सप्तश्लोकी दुर्गा हिन्दी अर्थ
सप्तश्लोकी दुर्गा में माँ दुर्गा की स्तुति है। देवी भक्तों के लिये यह नित्य पठनीय है। देवी भक्त तो जानते होंगे कि दुर्गा सप्तशती के आरम्भ में ही इसका उल्लेख है। देखा जाये तो यह एक प्रकार से दुर्गा सप्तशती का संक्षिप्त रूप ही है। यह स्तोत्र देवी दुर्गा की शरणागति और उनका आशीर्वाद पाने सबसे संक्षिप्त और सरल साधन है। इसका प्रत्येक श्लोक मन्त्र के समान होने से यह बहुत ही शक्तिशाली है। प्रायः पूजा-पाठ के दरम्यान इसके तीसरे एवं सातवे श्लोक का उच्चारण ब्राह्मणों द्वारा होता ही है।
इस स्तोत्र का हिन्दी अर्थ पढ़ने पर ही ज्ञात हो जाता है कि यह बहुत ही सहज होने के साथ-साथ बहुत ही अनमोल भी है; क्योंकि भगवान् शिव के पूछने पर देवि द्वारा इसका निरूपण किया गया है। इसे अम्बा स्तुति के नाम से भी जाना जाता है। इस स्तोत्र ऋषि नारायण हैं, देवता श्री महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं, छन्द अनुष्टुप है।
आइये,
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह में इसका मूलपाठ सहित हिन्दी में अर्थ जानते हैं।
❀ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ❀
(❑➧मूलश्लोक ❑अर्थ➠सहित)
शिव उवाच
❑➧देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः।।
❑अर्थ➠ शिवजी बोले, हे देवि! तुम भक्तों के लिये सुलभ हो और समस्त कर्मों का विधान करनेवाली हो। कलियुग में कामनाओं की सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणी द्वारा सम्यक् रूप से व्यक्त करो।
देव्युवाच
❑➧शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते।।
❑अर्थ➠ देवी ने कहा, हे देव! आपका मेरे ऊपर बहुत ही स्नेह है। कलियुग में समस्त कामनाओं को सिद्ध करनेवाला जो साधन है वह मैं बतलाती हूँ, सुनो! उसका नाम है ‘अम्बास्तुति’।
❑➧ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः,
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः।
❑अर्थ➠ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्र मन्त्र के ऋषि नारायण हैं, छन्द अनुष्टुप् है और देवता श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं। श्रीदुर्गा की प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठ में इसका विनियोग किया जाता है।
❑➧ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।१।।
❑अर्थ➠ भगवती महामाया देवी ज्ञानियों के भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं।।१।।
❑➧दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।२।।
❑अर्थ➠ माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके अतिरिक्त अन्य कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया से द्रवीभूत रहता हो।।२।।
❑➧सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।३।।
❑अर्थ➠ हे नारायणी! तुम हर प्रकार का मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थों को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली गौरी! तुम्हें नमस्कार है।।३।।
❑➧शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।४।।
❑अर्थ➠ शरण में आये हुए दीन-दुखी एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है।।४।।
❑➧सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।५।।
❑अर्थ➠ सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दुर्गे देवि! हर प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करो। तुम्हें नमस्कार है।।५।।
❑➧रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा
तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।६।।
❑अर्थ➠ देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में आये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।।६।।
❑➧सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।।७।।
❑अर्थ➠ हे सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।।७।।
इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा सम्पूर्णा।