शिव स्तुति
श्रीस्कन्दमहापुराण के कुमारिकाखण्ड में स्कन्द द्वारा की गयी यह शिवस्तुति है, जिसका प्रवाह शिवपंचाक्षरी स्तोत्र की तरह है। इसकी फलश्रुति में स्वयं भगवान् शिव ने कहा है, जो लोग सायंकाल और प्रात:काल पूर्ण भक्तिपूर्वक तुम्हारे द्वारा की हुई इस स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उन्हें कोई रोग नहीं होगा, दरिद्रता भी नहीं होगी तथा प्रियजनों से कभी वियोग भी न होगा। वे इस संसार में दुर्लभ भोगों का उपभोग करके मेरे परमधाम को प्राप्त करेंगे।
तो आइये
https://sugamgyaansangam.com के स्तोत्र-संग्रह संकलन में इस कल्याणकारी स्तोत्र का पठन करें।
❑➧स्कन्द उवाच
नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय।
नमः शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय।।१।।
❍ नमः शिवा-यास्तु निरा-मयाय
नमः शिवा-यास्तु मनो-मयाय।
नमः शिवा-यास्तु सुरार्चिताय
तुभ्यं सदा भक्त-कृपा-पराय।।१।।
❑➧नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्तमनोभवाय।
नमोऽस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय।।२।।
❍ नमो भवा-यास्तु भवोद्-भवाय
नमोऽस्तु ते ध्वस्त-मनो-भवाय।
नमोऽस्तु ते गूढ-महा-व्रताय
नमोऽस्तु माया-गहना-श्रयाय।।२।।
❑➧नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय।
नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय।।३।।
❍ नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय
नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय।
नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय
नमोऽस्तु ते काल-कला-तिगाय।।३।।
❑➧नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय।
नमः शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय।।४।।
❍ नमो निसर्गात्मक-भूतिकाय
नमोऽस्-त्वमेयो-क्षम-हर्द्धिकाय।
नमः शरण्याय नमो-ऽगुणाय
नमोऽस्तु ते भीम-गुणानु-गाय।।४।।
❑➧नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकर्त्रे नमोऽस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे।
नमोऽस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नमः सदा ते भगवन् सुकर्त्रे।।५।।
❍ नमोऽस्तु नाना-भुवनाधि-कर्त्रे
नमोऽस्तु भक्ता-भिमत-प्रदात्रे।
नमोऽस्तु कर्म-प्रसवाय धात्रे
नमः सदा ते भगवन् सुकर्त्रे।।५।।
❑➧अनन्तरूपाय सदैव तुभ्यमसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम्।
अमेयमानाय नमोऽस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोऽस्तु तुभ्यम्।।६।।
❍ अनन्त-रूपाय सदैव तुभ्य-
मसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम्।
अमेय-मानाय नमोऽस्तु तुभ्यं
वृषेन्द्र-यानाय नमोऽस्तु तुभ्यम्।।६।।
❑➧नमः प्रसिद्धाय महौषधाय नमोऽस्तु ते व्याधिगणापहाय।
चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नमः शिवाय।।७।।
❍ नमः प्रसिद्धाय महौ-षधाय
नमोऽस्तु ते व्याधि-गणा-पहाय।
चरा-चरायाथ विचारदाय
कुमार-नाथाय नमः शिवाय।।७।।
❑➧ममेश भूतेश महेश्वरोऽसि कामेश वागीश बालेश धीश।
क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोऽस्तु मोक्षेश गुहाशयेश।।८।।
❍ ममेश भूतेश महेश्वरोऽसि
कामेश वागीश बालेश धीश।
क्रोधेश मोहेश परा-परेश
नमोऽस्तु मोक्षेश गुहा-शयेश।।८।।
❑➧शिव उवाच
ये च सायं तथा प्रातस्त्वत्कृतेन स्तवेन माम्।
स्तोष्यन्ति परया भक्त्या शृणु तेषां च यत्फलम्।।९।।
❍ ये च सायं तथा प्रातस्-
त्वत्-कृतेन स्तवेन माम्।
स्तोष्यन्ति परया भक्त्या
शृणु तेषां च यत्फलम्।।९।।
❑➧न व्याधिर्न च दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम्।
भुक्त्वा भोगान् दुर्लभांश्च मम यास्यन्ति सद्म ते।।१०।।
❍ न व्याधिर्न च दारिद्र्यं
न चैवेष्ट-वियोजनम्।
भुक्त्वा भोगान् दुर्लभांश्च
मम यास्यन्ति सद्म ते।।१०।।
।।इति श्रीस्कन्दमहापुराणे कुमारिकाखण्डे शिवस्तुतिः सम्पूर्णा।।
हिन्दी अर्थ
❑अर्थ➠ स्कन्दजी बोले─
जो सब प्रकार के रोग-शोक से रहित हैं, उन कल्याण स्वरूप भगवान् शिव को नमस्कार है। जो सबके भीतर मनरूप से निवास करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है। सम्पूर्ण देवताओं से पूजित भगवान् शंकर को नमस्कार है। भक्तजनों पर निरन्तर कृपा करनेवाले आप भगवान् महेश्वर को नमस्कार है।।१।।
❑अर्थ➠ सबकी उत्पत्ति के कारण भगवान् शिव को नमस्कार है। भगवन्! आप भव के उद्भव (संसार के स्रष्टा) हैं, आपको नमस्कार है। कामदेव का विध्वंस करनेवाले आपको नमस्कार है। आप गूढ़ भाव से महान् व्रत का पालन करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप मायारूपी गहन वन के आश्रय हैं अर्थात् सबको आश्रय देनेवाला आपका स्वरूप योगमाया समावृत होने के कारण दुर्बोध है, आपको नमस्कार है।।२।।
❑अर्थ➠ प्रलयकाल में जगत का संहार करनेवाले ‘शर्व’ नामधारी आपको नमस्कार है। शिवरूप आपको नमस्कार है। आप पुरातन सिद्धरूप हैं, आपको नमस्कार है। कालरूप आपको नमस्कार है। आप सबकी कलना (गणना) करनेवाले होने के कारण ‘कल’ नाम से प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है। आप काल की कला का अतिक्रमण करके उससे बहुत दूर रहते हैं, आपको नमस्कार है।।३।।
❑अर्थ➠ आप स्वाभाविक ऐश्वर्य से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है। आप अप्रमेय महिमावाले वृषभ तथा महासमृद्धि से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है। आप सबको शरण देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है। आपके अनुगामी सेवक भयानक गुण सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है।।४।।
❑अर्थ➠ नाना भुवनों पर अधिकार रखनेवाले आपको नमस्कार है। भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले आपको नमस्कार है। भगवान्! आप ही कर्मों का फल देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही सबका धारण-पोषण करनेवाले धाता तथा उत्तम कर्ता हैं, आपको सर्वदा नमस्कार है।।५।।
❑अर्थ➠ आपके अनन्त रूप हैं, आपका कोप सबके लिये असह्य है, आपको सदैव नमस्कार है। आपके स्वरूप का कोई माप नहीं हो सकता, आपको नमस्कार है। वृषभेन्द्र को अपना वाहन बनानेवाले आप भगवान् महेश्वर को नमस्कार है।।६।।
❑अर्थ➠ आप सुप्रसिद्ध महौषधरूप हैं, आपको नमस्कार है। समस्त व्याधियों का विनाश करनेवाले आपको नमस्कार है। आप चराचरस्वरूप, सबको विचार तत्त्व-निर्णयात्मिका शक्ति देनेवाले, कुमारनाथ के नाम से प्रसिद्ध तथा परम कल्याण स्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।।७।।
❑अर्थ➠ प्रभो! आप मेरे स्वामी हैं, सम्पूर्ण भूतों के ईश्वर एवं महेश्वर हैं। आप ही समस्त भोगों के अधिपति हैं। वाणी, बल और बुद्धि के अधिपति भी आप ही हैं। आप ही क्रोध और मोह पर शासन करनेवाले हैं। पर और अपर (कारण और कार्य) के स्वामी भी आप ही हैं। सबकी हृदय गुहा में निवास करनेवाले परमेश्वर तथा मुक्ति के अधीश्वर भी आप ही हैं, आपको नमस्कार है।।८।।
❑अर्थ➠ शिवजी ने कहा─
जो लोग सायंकाल और प्रात:काल पूर्ण भक्तिपूर्वक तुम्हारे द्वारा की हुई इस स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उनको जो फल प्राप्त होगा, उसका वर्णन करता हूँ। सुनो, उन्हें कोई रोग नहीं होगा, दरिद्रता भी नहीं होगी तथा प्रियजनों से कभी वियोग भी न होगा। वे इस संसार में दुर्लभ भोगों का उपभोग करके मेरे परमधाम को प्राप्त करेंगे।।९-१०।।
इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराण के कुमारिकाखण्ड में शिवस्तुति सम्पूर्ण हुई।
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