संयम साधे घर बैठें
महामारी किसी देश में, किसी राज्य में अनेक बार आयी होगी, लेकिन कोरोना जैसी नहीं, जो पूरे विश्व पर संकट बनकर मँडरा रही है। इससे बचने का हमें प्रयास तो करना है, लेकिन सच तो यही है कि ईश्वर ही इस संकट का निवारण करेंगे।
हमारी कोशिश यही होनी चाहिये कि हम घर पर रहें और अपना अधिकांश समय ईश्वर के चिन्तन में लगायें। बेक़ार की बातें अथवा मोबाइल में गेम खेलने की अपेक्षा इस विश्व-संकट निवारण के लिये ईश्वर से प्रार्थना करें।
मानव निर्मित इस अदृश्य संसर्गजन्य रोग ने महामारी का रूप धारण करके यह दिखला दिया है कि अन्तर्यामी परमात्मा ही हमारे रक्षक हैं, इसलिये हमें हर समय सकारात्मक सोच रखनी है और ना तो कोरोना से डरना है; ना ही उसके प्रति लापरवाह होना है; ना ही उसका मज़ाक उड़ाना है और ना ही उसे मनोरोग के रूप में अपने मन में जगह देना है। अपने मन में नित्य निरन्तर ईश्वर को ही बसाये रखना है और इस कोरोना की परिभाषा बदल देनी है, वो परिभाषा है
को:- कोशिश से
रो:- रोकथाम
ना:- नाकाम नहीं होती
जब प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘लॉक डाउन’ की यह पहल की है, तो उन्होंने निश्चित ही अन्य देशों को स्थिति का आकलन किया होगा, तभी यह क़दम उठाया है। हमें उनके इस पहल में कंधे-से-कंधा मिलाकर सहयोग देना। मैं आशा करता हूँ कि ❛ संयम साध के घर बैठें…❜ मेरी यह कविता https://sugamgyaansangam.com के पाठकों के साथ जहाँ-जहाँ तक यह पहुँचेगी, लोगों में जागरूकता और यथास्थिति को समझाकर ईश्वर के प्रति आस्था जगायेगी।
❛ संयम साधे घर बैठें…❜
संयम साधे घर बैठें, चहुँ दिश संकट छाया है।
इक अदृश्य महामारी ने, विष का खेल रचाया है।।
जन सम्पर्क में न आयें, न मिलना ही गठबन्धन है।
मौत से बचने की ख़ातिर, सबने क़दम उठाया है।।
बीमारी से सजग रहें, ना बरतें लापरवाही।
स्वस्थ रहे तो सब कुछ है, काया से ही माया है।।
घर बैठे हरि नाम जपो, हरि ही संकट टालेंगे।
मौज-मस्ती में रहें नहीं, जग पर संकट छाया है।।
मानव-निर्मित यह विपदा, मानव की ही देन है।
दुष्ट नराधम लोगों ने, मिलकर जिसे बनाया है।।
मानव ही मानव का शत्रु, इस जग में बन बैठा है।
किसी एक की भूल ने, जग में विष फैलाया है।।
इन्साँ माने ना माने, महामारी तब आती है।
जब जब प्रकृति के विरुद्ध, मनुष्य क़दम बढ़ाया है।।
संयम साधे घर बैठें, चहुँ दिश संकट छाया है।
इक अदृश्य महामारी ने, विष का खेल रचाया है।।