सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

कैसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ?

देवी भक्तों को सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र की महिमा बतलाने की आवश्यकता नहीं है। प्रतिदिन प्रात:काल सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र का पाठ करने से विघ्न-बाधा नष्ट हो जाते हैं। केवल इसके पाठ से ही दुर्गापाठ का फल मिल जाता है, ऐसा इस स्तोत्र में भी कहा गया है। यह भी कहा गया है कि इसके पाठ से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उच्चाटन आदि सफल होते हैं। सामान्यतः मारण का अर्थ किसी को मारने, मोहन का अर्थ सम्मोहित करने, वशीकरण का अर्थ किसी को वश में करने, उच्चाटन का अर्थ मानसिक रूप से छटपटाहट उत्पन्न करने के लिये समझा जाता है।

इन शब्दों का अर्थ इसलिये ऐसा समझा जाता है कि काली विद्याओं से कार्य करनेवाले धन-सम्मान के लालची लोग अन्धकार में भटके मनुष्यों को इन शब्दों का यही अर्थ बताते हैं।

परन्तु आप स्वयं सोचें, क्या भगवान् शिव माता पार्वती को ऐसे कार्यों के उद्देश्य से कुछ कहेंगे? कभी नहीं।

इन शब्दों का अर्थ है स्वयं के लिये─
मारण अर्थात् काम-क्रोध का नाश…
मोहन अर्थात् इष्टदेव-मोहन…
वशीकरण अर्थात् मन का वशीकरण…
स्तम्भन अर्थात् इन्द्रियों का विषयों के प्रति उपरति…
उच्चाटन अर्थात् मोक्षप्राप्तिके लिये छटपटाहट…
इस उद्देश्य से, इस स्तोत्र का सेवन करने से हमारी मनोकामना सफल होगी। अतः अपने इष्टदेव की प्रीति, ईश्वर-प्राप्ति और आत्मरक्षा के उद्देश्य से इसका पाठ करना साधक के लिये उचित है।

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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ (Category) इस लेख में सिद्धकुंजिका स्तोत्र मूलपाठ के साथ लघुशब्द भी दिये गये हैं, जिसे देखकर आप इसे सरलतापूर्वक बोल सकते हैं।

ध्यान दें- ❍ लघुशब्द का अर्थ है ❑➧मूल श्लोक के बड़े शब्दों का उच्चारण न बदलते हुए उन्हें पढ़ने की दृष्टि से छोटे-छोटे रूप में दर्शाना ताकि उसे देखकर पाठकगण सरलतापूर्वक उच्चारण कर सकें। ये शब्दों का सन्धि-विच्छेदन नहीं है; क्योंकि सन्धि-विच्छेद से उच्चारण में दोष आने की सम्भावना बनी रहती है।

इस पोस्ट में मूल श्लोक गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती (प्रथम संस्करण) के पृष्ठ २३१, २३२ और २३३ से लिये गये हैं। पोेस्ट के अन्त में pdf उपलब्ध है।

सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्
(❑➧मूल श्लोक– ❍लघुशब्द)

❑➧शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्।।१।।
❍ शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका स्तोत्र मुत्तमम्।
येन मन्त्र प्रभावेण चण्डी जापः शुभो भवेत्।।१।।

❑➧न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।२।।
❍ न कवचं नार्गला स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।२।।

❑➧कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।३।।
❍ कुञ्जिका पाठ मात्रेण दुर्गा पाठ फलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवाना मपि दुर्लभम्।।३।।

❑➧गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।।४।।
❍ गोपनीयं प्रयत्नेन स्व योनि रिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भ नोच्चाटना दिकम्।
पाठ मात्रेण संसिद् ध्येत् कुञ्जिका स्तोत्र मुत्तमम्।।४।।

❑➧।।अथ मन्त्रः।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।।
ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।
।।इति मन्त्रः।।
❍ [ ध्यान दें─ मन्त्र छोटे शब्दों में हैं अतः लघुशब्दों की आवश्यकता नहीं। पाठ करते समय अथ मन्त्रः और इति मन्त्रः नहीं बोला जाता है। ]

❑➧नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि।।१।।
❍ नमस्ते रुद्र रूपिण्यै नमस्ते मधु मर्दिनि।
नमः कैटभ हारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि।।१।।

❑➧नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।
❍ नमस्ते शुम्भ हन्त्र्यै च निशुम्भासुर घातिनि।
जाग्रतं हि महा देवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।

❑➧ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।३।।
❍ ऐंकारी सृष्टि रूपायै ह्रींकारी प्रति पालिका।
क्लींकारी काम रूपिण्यै बीज रूपे नमोऽस्तु ते।।३।।

❑➧चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि।।४।।
❍ चामुण्डा चण्ड घाती च यैकारी वर दायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्र रूपिणि।।४।।

❑➧धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।५।।
❍ धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।५।।

❑➧हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।६।।
❍ हुं हुं हुंकार रूपिण्यै जं जं जं जम्भ नादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।६।।

❑➧अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।
❍ अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।

❑➧पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।
❍ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्त शती देव्या मन्त्र सिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।

❑➧इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
❍ इदं तु कुञ्जिका स्तोत्रं मन्त्र जागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।

❑➧यस्तु कुञ्जिकया देवि हीना सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
❍ यस्तु कुञ्जिकया देवि हीना सप्त शतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धि ररण्ये रोदनं यथा।।

❑➧।।इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
❍ ।।इति श्री रुद्रया मले गौरी तन्त्रे शिव पार्वती संवादे कुञ्जिका स्तोत्रं सम्पूर्णम्।।