शीतलाष्टक स्तोत्र मूलपाठ Shitlashtakam

शीतलाष्टक स्तोत्र

Shitlashtakam

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हम सब जीवन में कभी-न-कभी शीतला (चेचक) से पीड़ित हुए होंगे और हमारा यह अनुभव रहा होगा कि इस व्याधि की कोई औषधि नहीं है। कभी-कभी तो माँ शीतला कुपित हो जाती हैं तो हमारे चेहरे पर जीवन भर के लिये विस्फोटक (चेचक) के दाग़ रह जाते हैं। भले ही आज के समय में चिकित्सा विज्ञान हर रोग का निदान कर दे। परन्तु जब घर में, घर के किसी सदस्य को चेचक निकलता है तो माता शीतला की आराधना और उनकी शरणागति ही इस व्याधि से हमें छुटकारा दिलाती है।

माँ शीतला की आराधना का हिन्दू धर्म में अति महत्त्व है। उत्तर भारत हो, मध्य भारत हो या दक्षिण भारत हो, भारतवर्ष के हर जाति-धर्म में माँ शीतला की आराधना किसी-न-किसी रूप में अवश्य की जाती है। बहुत से घरों में तो कुलदेवी के रूप में ये पूज्य हैं।

शीतलाष्टकम् ऐसा स्तोत्र है, जिसका नित्य पाठ किया जाये तो विस्फोटक (चेचक) का भय उस व्यक्ति और उसके घर को नहीं रहता।

यह स्तोत्र स्कन्द महापुराण के अन्तर्गत आता है। गीताप्रेस गोरखपुर की किताब देवीस्तोत्ररत्नाकर में यह प्रकाशित है। इस स्तोत्र में लिखा गया है कि इसका पाठ और श्रवण करना दोनों ही फलदायी माना जाता है। मूल श्लोक के साथ लघुशब्द भी दिये गये हैं, जिसे देखकर यह सहजतापूर्वक पढ़ा जा सकता है।

।।ॐ शीतलायै नमः।।
❀ शीतलाष्टकम् ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)

❑➧अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटकनिवृत्तये जपे विनियोगः।
❍ अस्य श्री शीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतला देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्व विस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः।

ईश्वर उवाच
❑➧वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम्।।१।।
❍ वन्देऽहं शीतलां देवीं
रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनी कलशो पेतां
शूर्पा लङ्कृत मस्तकाम्।।१।।

❑➧वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।२।।
❍ वन्देऽहं शीतलां देवीं
सर्व रोग भयापहाम्।
यामा साद्य निवर्तेत
विस्फोटक भयं महत्।।२।।

❑➧शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दाहपीडितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।३।।
❍ शीतले शीतले चेति
यो ब्रूयाद् दाह पीडितः।
विस्फोटक भयं घोरं
क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।३।।

❑➧यस्त्वामुदकमध्ये तु धृत्वा पूजयेत नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।४।।
❍ यस्त्वा मुदक मध्ये तु
धृत्वा पूजयेत नरः।
विस्फोटक भयं घोरं
गृहे तस्य न जायते।।४।।

❑➧शीतले ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।
प्रणष्टचक्षुषः पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।।५।।
❍ शीतले ज्वर दग्धस्य
पूति गन्ध युतस्य च।
प्रणष्ट चक्षुषः पुंसस्
त्वामाहुर् जीवनौषधम्।।५।।

❑➧शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटकविदीर्णानां त्वमेकामृतवर्षिणी।।६।।
❍ शीतले तनुजान् रोगान्
नृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटक विदीर्णानां
त्वमेका मृत वर्षिणी।।६।।

❑➧गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।७।।
❍ गल गण्ड ग्रहा रोगा
ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनु ध्यान मात्रेण
शीतले यान्ति संक्षयम्।।७।।

❑➧न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।।८।।
❍ न मन्त्रो नौषधं तस्य
पाप रोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं
नान्यां पश्यामि देवताम्।।८।।

❑➧मृणालतन्तुसदृशीं नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।९।।
❍ मृणाल तन्तु सदृशीं
नाभिहृन् मध्य संस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तयेद् देवि
तस्य मृत्युर्न जायते।।९।।

❑➧अष्टकं शीतलादेव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न जायते।।१०।।
❍ अष्टकं शीतला देव्या
यो नरः प्रपठेत् सदा।
विस्फोटक भयं घोरं
गृहे तस्य न जायते।।१०।।

❑➧श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितैः।
उपसर्गविनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।।११।।
❍ श्रोतव्यं पठितव्यं च
श्रद्धा भक्ति समन्वितैः।
उपसर्ग विनाशाय
परं स्वस्त्य यनं महत्।।११।।

❑➧शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।१२।।
❍ शीतले त्वं जगन् माता
शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद् धात्री
शीतलायै नमो नमः।।१२।।

❑➧रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाखनन्दनः।
शीतलावाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः।।१३।।
❍ रासभो गर्दभश् चैव
खरो वैशाख नन्दनः।
शीतला वाहनश् चैव
दूर्वा कन्द निकृन्तनः।।१३।।

❑➧एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतलारुङ् न जायते।।१४।।
❍ एतानि खर नामानि
शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशूनां च
शीतलारुङ् न जायते।।१४।।

❑➧शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।१५।
❍ शीतलाष्टक मेवेदं
न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै
श्रद्धा भक्ति युताय वै।।१५।।
।।इति श्रीस्कन्दमहापुराणे शीतलाष्टकं सम्पूर्णम्।।

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