संकटमोचन हनुमानाष्टक
हनुमान जी की आराधना में हनुमान चालीसा, बजरंग बाण और संकटमोचन हनुमानाष्टक के पाठ का बड़ा ही महत्त्व है। संकटमोचन हनुमान अष्टक के नियमित पाठ से घोर से घोर संकट भी दूर होने लगते हैं; क्योंकि संकटमोचन का अर्थ ही होता है, संकटों सें मुक्त करनेवाला।
संकट मोचन हनुमानाष्टक हमने बहुत बार पढ़ा-सुना होगा। मत्तगयन्द छन्द के आधार पर संत तुलसीदास द्वारा रचित इस रचना में प्रयुक्त शब्द तो सीमित हैं, परन्तु उनके अर्थ बड़े ही व्यापक हैं। कुछ शब्दों को जानने कारण उसके आगे-पीछे आनेवाले शब्दों का अक्सर हम अपने अनुमान से अर्थ लगा लेते हैं। जबकि उसका अर्थ कुछ और ही होता है।
तो आइये
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + चालीसा संग्रह स्तम्भ में हम अपने अनुमान को छोड़कर संकटमोचन हनुमानाष्टक का सही और सटीक सम्पूर्ण अर्थ जानें।
संकटमोचन हनुमानाष्टक
(मत्तगयन्द छन्द)
❑➧बाल समय रबि भक्षि लियो तब,
तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।१।।
❑अर्थ➠हे हनुमान जी! अापने बाल-अवस्था में सूर्य को (फल समझकर) निगल लिया था, जिस कारण तीनों लोक में अँधेरा छा गया था। संसार में त्राहि-त्राहि मच गयी। कोई भी उस संकट को दूर नहीं कर सका। देवताओं ने आकर आपसे विनती की और आपने सूर्य को मुक्त करके इस संकट का निवारण किया। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिय कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।२।।
❑अर्थ➠बाली के डर से सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे थे।एक दिन भगवान श्रीराम को (लक्ष्मणसहित) अपनी तरफ़ आते देखकर सुग्रीव चौंक गये! सोचने लगे, ऋषि मतंग के श्राप के कारण बाली तो यहाँ आ नहीं सकता, परन्तु कहीं उसने मुझे मारने के लिये तो इन्हें नहीं भेजा है? असमंजस की स्थिति में सुग्रीव ने आपसे कोई उपाय सोचने के लिये कहा। तब आपने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रभु श्रीराम की पहचान की और सुग्रीव का शोक निवारण किया। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧अंगद के सँग लेन गये सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,
लाय सिया-सुधि प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।३।।
❑अर्थ➠युवराज अंगद के साथ भेजते हुए वानरराज सुग्रीव ने समस्त वानरों से कहा था कि ‘यदि तुम सब सीतामाता की खोज करने में असफल रहे तो मुझे जीते-जी अपना मुँह मत दिखाना।’ और जब सीतामाता नहीं मिलीं तो सभी वानर थके-माँदे समुद्र-तट पर बैठ गये; तब आपने समुद्र लाँघकर सीतामाता की खोज की और सभी वानरों के प्राण बचाये। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧रावन त्रास दई सिय को सब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाय महा रजनीचर मारो।।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।४।।
❑अर्थ➠जिस समय रावण ने सीतामाता को कष्ट पहुँचाकर राक्षसियों से कहा कि वे सीता के शोक का निवारण करें और सीतामाता से यह दुःख सहा नहीं जा रहा था, इसलिये वे अशोक वृक्ष के कोमल पत्तों से स्वयं को भस्म करने के लिये अग्नि माँग रही थी। ऐसे विपरीत समय में आपने प्रभु श्रीराम की मुद्रिका उनकी गोद में डालकर उनका शोक-निवारण किया और राक्षसों का संहार किया। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧बान लग्यो उर लछिमन के तब,
प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो।।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।५।।
❑अर्थ➠जब रावणपुत्र मेघनाथ ने लक्ष्मण के प्राण हरने के लिये उनकी छाती में शक्तिबाण मारकर उन्हें मूर्च्छित कर दिया, तब आप लंका के राजवैद्य सुषेण को घरसहित लेकर आये। वैद्यराज सुषेण ने सूर्योदय से पूर्व हिमालय के द्रोणाचल पर्वत से संजीवनी बूटी लाने के लिये कहा। उनकी सलाह मानकर आप संजीवनीसहित द्रोणाचल पर्वत ही उठा लाये। जिसमें से संजीवनी बूटी निकालकर लक्ष्मणजी को देने से उनके प्राणों की रक्षा हो सकी। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकट मोचन है!
❑➧रावन जुद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो।।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।६।।
❑अर्थ➠युद्ध करते समय रावण ने नागपाश अस्त्र का प्रयोग करके सबको मायामय सर्प से बाँध दिया था। इस भारी संकट को देखकर प्रभु श्रीराम सहित सब दुविधा में पड़ गये कि इस संकट का निवारण कैसे हो? तब आप ही पक्षीराज गरुड़ को अपने साथ लाये और उन्होंने नागपाश के बन्धन को काटकर सबका संकट-निवारण किया। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत सँहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।७।।
❑अर्थ➠जिस समय अहिरावण श्रीराम-लक्ष्मण को अपने साथ पाताललोक में ले गया और विधि-विधान से देवी की पूजा करके अन्त में आपस में विचार-विमर्श करके राम-लक्ष्मण की बलि देने का निर्णय लिया, उस समय आप वहाँ पहुँचकर, अकेले ही अहिरावण और उसकी सेना का संहार करके, श्रीराम-लक्ष्मण के सहायक बनकर उनके प्राणों की रक्षा की। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
❑➧काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कुछ संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो।।८।।
❑अर्थ➠हे संकट मोचन हनुमान जी! आपने बड़े-बड़े देवताओं के कार्य सम्पन्न किये हैं। आप भलीभाँति विचार करें कि मुझ ग़रीब का ऐसा कौन-सा संकट हो सकता है, जिसका आप निवारण नहीं कर सकते? हे हनुमान महाप्रभु! हमारे जो भी संकट हैं, उन्हें अतिशीघ्र दूर करने की कृपा करें। संसार में कौन नहीं जानता कि आपका नाम कपिवर संकटमोचन है!
।। दोहा ।।
❑➧लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।
❑अर्थ➠हे हनुमान जी! आपके लाल रंग के शरीर पर सिन्दूर और लाल रंग का वस्त्र सुशोभित हो रहा है। आपकी पूछ भी लाल रंग की है। असुरों का संहार करनेवाले हे हनुमान जी! आपका शरीर वज्र के समान है। वानरों के सर्वश्रेष्ठ हे कपीश्वर! आपकी जय हो! जय हो!! जय हो!!!
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