सूर्याष्टकम् भगवान् शिव द्वारा कहा गया स्तोत्र है। इसका सबसे बड़ा माहात्म्य यही है कि यह शिवजी के मुख से निःसृत स्तोत्र है।
सूर्यनारायण आरोग्य के देवता माने जाते हैं, अतः उनके किसी भी स्तोत्र का पठन या मन्त्र का जाप आरोग्य प्रदान करता है। उनकी कृपा पाने के लिये यह स्तोत्र अतिउत्तम है। अनुष्टुप् छन्द पर आधारित इस स्तोत्र में सूर्यदेवता के भिन्न-भिन्न रूपों का स्मरण करके उन्हें नमन किया गया है। ज्ञान-प्राप्ति और मोक्ष-प्राप्ति के उद्देश्य से इसका पाठ करना चाहिये। इसके नित्य पाठ से साधक निष्पाप होने लगता है।
तो आइये
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सुगम ज्ञान संगम के अध्यात्म + स्तोत्र संग्रह स्तम्भ में इस स्तोत्र के मूलपाठ के साथ इसका अर्थ जानते हैं।
❀ सूर्याष्टकम् ❀
(❑➧मूलश्लोक ❍लघुशब्द)
❑➧आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।१।।
❍ आदिदेव नमस्तुभ्यं
प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं
प्रभाकर नमोऽस्तु ते।।१।।
❑➧सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।२।।
❍ सप्ताश्व रथ मारूढं
प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेत पद्म धरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।२।।
❑➧लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।३।।
❍ लोहितं रथ मारूढं
सर्वलोक पितामहम्
महा पाप हरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।३।।
❑➧त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्माविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।४।।
❍ त्रैगुण्यं च महा शूरं
ब्रह्मा विष्णु महेश्वरम्।
महा पाप हरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।४।।
❑➧बृंहितं तेज:पुञ्जं वायुमाकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।५।।
❍ बृंहितं तेज: पुञ्जं
वायु माकाश मेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।५।।
❑➧बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।६।।
❍ बन्धूक पुष्प सङ्काशं
हार कुण्डल भूषितम्।
एक चक्रधरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।६।।
❑➧तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज:प्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।७।।
❍ तं सूर्यं जगत् कर्तारं
महातेज: प्रदीपनम्।
महा पाप हरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।७।।
❑➧तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।८।।
❍ तं सूर्यं जगतां नाथं
ज्ञान विज्ञान मोक्षदम्।
महा पाप हरं देवं
तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।८।।
इति श्री शिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्।
सूर्याष्टकम् का अर्थ
❑अर्थ➠ हे आदिदेव भास्कर! आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हों, दिवाकर, आपको नमस्कार है। हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है।।१।।
❑अर्थ➠ सात घोड़ोंवाले रथ पर आरूढ़, हाथ में श्वेत कमल धारण किये हुए, प्रचण्ड तेजस्वी कश्यपकुमार सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ।।२।।
❑अर्थ➠ लोहितवर्ण रथारूढ़ सर्वलोकपितामह महापापहारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।।३।।
❑अर्थ➠ जो त्रिगुणमय ब्रह्मा, विष्णु और शिव रूप हैं, उन महापापहारी महान् वीर सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।।४।।
❑अर्थ➠ जो बढ़े हुए तेज के पुंज हैं और वायु तथा आकाशस्वरूप हैं, उन समस्त लोक के अधिपति सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ ।।५।।
❑अर्थ➠ जो बन्धूक (दुपहरिया) के पुष्प समान रक्तवर्ण हैं। हार तथा कुण्डल से विभूषित हैं, उन एक चक्रधारी सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।।६।।
❑अर्थ➠ महान् तेज के प्रकाशक, जगत् के कर्ता, महापापहारी उन सूर्य भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ।।७।।
❑अर्थ➠ जो जगत् के नायक हैं, ज्ञान, विज्ञान तथा मोक्ष को भी देते हैं, साथ ही जो बड़े-बड़े पाप को भी हर लेते हैं, उन सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।।८।।
इस प्रकार भगवान् शिव द्वारा कहा सूर्याष्टकम् पूर्ण हुआ।
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