सबसे बड़ा मंत्र
हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवताओं के मन्त्र और स्तोत्र हैं। हर स्तोत्र के अन्तर्गत उस देवी-देवता को सर्वस्व कहा जाता है। जैसे आदित्यहृदय स्तोत्र में भगवान् सूर्य को सर्वस्व कहा गया है, रामरक्षा स्तोत्र में भगवान् श्रीराम को तो शिवमहिम्नः स्तोत्र में भगवान् शिव को। इन स्तोत्रों को पढ़कर-सुनकर हम भ्रमित हो जाते हैं कि अन्ततः महाशक्तिशाली स्तोत्र कौन-सा है? कौन हैं सबसे बड़े भगवान्?
हर व्यक्ति, जो भक्ति मार्ग में प्रवेश करता है, वो यही सोचता है कि उसके उपासक देव सबसे शक्तिशाली और महान हों। जबकि यह व्यक्ति के मन की एक वृत्ति (विचार) है, जो संकल्प का रूप लेकर उसे भक्तिमार्ग से भटका सकती है।
वास्तव में सबसे बड़ा होना, हमारे मन की वासना है। हम सोचते हैं दुनिया के बड़े लोगों में हमारा नाम हो। जब बड़े लोगों में नाम भी हो जाता है तो सोचते हैं, उनमें भी सबसे बड़ा मैं बनूँ, ऐसी वृत्तियाँ उत्पन्न होकर अहंकार का रूप ले लेती है, जो सारे दुःखों का मूल है। शायद इसीलिये संसार में प्रतिस्पर्धा का कोई अन्त नहीं।
लेकिन यह भक्तिमार्ग के लिये सबसे बड़ी बाधा है। इसी सोच को लेकर हर भक्त चाहता है कि मेरे इष्ट सबसे बड़े और शक्तिशाली हों, जबकि यह केवल मन की एक वृत्ति है, जिसने भ्रम उत्पन्न कर देता है कि मेरे उपासक देव सबसे बड़े हैं।
सती अनुसूया को हम सब जानते हैं, जिन्होंने अपने पातिव्रत्य धर्म के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बालक बना दिया था तो क्या अत्रि मुनि सबसे शक्तिशाली हैं? नहीं, वह सति अनुसूया के पतिव्रत धर्म का प्रभाव था।
दरअसल, सबसे बड़ी हमारी भक्ति और श्रद्धा होती है। एक साधारण गुरु में भी श्रद्धा और विश्वास रखनेवाला शिष्य भी भवसागर तर जाता है और सच्चे गुरु मिलने पर भी शिष्य पामर हो, उसे सद्गुरु में श्रद्धा ही न हो तो वह न संसार का हो पाता है, न परमार्थ का।
प्रियजनो, आपको पता होगा कि अनेक पुराणों की रचना ऋषि वेदव्यास ने की है और प्रत्येक पुराण के अन्तर्गत उस दैवी शक्ति को उन्होंने महान् बताया है। जैसे शिवपुराण में भगवान् शिव को तो विष्णु पुराण भगवान् विष्णु को; श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान् श्रीकृष्ण को तो देवि भागवत पुराण में माँ दुर्गा को, जबकि इन सबके रचयिता ऋषि वेदव्यास ही हैं।
तनिक विचार कीजिये, एक ही रचनाकार ने विषय के अनुसार उस देवी-देवता को महान क्यों कहा? क्या उन्हें पता नहीं कि भगवान् शिवजी महान है या भगवान् विष्णु? भगवान् श्रीकृष्ण बड़े हैं या माँ दुर्गा?
वास्तव में ऋषि वेदव्यास ने ईश्वर के इन विविध रूपों का वर्णन करते हुए एक निराकार शक्ति का गुणगान किया है। अतः सबसे बड़ी हमारी श्रद्धा, भक्ति और विश्वास है। कोई भी स्तोत्र या मन्त्र छोटा-बड़ा नहीं होता। साधक निष्ठावान हो तो साधारण मन्त्र भी उसके लिये महामन्त्र है, अन्यथा महामन्त्र भी साधारण अक्षर के समान हैं।
इसलिये हर स्तोत्र या मन्त्र की अपनी महिमा है, अपना महत्त्व है। कोई भी मन्त्र या स्तोत्र छोटा-बड़ा नहीं होता। हाँ, जिस उद्देश्य के लिये जो स्तोत्र है और उसके अधिष्ठाता देव पर हमारी श्रद्धा है तो वह हमारे लिये सर्वश्रेष्ठ और मंगलकारी है। कुछ स्तोत्र विषम परिस्थितियों में विशेष लाभकारी सिद्ध होते हैं; जैसे─
संकट निवारण हेतु गजेन्द्र द्वारा भगवान् विष्णु से की गयी गुहार है, गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र!
विजय प्राप्ति हेतु अगस्त्य मुनि द्वारा भगवान् श्री राम को दिया गया आदित्यहृदय स्तोत्र है, जिसे तीन बार जप करने से किसी भी परिस्थिति पर विजय प्राप्त किया जा सकता है।
खोई हुई शक्ति पुनः पाने हेतु गन्धर्वराज पुष्पदन्त द्वारा भगवान् शिव की की गयी वन्दना है शिवमहिम्नः स्तोत्र!
इसका अभिप्राय यह नहीं है कि इन्हीं कारणों से इस तरह के स्तोत्रों का पाठ करना चाहिये। मैं फिर से वाक्य दोहराना चाहूँगा कि हर स्तोत्र या मन्त्र की अपनी महिमा, अपना महत्त्व है। कोई भी मन्त्र या स्तोत्र छोटा-बड़ा नहीं होता। सबसे बड़ा हमारा विश्वास होता है। हमारी श्रद्धा और भक्ति होती है, जो उस मन्त्र या स्तोत्र की महानता को सिद्ध करती है।