श्री रमण महर्षि

श्री रमण महर्षि

RAMANA MAHARSHI

ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करनेवाले सन्त

भारत से अंग्रेज़ तो चले गये पर अपने पीछे ऐसे लोगों को छोड़ गये, जो ग़रीब, पिछड़ी हुई और निम्न जातियों के लोगों को येन-केन प्रकारेण बहकाकर आज भी ईसाई बना रहे हैं।

एक समय तमिलनाडु के अर्काट ज़िले के पादरियों ने पाया कि अब धर्म-परिवर्तन के लिए लोग पहले की तरह नहीं आ रहे। यहाँ तक कि चर्च की प्रार्थना सभा में भी उपस्थिति कम होने लगी है। पता लगाने पर उन्हें मालूम हुआ कि आज कल अरुणाचलम् में कोई सन्त आये हैं, जिन्हें लोग ईश्वर का दूत समझते हैं। वे संत नित्य भगवान के पास जाते हैं और उनके निकट तीन घंटे रहते हैं। भगवान को देखने या उनके सेवक के पास जाने की लालसा प्रत्येक व्यक्ति के मन में होती है। ऐसे प्रचार के कारण उनके यहाँ लोग जाते हैं तो इसमें आश्चर्य क्या है?

पादरियों ने अनुमान लगाया कि वह ज़रूर कोई धूर्त होगा तथा उसके चेलों ने व्यापक रूप से यह प्रचार कर रखा है कि वह व्यक्ति नित्य भगवान से मुलाक़ात करता है। अगर तुरन्त उसका भण्डाफोड़ न किया गया तो परिणाम हमारे विपरीत होगा।

एक दिन कुछ पादरी अपने साथ कई धर्मप्रचारकों को लेकर रमण महर्षि के निकट आये और गुस्से में बोले, “सुना है कि आपको ईश्वर का साक्षात्कार हो गया है और आप रोज़ सवेरे तीन घंटे एकान्त में परमात्मा के साथ रहते हैं। हम इस झूठ का प्रचार नहीं होने देंगे। भोली-भाली जनता को पाखण्ड करके फँसाना सबसे बड़ा पाप है। इस पाप को दूर करने के लिए हम आपके पास आये हैं। आप जिस ईश्वर को देखते हैं, उससे हमारी मुलाक़ात करायें। अगर ये सारी बातें झूठ हैं तो हमें साफ़-साफ़ बतायें ताकि हम आपका पर्दाफ़ाश कर दें।”

महर्षि थोड़ा मुस्कराये और बिना किसी प्रकार की दुविधा के संयत स्वर में बोले, “आपने जो कुछ सुना है, सब सही है। आप कल सवेरे आइये, मैं आप लोगों को अपने भगवान के पास ले चलूँगा।”

*पादरियों को लगा कि रमण महर्षि झूठ बोलकर उन्हें बहका रहे हैं। उन लोगों ने यह निश्चय किया… कल सवेरे आकर इस नकली संत के कपट का भण्डाफोड़ कर देंगे… इन्हीं विचारों की उधेड़बुन में रात भर उन्हें नींद नहीं आयी।

दूसरे दिन वे पादरी और उनके साथ कुछ अन्य लोग आये। महर्षि उस समय अपने नित्यकर्म में व्यस्त थे। बाद में उन सभी को लेकर वे घने जंगल की ओर चल पड़े। दो मील पैदल चलने के बाद महर्षि एक झोंपड़ी के पास आकर रुके और बोले, “मेरे ईश्वर इसी झोंपड़ी में हैं। आप लोग बाहर शान्तिपूर्वक बैठकर सब कुछ देखने का कष्ट करें।”

इसके बाद महर्षि उस झोंपड़ी के भीतर गये। लोगों ने आश्चर्य से देखा कि भीतर एक चटाई पर एक कोढ़ी दम्पति पड़े थे। महर्षि ने उनके घावों की सफ़ाई की, फिर पानी लाकर उन्हें नहलाया और उनके घावों पर मलहम लगाया। उसके बाद खिचड़ी बनाकर उन्हें खिलायी। बाहर खड़े लोग यह सारा दृश्य देख रहे थे । महर्षि ने उन लोगों से कहा, “यही ईश्वर हैं।”

पादरियों के मुँह पर मानो, ताले जड़ गये। कुछ देर के लिए वे पाषाण-से बन गये, फिर हाथ जोड़कर बोले, महर्षि! आप हमें क्षमा करें। आज आपने हम अपराधियों को वह दिखा दिया है, जो पुण्यात्माओं के लिए भी दुर्लभ है। सचमुच, आप ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करनेवाले संत हैं।”

धन्य हैं ब्रह्मनिष्ठ सन्त! जो जन-जन के हृदय में छिपे हृदयेश्वर को आत्मदृष्टि से निहारते हैं, उसका प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं और निःस्वार्थ भाव से अर्थात् सेवा के लिए सेवा करते हैं, स्वार्थ के लिए या धर्मांतरण के बदइरादे से प्रेरित होकर नहीं। धन्य है भारत की यह धरा जिस पर आज भी ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष मौजूद हैं। उन्हें पाकर समस्त वसुंधरा स्वयं को सौभाग्यशालिनी अनुभव करती है।