धिमिद्-धिमिद्-ध्वनन्-मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल-
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित-प्रचण्ड-ताण्डवः शिवः।।११।।

❑➧दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
र्वरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्।।१२।।
❍ दृषद्-विचित्र-तल्पयोर्-भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्-
गरिष्ठ-रत्न-लोष्ठयोः सुहृद्-विपक्ष-पक्ष-योः।
तृणारविन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः
सम-प्रवृत्ति-कः कदा सदा-शिवं भजाम्यहम्।।१२।।

❑➧कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।
❍ कदा निलिम्प-निर्झरी-निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन्।
विलोल-लोल-लोचनो ललाम-भाल-लग्नकः
शिवेति मन्त्र मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्।।१३।।

❑➧इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्।।१४।।
❍ इमं हि नित्य-मेव-मुक्त-मुत्त-मोत्तमं स्तवं
पठन् स्मरन् ब्रुवन्-नरो विशुद्धि-मेति सन्ततम्।
हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्।।१४।।

❑➧पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां
लक्ष्मीं सदैवसुमुखिं प्रददाति शम्भुः।।१५।।
❍ पूजा-वसान-समये दश-वक्त्र-गीतं
यः शम्भु-पूजन-परं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथ-गजेन्द्र-तुरङ्ग-युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः।।१५।।

इति श्री रावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

 

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अतिरिक्त श्लोक, जो क्षेपक रूप में १४ वे और १५ वे क्रमांक पर आते हैं।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहर्निशं
परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः।।१४।।
❍ निलिम्प नाथ-नागरी कदम्ब मौल-मल्लिका-
निगुम्फ-निर्भक्षरन्म धूष्णिका-मनोहरः।
तनोतु नो मनो-मुदं विनोदिनीं-महर्निशं
परिश्रय परं पदं तदङ्ग-जत्विषां चयः।।१४।।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌।।१५।।
❍ प्रचण्ड वाडवा-नल प्रभा-शुभ-प्रचारणी
महाष्ट-सिद्धि-कामिनी जनाव-हूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाह-कालिक-ध्वनिः
शिवेति मन्त्र-भूषगो जगज्-जयाय जायताम्‌।।१५।।

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